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Houbara Bustard: विलुप्त हो रही चिड़िया को मरवाकर पेट पाल रहा पाकिस्तान!

Houbara Bustard: विलुप्त हो रही चिड़िया को मरवाकर पेट पाल रहा पाकिस्तान!

हौबारा बस्टर्ड (Houbara bustard) जिसे अफ्रीकन बस्टर्ड के नाम से भी जाना जाता है। वैश्विक स्तर पर इस पक्षी की घटती संख्या को देखते हुए 2014 से IUCN (<b><a title="International Union for Conservation of Nature" href="https://en.wikipedia.org/wiki/International_Union_for_Conservation_of_Nature">International Union for Conservation of Nature</a></b>) ने इस रेड लिस्ट में रखा है। ठंड के समय हजारों की संख्या में हौबारा बस्टर्ड मध्य एशिया से पाकिस्तान प्रवास के लिए आती है। पाकिस्तान अपने लालच के लिए Houbara bustard का दुश्मन बन गया है। दरअसल खाड़ी देशों के आमीर हौबारा बस्टर्ड के शिकार के शौकीन हैं। पाकिस्तान ने इस मौके का फायदा उठाते हुए हौबारा बस्टर्ड को मारने का बकायदे लाइसेंस जारी किया है। ऐसा करके पाकिस्तान खाड़ी देशों से मोटी कमाई कर रहा है।

<a href="https://hindi.indianarrative.com/world/uscirf-report-2020-violation-of-religious-freedom-in-pakistan-and-china-us-names-pakistan-and-china-in-countries-of-particular-concern-list-20917.html">हिंदू महिलाओं को चीन में जबरन दुल्हन बना रहा पाकिस्तान</a>

पाकिस्तानी सरकार ने 10 दिनों में अधिकतम हौबारा बस्टर्ड मारने की संख्या 100 निर्धािरत की है। लेकिन, अरब के शिकारियों के लिए अधिकतम सीमा नहीं तय की गई है। डॉन की एक रिपोर्ट के अनुसार, शिकार करने का ये खास अधिकार कतर के आमिर शेख तमीम बिन हमद अल-थानी और उनके परिवार को दिया गया है।

<strong>सेक्स पावर बढ़ाने के लिए शिकार</strong>

2014 में पाकिस्तान सरकार की एक रिपोर्ट लीक हुई थी जिसके अनुसार, सउदी अरब के प्रिंस ने तीन सप्ताह के अंदर 2000 के करीब हौबारा बस्टर्ड पक्षी का शिकार किया था। सावल ये उठता है कि अरब के अमीरों को इस पक्षी का मीट इतना पसंद क्यों है? दरअसल माना जाता है कि इस पक्षी का गोश्त <strong>सेक्स पावर</strong> को बढ़ाता है। यही वजह है कि अरब देशों में इस पक्षी के शिकार का चलन है। इन पक्षियों को मरवाकर पाकिस्तान मोटी कमाई करता है।

बलूचिस्तान के लोगों ने पाकिस्तानी सरकार के इस फैसले के खिलाफ कई बार आवाज उठाई है। शिकार रोकने के लिए पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका दी गई थी, लेकिन 2015 में फैसला सरकार के पक्ष में दिया गया।.