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कर्ज चाहिए, पहले बताओ क्या स्टेटस है गिलगिट-बाल्टिस्तान का ?

कर्ज चाहिए, पहले बताओ क्या स्टेटस है गिलगिट-बाल्टिस्तान का ?

सवाल आसान है..दोनों ही भारत के हिस्से हैं जिन पर पाकिस्तान ने कब्जा जमा रखा है और विश्व बैंक जैसी संस्थाओं ने पाकिस्तान को साफ-साफ कह दिया है कि इनके नाम पर एक पैसे का कर्ज नहीं मिल सकता। दुनिया की आखों में धूल झोंकने के लिए पीओके यानि पाक अधिकृत कश्मीर को पाकिस्तान ने (आजाद कश्मीर) देश का का दर्जा देने की कोशिश की, वहां का एक अलग झंडा भी फहराया, फौजी चुनाव करवा कर प्रधानमंत्री भी चुनते रहे।

लेकिन अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसकी कानूनी स्थिति स्पष्ट है। इन दोनों क्षेत्रों को विवादित इलाका माना जाता है और यही वजह है कि विश्व बैंक जैसी वित्तीय संस्थाएं इनके लिए ऋण नहीं दे सकतीं। पाकिस्तान ने कई बार कोशिश की लेकिन हर बार उसे खाली हाथ लौटना पड़ा। आज ये दोनों इलाके शायद दुनिया के सबसे पिछड़े इलाके हैं। कोविड-19 के नाम पर जो भी सहायता मिली, यहां के लोगों तक नहीं पहुचीं।

जीबी यानि गिलगिट-बाल्टिस्तान की नेशनल इक्वालिटि पार्टी के चेयरमैन सज्जाद राजा के मुताबिक, "न कोई अच्छा डाक्टर है, न ही ढंग का अस्पताल। यहां के अस्पताल जाओ तो कहते हैं रावलपिंडी जाओ, इस्लामाबाद जाओ..सिर्फ एक एक वेंटिलेटर है मुजफ्फराबाद में। हमने यूएन में लिखा, मानवाधिकार संगठन को लिखा लेकिन अगले दिन फौज दरवाजे पर पहुंच गई।"

वाशिंगटन स्थित इंस्टिट्यूट आफ गिलगिट-बाल्टिस्तान के डायरेक्टर सेंग हसनान सेरिंग का कहना है, "जीबी (गिलगिट-बाल्टिस्तान) में कोई मेडिकल हेल्प नहीं है। आपको पता है कि नैचुरल रिसोर्सेज में गिलगिट-बाल्टिस्तान काफी धनी है..पाकिस्तान और चीन यहां से अरबों डालर कमा रहे हैं लेकिन एक पैसा यहां के लोगों पर खर्च नहीं होता। अब आपके देश में कश्मीर और लद्दाख को अलग यूटी बना दिया है तो पाकिस्तान भी जीबी को अपना प्रोविंस बनाना चाहता है।"

सेरिंग और दूसरे जानकारों का कहना है कि पाकिस्तान अब जीबी को अपना राज्य बनाकर कानूनी तौर पर उसे पाकिस्तान का हिस्सा बनाना चाहता है। पाकिस्तान का यह कदम चीन की एक महत्वाकांक्षी परियोजना से जुड़ा है। चीन ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे यानी सीपीईसी (CPEC) में 62 अरब डॉलर का निवेश पर कर रहा है। चीन ने इसके लिए सड़क, राजमार्ग, रेल नेटवर्क, आर्थिक क्षेत्र और ऊर्जा परियोजनाएं बनाने के लिए पाकिस्तान के साथ कई समझौते भी किए हैं।

जीबी में 3000 किलोमीटर का क्षेत्र सीपीईसी का एक प्रमुख हिस्सा है। सीपीईसी का मकसद गिलगिट-बल्टिस्तान क्षेत्र में काराकोरम राजमार्ग का विस्तार करना है। साथ ही इसमें औद्योगिक पार्क, विशेष आर्थिक क्षेत्र, पनबिजली परियोजना, खनन परियोजना और रेलमार्ग का विस्तार शामिल है। फरवरी में चीन ने पाकिस्तान को चेतावनी दी थी कि वह इस विवादित क्षेत्र में ऐसी परियोजनाओं पर अरबों डॉलर का निवेश नहीं कर सकता। चीन के बैंक भी इसके लिए ऋण देने से मना कर चुके हैं।

