पाकिस्तान की इमरान सरकार की ज्यादतियों और अनदेखियों से नाराज गिलगिट बालटिस्तान की हजारों लोगों ने घरों से बाहर निकल कर हाईवे पर आवाज बुलंद की। इस प्रदर्शन मे शामिल स्टूडेंट्स का कहना था कि स्कूलों में फीस ली जाती है लेकिन टीचर्स पढ़ाने के बजाए सरकारी हुक्कामों को खुश करने में लगे रहते हैं या फिर अपने काम -धंधों मे लगे रहते हैं।
पाकिस्तान की इमरान सरकार का ध्यान गिलगिट बालटिस्तान के विकास की ओर नहीं बल्कि यहां के नेचुरल रिसोर्सेज के दोहन पर है। अगर गिलगिट बालटिस्तान के बच्चे पढ़-लिख जाएंगे तो वो अपना हक मांगेंगे। पाकिस्तान सरकार की ओर से जबरन लादी गई सरकारों से सवाल भी पूछेंगे। इसीलिए पाकिस्तान की सरकार चाहती है कि गिलगिट बालटिस्तान के अधिकांश लोग अनपढ़ या कम पढ़े लिखे ही बने रहें। ताकि उनके ऊपर कठपुतली सरकार नाफिज की जाती रहे।
केवल एजुकेशन ही नहीं, गिलगिट बालटिस्तान में पीने का पानी नहीं है। पीने के पानी में सीवेज की पानी मिला हुआ है। इस समस्या को भी सालों-साल हो गए हैं, लेकिन न तो कठपुतली सरकार सुनती है और न ही अदालतें कोई ध्यान देती हैं। गिलगिट बालटिस्तान के शहरों में ऐसे धरना-प्रदर्शन आम बात हो गई है। प्रायः शहरों के नुक्कड़ों और चौराहों पर सिविल सोसाईटी के लोग धरना-प्रदर्शन करते ही रहते हैं।
ह्यूमन राइट कमीशन की एक रिपोर्ट के मुताबिक गिलगिट में एजूकेशन तो पहले से ही बदतरीन हालत में थी ऊपर से कोविड19 की वजह से और भी खराब हो गई है। गिलगिट बालटिस्तान की तरह खैबर पखतूनख्वाह और बलोचिस्तान में भी एजूकेशन की स्थिति बदतरीन है। इंटरनेट सुविधाएं न के बराबर होने की वजह से ऑन लाइन क्लासेज भी नहीं चल रहे हैं।