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चेक सीनेट के अध्यक्ष वीसट्रिसिल को धमकी चीन को पड़ी भारी, यूरोपीय देशों का भड़का गुस्सा

चेक सीनेट के अध्यक्ष वीसट्रिसिल को धमकी चीन को पड़ी भारी, यूरोपीय देशों का भड़का गुस्सा

भारत सीमा विवाद-अमेरिका, हांगकांग, ताईवान और साउथ चाईना सी जैसे गंभीर मुद्दों पर यूरोपियन देशों की सहानुभूति बटोरने निकले चीन के विदेशमंत्री वांग ई को अपनी और चीन की इज्जत बचानी मुश्किल हो रही है। दरअसल, चेक रिपब्लिक की सीनेट के अध्यक्ष मिलोस वीसट्रिसिल को धमकी दी थी कि उन्हें ताईवान दौरे की भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। दरअसल, वीसट्रिसिल ताईवान मूल के हैं। उन्होंने चीनी गीदड़ भभकियों को नजरअंदाज करते हुए न केवल ताईवान का दौरा किया बल्कि ताईवान की राषट्रपति साई इंग वेन से मुलाकात भी की।

चीन ने वीसट्रिसिल की इस यात्रा से बुरी तरह जल भुन कर एक के बाद एक कई धमकियां दीं। सबसे ज्यादा तल्ख टिप्पणी जर्मनी की यात्रा पर चीनी विदेश मंत्री वांग ई की थी। उन्होंने कहा कि मिलोस वीसट्रिसिल ने “रेड लाइन को पार” किया है। वीसट्रिसिल को उनके अदूरदर्शी व्यवहार और राजनीतिक अवसरवाद के लिए भारी कीमत चुकानी पड़ेगी। जब वांग ई ये धमकी दे रहे थे तो उनके बगल में जर्मनी के विदेश मंत्री हेईको मास भी खड़े थे। उन्होंने लगभग डपटते हुए वांग ई से कहा, यह धमकी यहां पर ठीक नहीं है। हेईको मास की डांट पर वांग ई चुप देखते और सुनते रहे। ऐसा माना जा रहा है कि वीसट्रिसिल को धमकियां देना चीन का बहुत भारी पड़ सकता है। इस मसले पर लगभग पूरी यूरोपिन यूनियन एक मत है। ऐसा भी माना जा रहा है कि यूरोपियन यूनियन चीन पर कड़ें व्यापारिक एंव आवागमन संबंधी प्रतिबंध लगा सकता है।

वांग के इस बयान की जर्मनी के अलावा स्लोवाकिया और फ्रांस ने खुल कर आलोचना की है। जर्मनी के विदेश मंत्री हेईको मास ने बुधवार को वांग की धमकी पर कहा कि यूरोपीय देश अपने अंतरराष्ट्रीय साझीदारों का सम्मान करता है और उनसे भी यही अपेक्षा करता है।

फ्रांस के विदेश मंत्री ने वांग की इस टिप्पणी को ‘अस्वीकार्य’ करार दिया तो वहीं स्लोवाकिया के राष्ट्रपति केपुटोवा ने एक ट्वीट के जरिए कहा, यह धमकी यूरोपीय सदस्यों में से एक को दी गई है और इसका उसके प्रतिनिधि खंडन करते हैं और यह अस्वीकार्य है। यूरोपीयन यूनियन के सदस्य देशों की प्रतिक्रियाएं लगातार बढ़ती जा रही हैं।

एक तरफ चीन भारत के साथ सीमा विवाद में उलझा हुआ है तो उसे अमेरिका से आर्थिक और सामरिक दोनों चुनौतियां मिल रही हैं। हांगकांग और ताईवान चीन के गले की हड्डी पहले से बने हुए हैं। ऐसे में अब यूरोपियन यूनियन से पंगा लेना चीन को ही नहीं बल्कि व्यक्तिगत तौर पर शी जिनपिंग और वांग ई को मंहगा साबित हो सकता है।.