इसराइल, अमेरिका और सऊदी अरब के लिए कांटा बन रहे आतंकी संगठन हिज्बुल्लाह का सरगना मौलवी अली अकबर अब इस दुनिया में नहीं है। ऐसी खबरें आ रही है कि अली अकबर की कोरोना से मौत हो गई है। ध्यान रहे, अली अकबर सीरिया में ईरान में राजदूत भी रह चुका था। वो अयतुल्ला खोमानी का नजदीकियों में से एक था। ऐसा कहा जाता है कि कासिम सुलेमानी और अली अकबर दोनों की हैसियत ईरान के शासन में लगभग एक जैसी थी। कासिम सुलेमानी को अमेरिकी फोर्सेस ने ड्रोन हमले में मार गिराया था।
ईरान की न्यूज एजेंसी इरना (IRNA)ने जानकारी दी है कि अली अकबर की मौत नॉर्थ तेहरान के एक अस्पताल में हुई है। अली अकबर के बारे में बताया जाता है कि वो अक्सर काला लिबास पहनना पसंद करता था। ताकि वो खुद को इस्लाम के पैंगम्बर मुहम्मद का अनुयायी बता सके। ईरान में हुए विवादित चुनाव के बाद मौलवी अली अकबर पिछले करीब 10सालों से इराक के पवित्र शहर नजफ में रहता था। एक बम हमले में उसका दाहिना हाथ भी खराब हो गया था।
हिज्बुल्लाह वहीं आतंकी संगठन है जिसपर साल 1983में बेरूत स्थित यू,ए, एंबेसी पर हमला करने का आरोप लगा था। इस हमले में 63लोगों की मौत हो गई थी। इसके बाद यूएस की तरफ से किये गये जवाबी हमले में 241लोगों की मौत हुई थी।
साल 1947में तेहरान में जन्म लेने के बाद अली अकबर की मुलाकात खोमानी से एक मौलवी के तौर पर हुई थी। इसके बाद वो धीरे-धीरे खोमानी का करीबी बन गया। साल 1982में खोमानी ने अली अकबर को सीरिया में तैनात किया था। इस्लामिक क्रांति के बाद अली अकबर ने ईरान मेंरिवोल्यूशनरी गार्ड (Revolutionary Guard)की स्थापना में सहयोग किया।
सीरिया का राजदूत रहते हुए उन्होंने इस फोर्स को हिज्बुल्लाह की मदद से काफी बढ़ाया। ईरान में हुए ग्रीन मूवमेंट आंदोलन के दौरान अली अकबर ने वहां के तत्कालीन नेता विपक्ष मीर हुसैन मौसावी और माहदी कारौबी की मदद की थी। साल 1979 के ईरान आंदोलन में सक्रिय रहने वाला अली अकबर ने बाद में इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान में अंदरुनी मामलों के मंत्री का पद भी संभाला था।