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इस्लाम को अपना रहे गरीब और हताश पाकिस्तानी हिंदू

इस्लाम को अपना रहे गरीब और हताश पाकिस्तानी हिंदू

पाकिस्तान में धार्मिक भेदभाव और एक वायरस-ग्रस्त अर्थव्यवस्था में संकट का सामना कर रहे कुछ हिंदू मुस्लिम समूहों द्वारा दी जाने वाली नौकरियों या जमीनों के कारण जिंदा रहने के लिए अपना धर्म परिवर्तन कर रहे हैं। दक्षिणी पाकिस्तान में सिंध प्रांत के बाडिन जिले में दर्जनों हिंदू परिवार जून में मुसलमान बन गये। इस समारोह की वीडियो क्लिप पाकिस्तान भर में वायरल हुई, जिसमें कट्टरपंथी मुस्लिमों को खुश किया गया और पाकिस्तान के घटते हिंदू अल्पसंख्यकों को उनकी औकात दिखाई गई।

हाल के वर्षों में पाकिस्तान के बहुसंख्यक मुस्लिमों के लिए इस तरह के सामूहिक धर्म परिवर्तन समारोह में यह केवल सबसे नया था। हालांकि इसके बारे में सटीक आंकड़े दुर्लभ हैं। इन धर्म परिवर्तनों में से कुछ केवल कहने के निये स्वैच्छिक हैं। भारत में पाकिस्तान के हिंदुओं की केवल घटती संख्या पर निगाह रहती है। लेकिन पाकिस्तान में जो हो रहा है वह ज्यादा सूक्ष्म और सुनियोजित है। पाकिस्तान के हिंदुओं को द्वितीय श्रेणी के नागरिकों के रूप में माना जाता है और अक्सर जीवन के हर क्षेत्र-आवास, नौकरी, सरकारी कल्याण तक पहुंच में व्यवस्थित रूप से भेदभाव किया जाता है।

पाकिस्तान में हिंदुओं को बहुसंख्यक मुसलमानों में शामिल होने और भेदभाव और संप्रदायिक हिंसा से बचने के लिए धर्मांतरण के लिए लंबे समय से इस्लाम अपनाने के लिए तैयार किया जाता रहा है। हिंदू समुदाय के नेताओं का कहना है कि हाल ही में रूपांतरणों के लिए एक नए आर्थिक दबाव का उपयोग किया गया है। गरीब हिंदू समुदायों में इस्लाम अपनाना बहुत आम हो रहा है। मुस्लिम धर्मगुरुओं और धर्मार्थ समूहों ने साफ किया कि यदि वे धर्मांतरित हिंदुओं के घरों के सदस्यों को नौकरी या जमीन का प्रोत्साहन देते हैं, केवल तभी वे धर्मांतरित होते हैं।

कोरोनोवायरस महामारी के मद्देनजर पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था के पतन के साथ देश के अल्पसंख्यक हिंदुओं और अक्सर इसके सबसे गरीब सदस्यों पर दबाव बढ़ गया है। पाकिस्तान के संपन्न हिंदुओं के पास अपने स्वयं के धर्म के लोगों की मदद करने के लिए कुछ भी नहीं बचा है। ऐसा इसलिए है क्योंकि बहुत कम हिंदू बचे हैं। 1947 में स्वतंत्रता के समय हिंदुओं की पाकिस्तान में आबादी 20.5 प्रतिशत थी। अगले दशकों में यह प्रतिशत तेजी से कम हो गया और 1998 तक धर्म के आधार पर लोगों को वर्गीकृत करने की अंतिम सरकारी जनगणना में हिंदू पाकिस्तान की आबादी का सिर्फ 1.6 प्रतिशत थे। ज्यादातर अनुमान कहते हैं कि यह संख्या पिछले दो दशकों में और घट गई है।

सिंध प्रांत ने हाल के दशकों में अल्पसंख्यक हिंदुओं को दूसरे देशों में पलायन करते देखा है। अल्पसंख्यक हिंदू इन दिनों बहुत ही डरावने समय में रह रहे हैं। महामारी के कारण होने वाली और अधिक आर्थिक तबाही अधिक सांप्रदायिक हिंसा को जन्म दे सकती है, और इससे अल्पसंख्यक हिंदुओं पर धर्मांतरण का दबाव बढ़ सकता है। पूरे पाकिस्तान में हिंदू लड़कियों और महिलाओं के अपहरण और जबरन विवाह के जरिए जबरन धर्म परिवर्तन कराया जाता है।

पाकिस्तान के हिंदू अधिकार समूह भी आर्थिक दबाव में हो रहे तथाकथित स्वैच्छिक धर्मांतरण से परेशान हैं। उनका कहना है कि वे इस तरह के आर्थिक दबाव के तहत होते हैं कि वे किसी भी तरह जबरन धर्म परिवर्तन के समान हैं। अल्पसंख्यकों को जबरन धर्मांतरण से बचाने के लिए एक संसदीय समिति के सदस्य सत्तारूढ़ दल के एक पाकिस्तानी हिंदू सांसद लाल चंद महली ने कहा, "कुल मिलाकर, धार्मिक हिंदू अल्पसंख्यक पाकिस्तान में सुरक्षित महसूस नहीं करते हैं। लेकिन गरीब हिंदू उनमें से सबसे कमजोर हैं। वे बेहद गरीब और अनपढ़ हैं, और मुस्लिम मस्जिदें, दान और व्यापारी उनका आसानी से शोषण करते हैं और उन्हें इस्लाम में परिवर्तित होने का लालच देते हैं। बहुत सारा पैसा इसमें शामिल है। ”

ज्यादातर धर्मान्तरित हिंदू सिंध प्रांत के निम्न जाति के हिंदू थे। मुहम्मद अली-जिनका हिंदू नाम राजेश था, उन्होंने पिछले साल 205 अन्य लोगों के साथ परिवर्तन किया। पिछले साल उनके पूरे परिवार ने इस्लाम में परिवर्तित होने का फैसला तब किया था, जब एक मौलवी ने उन्हें बंधुआ मजदूरी से मुक्त करने की पेशकश की थी, जिसमें वे फंसे हुए थे और ऋण के कारण अवैतनिक गिरमिटिया नौकर के रूप में काम कर रहे थे। अली मूल रूप से भील जाति से हैं।

निचली जाति के पाकिस्तानी हिंदू अक्सर बंधुआ मजदूरी के शिकार होते हैं। 1992 में इस प्रथा को रद्द कर दिया गया था, लेकिन यह प्रथा अभी भी प्रचलित है। ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स का अनुमान है कि 30 लाख से अधिक पाकिस्तानी कर्ज के कारण बंधुआ मजदूर की जिंदगी गुजार रहे हैं। मुसलमान जमींदार गरीब हिन्दुओं को ऐसे बंधन में फँसा देते हैं कि वे कर्ज को कभी चुका ही नहीं सकते।.