चीन (Dragon) अपनी साज़िशें कहीं भी नाकाम नहीं होने देता। वह अपनी सीमा से जुड़े देशो का हर समय नाक में दम करके रखता है। ड्रैगन(Dragon) अपने ही चालबाज़ियों में फिर खुद फसता भी नज़र आता है। चालबाज चीन (Dragon) ने पहले चुपके से अरुणाचल प्रदेश के गांवों के नाम बदल दिए थे, जिसकी भारत ने निंदा की थी। अब दक्षिणी हिंद महासागर में 19 स्थानों के नाम बदले हैं। चीन की तरफ से दक्षिण हिंद महासागर में 19 तलों के नाम बदलने की हिमाकत की गई है। चीन(Dragon) की ओर से की गई यह कार्रवाई भारत कीसंप्रभुता और हिंद महासागर के इलाके में भारतीय प्रभाव पर सीधा दखल है। एक महीने के भीतर शी जिनपिंग की भारत की संप्रभुता के साथ छेड़छाड़ की यह दूसरी हिमाकत है। इसे चीन के विस्तारवादी रवैये और हिंद क्षेत्र में चीन की बढ़ती दखल के रूप में देखा जा रहा है। चीनी के रिसर्च करने वाले जहाज भारत की समुद्री से कुछ दूरी पर हिंद महासागर क्षेत्र में काम कर रहे हैं, इसके पीछे की वजह है, ताकि आने वाले दिनों में वह अपनी पनडुब्बी या सैन्य जहाजों को तैनात कर सकें।
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मैरिन ट्रैफिक वेबसाइट के मुताबिक चीन का रिसर्च जहाज सिंगापुर के तट से रवाना हुआ और फिर चीन के बंदरगाह झांगझियांग की तरफ रवाना हो गया था। इंडोनेशिया के बंदरगाह बालीकपापन पर रसद और बाकी सामानों को जमा करने के बाद यह रवाना हुआ था। पिछले एक दशक में चीन के सर्वे और रिसर्च जहाज के साथ ही कई रणनीतिक सैटेलाइट ट्रैकिंग जहाज ने हिंद महासागर पर अपनी गतिविधियां तेज कर दी हैं। चीनी नौसेना का मकसद लोम्बोक, ओम्बाई-वेटर स्ट्रेट जो इंडोनेशिया में है, वहां से एक वैकल्पिक रास्ता बनाना है ताकि दक्षिणी हिंद महासागर के जरिए पूर्वी अफ्रीका के तटों पर पहुंचा जा सके। पनडुब्बियों को गहरे पानी में रहना होता है। मलक्का और सुंडा स्ट्रेट के रास्ते पनडुब्बियों को हिंद महासागर में दाखिल होना पड़ेगा।
कौनसी साज़िश रच रहा है चीन?
चीन का मकसद बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव के तहत दुनियाभर के समुद्रो पर अपना कब्जा करना है। इस पहल के तहत चीन अफ्रीका के पूर्वी तट का शामिल करना चाहता है। अफ्रीका के पूर्वी समुद्र तट पर बसे देश- दक्षिण अफ्रीका से जिबूती तक- चीनी कर्ज के नीचे दबे हैं। ऐसे में हिंद प्रशांत की सुरक्षा और अहम हो जाती है। बड़े देश श्रीलंका, पाकिस्तान, म्यांमार, कंबोडिया और लाओस जैसे देशों के अलावा इंडोनेशिया जैसे देशों में भी आर्थिक स्थितियां काफी गंभीर हैं और ये भी चीन के युआन के अधीन हो चुके हैं।