कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में कहर बरपाया हुआ है। करोड़ों लोगों की इस वायरस की चपेट में आकर मौत हो चुकी है। इस वायरस से बचाव के लिए वैक्सीन भी आ गई है, लेकिन कोरोना वायरस कैसे आया ?, इसका जवाब अभी तक लोगों को नहीं मिला है। लेकिन अब लगता है कि लोगों को जल्द ही इसका जवाब मिल जाएगा। एक नई स्टडी में हुए सनसनीखेज खुलासे ने इस ओर संकेत किया है। इस स्टडी में कहा गया कि चीन के वैज्ञानिकों ने ही वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ वायरोलॉजी में कोविड-19 वायरस को तैयार किया था।
स्टडी में कहा गया कि चीनी वैज्ञानिकों ने वायरस को तैयार करने के बाद इसे रिवर्स-इंजीनियरिंग वर्जन से बदलने की कोशिश की, ताकि ऐसा लगे कि ये वायरस चमगादड़ से विकसित हुआ है। चीन के इस नापाक मंसूबों का भंडाफोड़ हो चुका है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस स्टडी को ब्रिटिश प्रोफेसर एंगस डल्गलिश और नॉवे के वैज्ञानिक डॉ बिर्गर सोरेनसेन ने किया है। इस स्टडी में कहा गया है कि उनके पास एक साल से भी ज्यादा समय से चीन में वायरस पर रेट्रो-इंजीनियरिंग के सबूत है, लेकिन एकेड्मीज और प्रमुख मैगजीन ने इसे नजरअंदाज कर दिया।
स्टडी में दावा किया गया है कि वुहान लैब में जानबूझकर डाटा को नष्ट किया गया। इसे छिपाया गया और गायब करने की कोशिश की गई। जिन वैज्ञानिकों ने इसे लेकर अपनी आवाज उठाई, उन्हें चीन ने या तो चुप करा दिया या फिर गायब ही करवा दिया। बताया जा रहा है कि जब डल्गलिश और सोरेनसेन वैक्सीन बनाने के लिए कोरोना के सैंपल्स को लेकर स्टडी कर रहे थे, तो उन्होंने वायरस में यूनिक फिंगरप्रिंट को नोटिस किया। इन फिंगरप्रिंट को लेकर दावा किया जा रहा है कि ये लैब में वायरस के साथ छेड़छाड़ करने के बाद आए होंगे।
डल्गलिश और सोरेनसेन का कहना है कि जब उन्होंने इन नतीजों को प्रकाशित करना चाहा तो कई साइंटिफिक जर्नल ने इसे खारिज कर दिया। आपको बता दें कि प्रोफेसर डल्गलिश लंदन में सेंट जॉर्ज यूनिवर्सिटी में कैंसर विज्ञान के प्रोफेसर है तो वहीं, डॉ सोरेनसेन एक वायरोलॉजिस्ट और इम्यूनोर नामक कंपनी के अध्यक्ष है, जो फिलहाल कोरोना वैक्सीन 'बायोवैक-19' तैयार कर रही है। आपको बता दें कि अमेरिका समेत दुनियाभर से चीन की वुहान लैब से कोरोना वायरस के लीक होने की जांच की मांग उठ रही है। ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन एक बार फिर से वुहान लैब से वायरस लीक होने की जांच कर सकता है।