कश्मीर मुद्दे को लेकर दुनियाभर के सामने राग अलापने वाला पाकिस्तान हर बार संयुक्त राष्ट्र में इस मुद्दो को उठाता है और मुंह की खाता है। अपने देश की हालत बद-से बदतर है, पाकिस्तान कर्ज में डूबा हुआ है, वहां की जनता हा हाल बेहाल हुआ पड़ा है लेकिन पाकिस्तान को इन सब से कोई लेना देना नहीं, पाक अधिकृत कश्मिर में जो मुसलमानों का हाल है वो किसी से छूपा नहीं है लेकिन उसके बाद भी संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के चाहे प्रधानमंत्री हों या फिर संयुक्त राष्ट्र में उसके प्रतिनिधि सबका सबसे पसंदीदा विषय कश्मीर की रहा है। हालांकि, बीते दिनों की तरह एक बार फिर चीन ने पाकिस्तान को कहा है कि वो कश्मीर को भूल कर आगे बढ़े। इसी मे उसकी भलाई है। दरअसल, चीन को डर है कि भारत अक्साई चिन न छीन ले। इसलिए वो एक तीर से दो निशाने लगाना चाहता है। एक तरफ
अमेरिका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी ने अपनी किताब भारतvsपाकिस्तान में एक आर्मी चीफ के हवाले से लिखा था कि, इतना समय, संसाधन और शक्ति पर लगाने के बाद भी पाकिस्तानी इस कटु सत्य को अब तक अपना नहीं सके हैं कि कश्मीर की समस्या फिलहाल सुलझने वाली नहीं है। यहां तक की कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान के सबसे प्रीय दोस्त चीन तक ने सलाह दी है कि वो इस मुद्दे पर रट लगाना छोड़ दे।
पाकिस्तानी संसद में 1996 में चीन के राष्ट्रपति रहे जियांग जेमिन ने अपने दिए एक संबोधन में कहा था कि, अगर कुछ मुद्दो को फिलहाल सुलझाया नहीं जा सकता तो उन्हें ठंडे बस्ते में डाल देना चाहिए, जिससे दो देशों के बीच सामान्य संबंधों के रास्ते पर आगे बढ़ा जा सके। लेकिन पाकिस्तान ने इसे नजरअंदज करते हुए 1948 से 1963 के बीच अंतरराष्ट्रीय दबाव का इस्तेमाल किया। यहां भी काम नहीं बना तो 1965 में जंग छेड़ दिया और भारतीय सेना से हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद सशस्त्र विद्रोह को 1989 से 2002 तक लगातार भड़काया। 1999 में कारगिल के जरिये सेना और घुसपैठियों का इस्तेमाल कर वास्तविक नियंत्रण रेखा को बदलने की नाकाम कोशिश भी की। भारत के खिलाफ जिहादी आतंकवाद को भी समर्थन दिया, जिसकी कीमत खुद उसे भी चुकानी पड़ रही है।