तालिबान को बातों में उलझाकर चीन ने अफगानिस्तान में एंट्री कर ली है। चाईनीज आर्मी के वाहन अफगानिस्तान के वाखन में गश्त करते देखे गए हैं। हालांकि चीन ने औपचारिक ऐलान नहीं किया है, लेकिन यह जरूर कहा है कि आतंकियों को मार भगाने के लिए पाकिस्तान की आर्मी के साथ चाईनीज फौज काम कर रही है। अफगानिस्तान में चीन की एंट्री से अमेरिका से ज्यादा रूस चिंतित है। रूस के राजनयिक हल्के में काफी गहमागहमी देखी गई है।
ऐसी भी जानकारी है कि रूस के डिप्लोमेट्स ने इस सिलसिले में भारतीय समकक्षों से बात की है। चीन ने बड़े ही शातिराना अंदाज में कहा है कि वो आतंकियों को मार-भागने की योजना पर काम कर रहा है लेकिन कौन से आतंकवादी यह सवाल है। हालांकि चीन तो ईस्ट तुर्कमेनिस्तान मूवमेंट को ही आतंकवादी कहता है। लेकिन ईस्ट तुर्मेनिस्तान मूवमेंट को तालिबान का समर्थन पहले से रहा है।
चीन ने अफगानिस्तान में तालिबान के मदद के एवज में ईस्ट तुर्कमेनिस्तान मूवमेंट के आतंकियों से नाता तोड़ने का वचन लिया है। कहा जा रहा है कि चीनी विदेश मंत्री वांग यी के साथ मुलाकात में तालिबान ने कहा भी है कि ईस्ट तुर्कमेनिस्तान मूवमेंट को मदद नहीं करेगा, लेकिन तालिबान पर भरोसा करना और पानी में मगरमच्छ पर भरोसा करना एक बराबर है।
वैसे तालिबान भी जानते हैं कि चीन भी भरोसे के काबिल नहीं है। इस समय दोनों अपने-अपने स्वार्थ के लिए एक दूसरे के नजदीक आए हैं। अभी यह भी नहीं मालूम है कि वाखान में चीनी फौज की मौजूदगी तालिबान के साथ चीनी समझौते के तहत है या चीन ने तालिबान को अपनी ताकत दिखाने का दुस्साहस किया है। अफगान सरकार ने काफी पहले कहा था कि न केवल पाकिस्तान बल्कि चीन भी तालिबान को मदद कर रहा है। दो-दो देश अफगानिस्तान के खिलाफ तालिबान को मदद कर रहे हैं।