कोरोना वायरस के पैदा करने और उसे पूरी दुनिया में फैलाने को लेकर चीन पहले से ही शक के घेरे में है। अब तक कई स्टडी समाने आ चुकी हैं जिसमें यह दावा किया जा चुका है कि कोरोना वायरस की उत्पत्ति चीन की वुहान लैब से हुआ है, इस लैब में चीन ने इस वायरस को जैविक हथियार के रूप में इस्तेमाल करने की फिराक में बनाया है। लेकिन इस वायरस को लेकर जैसे ही चीन का नाम आता है वो तिलमिला उठता है। अब चीन के न्यूक्लियर प्लांट में बड़ी गड़बड़ी होने का पता चला है। एक रिपोर्ट सामने आई है जिसमें चीन के न्यूक्लियर पावर प्लांट में लीकेज की बात कही गई है। इसे लेकर अमेरिका सतर्क हो गया है और इसकी जांच शुरू कर दी है।
अमेरिकी सरकार बीते एक हफ्ते से इस रिपोर्ट को लेकर अध्ययन में जुटी हुई है। दरअसल, चीन के गुआंगदोंस प्रांत में ताइशन न्यूक्लियर पावर प्लांट (Taishan Nuclear Power Plant) में फ्रांस की कंपनी फ्रैमाटोम भी हिस्सेदार थी। इसी कंपनी ने लीकेज के कारण संभावित रेडियोलॉजिकल खतरे को लेकर चेतावनी दी थी। अमेरिका के अधिकारियों से मिली जानकारी और मामले से संबंधित दस्तावेजों को देखने के बाद सीएनमएन ने इस पूरे मामले का खुलासा किया है। फ्रेंच कंपनी ने यह भी बताया कि चीन के गुआंगदोंग प्रांत में मौजूद यह न्यूक्लियर पावर प्लांट कहीं बंद न हो जाए, इससे पहले ही चीनी सुरक्षा अधिकारियों ने इस बाहर विकिरण की स्वीकार्य सीमा को बढ़ा दिया है। फ्रेंच कंपनी ने इस संबंध में यूएस डिपार्टमेंट ऑफ एनर्जी को चिट्ठी लिखी है।
फ्रांस की कंपनी फ्रैमाटोम (Framatome) की ओर से मिली इस चिट्ठी के बावजूद बाइडेन प्रशासन को फिलहाल यह लग रहा है कि न्यूक्लियर प्लांट में स्थिति अभी नियंत्रित है। अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि मौजूदा स्थिति प्लांट में काम करने वालों और चीनी नागरिकों के लिए खतरा नहीं पैदा कर रही है। हालांकि, यह अपने आप में अजीब है कि एक विदेशी कंपनी अमेरिकी सरकार से मदद मांग रही है जबकि उसके चीनी पार्टनर को इस समस्या के बारे में अब तक कोई जानकारी नहीं है। फ्रांस की कंपनी के साथ चीन ने साल 2009 में ताइशन प्लांट का निर्माण शुरू किया था, जिसके बाद साल 2018 और 2019 में यहां बिजली उत्पादन शुरू हुआ था। बरहाल, स्थिति खतरनाक भले ही न हो लेकिन यह मामला चिंताजनक तो है ही। अमेरिका की नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल ने बीते हफ्ते इस मसले पर लगातार बैठकें कीं। इसके अलावा बाइडेन प्रशासन ने स्थिति को लेकर फ्रांस की सरकार और ऊर्जा विभाग में उनके अपने एक्सपर्ट्स से चर्चा की है।
इसलिए फ्रांस ने मांगी मदद
रिटार्यर्ड न्यूक्लियर साइंटिस्ट चेरिल रॉफर का कहना है कि, वैसे तो चीन हमेशा यही दिखाने की कोशिश करता है कि सब कुछ ठीक है लेकिन फ्रांस द्वारा अमेरिका से ऐसी मदद मांगना असाधारण मामला नहीं है क्योंकि, वे जानते हैं कि जिस देश से वे मदद मांग रहे हैं उसमें मदद करने की विशेष क्षमता है।