लद्दाख सीमा पर भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच दोनों देशों के विदेश मंत्रियों की मॉस्को में हुई बैठक से कुछ दिन पहले पिछले हफ्ते दो बार गोलियां चल चुकी हैं। भारतीय सैन्य अधिकारियों का साफ कहना है कि सीमा पर दशकों पुराना संयम अब खत्म हो चुका है।
दोनों पक्षों ने वास्तविक नियंत्रण रेखा या अनौपचारिक सीमा रेखा पर आग्नेयास्त्रों का उपयोग नहीं करने के लिए समझौता किया है और 45 साल से किसी भी पक्ष के सैनिकों की ओर से कोई भी गोली नहीं चलाई गई थी।
लेकिन पश्चिमी हिमालय में पिछले महीने के अंत से क्षेत्रीय अधिकार के दावों को लेकर आमने-सामने आ गए सैनिकों के बीच फायरिंग की तीन घटनाएं सामने आई हैं। एक सूत्र ने कहा कि इन सभी मामलों में हवा में गोली चलाई गई और एक-दूसरे को सीधे निशाना बनाने की कोशिश नहीं की गई।
गोलीबारी की एक घटना पंगोंग त्सो झील के उत्तरी किनारे पर पिछले गुरुवार को मॉस्को में भारतीय विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर और चीनी समकक्ष वांग यी के बीच हुई बैठक के समय हुई थी। एक सूत्र ने कहा कि जिस गोलीबारी को किसी भी पक्ष ने सार्वजनिक नहीं किया वह सबसे बड़ी थी। सूत्र ने अधिक जानकारी देने से इनकार किया लेकिन उस घटना में 100-200 राउंड फायर किए जाने संबंधी खबर सामने आ रही है।
तिब्बत से सटे लद्दाख इलाके में पर्वतीय सीमा पर लाभदायक जगहों पर कब्जा करने के लिए चीन लगातार कोशिश कर रहा है। पिछले सोमवार को दोनों देशों के सैनिकों के बीच झील के दक्षिणी किनारे पर हवा में गोलीबारी हुई थी। जयशंकर और वांग तनाव को कम करने के लिए सहमत हुए और तब से स्थिति शांत हो गई है, लेकिन अभी तक किसी भी पक्ष ने सैनिकों की वापसी नहीं करवाई है।
एक पूर्व भारतीय सैन्य कमांडर ने नाम नहीं प्रकाशित करने की शर्त पर कहा कि अविश्वास इतना बढ़ गया है कि सैनिकों को गश्त के दौरान सीमा पर कुछ हवाई फायरिंग करनी पड़ी है और अब जल्द किसी समझौते पर पहुंचना मुश्किल होगा। हमें अब एलएसी पर शांति के बारे में नहीं बल्कि संघर्ष को रोकने के बारे में बात करनी चाहिये।.