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Farmers Protest: किसान आंदोलन में विदेशी दखल की साजिश नेस्तनाबूद

Farmers Protest UK Said No Intervention in to Indian Internal Matter

भारत में किसानों के नाम पर चल रहे आंदोलन को ग्लोबल समर्थन हासिल करने की साजिशों को जोरदार झटका लगा है। पहला झटका कनाडा के प्राइम मिनिस्टर जस्टिन ट्रुडो ने इशारों ही इशारों में दिया तो ब्रिटेन ने खुले आम ऐसे साजिशों को एक झटके में ही खत्म कर दिया है। ब्रिटेन की संसद की ओर से स्पष्ट रूप से कहा है कि भारतीय संसद से पारित कृषि कानूनों में कुछ भी गलत नहीं है। ब्रिटेन और भारत के अच्छे सम्बंध हैं और भविष्य में और अच्छे होंगे। ब्रिटेन किसी भी किसी भी तथ्यहीन आतंरिक मामले पर टिप्पणी नहीं करेगा।

दरअसल, लेबर पार्टी के ब्रिटिश सिख सासंद तनमनजीत सिंह धेसी ने संसद में किसान आंदोलन और पत्रकार की कथित गिरफ्तारी को लेकर सवाल किया। जिसके जबाव में ब्रिटिश विदेश कार्यालय में एशिया मामलों के मंत्री निगेल एडम्स ने भारत को ब्रिटेन का सबसे करीबी देश बताते हुए हस्तक्षेप करने से साफ इनकार कर दिया।

तनमनजीत सिंह धेसी ने सवाल किया कि पिछले कई महीनों से भारत में किसान आंदोलन के रूप में दुनिया का सबसे बड़ा शांतिपूर्वक आंदोलन चल रहा है। मुझे भी इसकी चिंता हो रही है। इस सदन के भी 100 से ज्यादा सदस्यों ने प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन को पत्र लिखकर इस आंदोलन में हस्तक्षेप करने की मांग की है। उन्होंने यह भी कहा कि इस मुद्दे पर ब्रिटेन के 650 संसदीय क्षेत्रों से लगभग 1 लाख लोगों ने ऑनलाइन पिटीशन भी साइन किया है।

लेबर पार्टी के सांसद ने भारत पर मानवाधिकार हनन का भी मनगढ़ंत आरोप लगाया। उन्होंने दावा किया कि भारत सरकार पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार कर मानवाधिकार का हनन कर रही है। मंत्री निगेल एडम्स ने तनमनजीत सिंह के सवालों का जवाब देते हुए कहा कि भारत के साथ हमारा बहुत घनिष्ट संबंध है। आने वाले समय में दुनिया के अन्य देशों के अपेक्षा भारत के साथ हमारा संबंध और प्रगाढ़ होगा। भारत हमारा मित्र देश है, इसलिए हमें तभी अपना हस्तक्षेप करना चाहिए जब हम यह सोचें कि जो हो रहा है वह उसके हित में नहीं है। इसलिए मैं कहना चाहूंगा कि विदेश सचिव स्तर पर हमने भारत के साथ दिसंबर में इस मुद्दे पर चर्चा की थी।

उन्होंने यह भी कृषि सुधार भारत की लोकतांत्रिक पॉलिसी है और हम वैश्विक स्तर पर मानवाधिकार को बढ़ावा देते रहेंगे। उन्होंने यह भी कहा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद भी इस आंदोलन पर नजर रखे हुए है। पहले भी ब्रिटिश सरकार से किसान आंदोलन को लेकर सवाल किए जा चुके हैं। लेकिन, हर बार उन्होंने इसे भारत का अंदरूनी मामला बताते हुए खुद को अलग करने की कोशिश की थी। माना जाता है कि ब्रिटिश सरकार का रूख भारत सरकार के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध बनाए रखने को लेकर ज्यादा है।