इस बीच पाकिस्तान में चीन के नए राजदूत ने एक प्रस्ताव दिया कि जीबी को पाकिस्तान का राज्य बनाने के बाद गिलगिट-बल्टिस्तान और चीन के राज्य शिनजियांग को सिस्टर प्रोविंस बनाकर एक साथ आर्थिक और सामाजिक तौर पर विकसित किया जाए। गिलगिट-बाल्टिस्तान की सीमा चीन के शिनजियांग राज्य से मिलती हैं। चीन का कहना है कि बीआरआई के तहत यह इलाका पाकिस्तान को पूर्वी, पश्चिमी एशिया और यूरोप से जोड़ेगा। लेकिन यहां के लोगों को चीन पर भरोसा नहीं। उन्हें पता है किस तरह चीन, शिनजियांग के मूल निवासी उईगरों का नामोनिशान मिटाने पर अमादा है। गिलगिट-बल्टिस्तान के लोगों को यह डर सता रहा है कि उनके साथ भी यही होने वाला है। उनकी आशंका निराधार नहीं है। पाकिस्तान भी एक सुनियोजित तरीके से शिया बहुल वाले गिलगिट-बल्टिस्तान में सुन्नी पश्तूनों को बसा रहा है। आए दिन शिया और सुन्नी के बीच पाकिस्तानी आर्मी द्वारा प्रायोजित दंगे हो रहे हैं।

स्थानीय निवासी शहजाद मुगल का कहना है कि पिछले कुछ महीनों में यहां चीन की सरगर्मियां काफी बढ़ी हैं। बड़ी संख्या में चीनी सैनिक और मजदूर बसों के जरिए यहां पहुच रहे हैं, "इंडिया के कश्मीर के लोगों को पता नहीं, यहां क्या हो रहा है। मैंने तो वहां के रिश्तेदारों को बताया कि किस तरह यहां की महिलाओं की शादियां लोगों से जबर्दस्ती कराई जा रही हैं..कोई भी यहां सेफ नहीं है। इस इलाके में इतने चाईनीज आ गए हैं और मिलिट्री बेसेज बन रहे हैं। कहते हैं इस इलाके में इंटरनेशनल टूरिज्म डेवेलप हो रहा है..टूरिस्ट तो सिर्फ चाईना से आ रहा है।"

गिलगिट-बल्टिस्तान के स्थानीय लोगों में आक्रोश है। उन्होंने पाकिस्तान द्वारा गिलगिट-बल्टिस्तान को अपना राज्य बनाने की कवायद का विरोध करना शुरु कर दिया है। सरकारी दफ्तरों और स्कूल कालेजों का बहिष्कार शुरु हो चुका है । पीओके में भी यह आशंका है कि गिलगिट-बल्टिस्तान के बाद उनका नंबर आएगा। विदेशों में रहने वाले इन इलाकों के निवासियों ने अलग-अलग तरीकों से विरोध करना जारी रखा है। लेकिन पाकिस्तान ने तमाम विरोध के बीच गिलगिट-बल्टिस्तान को अपना राज्य बनाने का काम, पूर्व विदेशमंत्री सरताज अजीज की अध्यक्षता वाली कमेटी की सिफारिशों के आधार पर शुरु कर दिया है।

इसमें पहला कदम था, वहां चुनाव कराना। जिसके लिए पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट ने पाकिस्तानी संविधान को दरकिनार कर, हरी झंडी दे दी। पाकिस्तानी नेशनल एसेंबली में गिलगिट-बल्टिस्तान के 5 सांसद होंगे और इतनी ही संख्या वहां की सीनेट में होगी। गिलगिट विधानसभा में 33 सीटें होंगी। वहां चुनाव 15 नवबंर को हो रहे हैं। स्थानीय पत्रकार जफर सैयद का कहना है कि यह चुनाव असंवैधानिक हैं, "यह मसला भारत और पाकिस्तान के बीच दोनों के बीच है, कोई एक पक्ष फैसला नहीं कर सकता।"

पाकिस्तान की प्रमुख विपक्षी पार्टियां भी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान की सरकार के इस फैसले का विरोध कर रही हैं। धार्मिक संगठन जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (जेयूआई-एफ) के चीफ मौलाना फजलुर रहमान ने चेताया है, "चीन के कहने पर कश्मीर को दो भागों, गिलगिट-बाल्टिस्तान और आजाद कश्मीर में बांटना गलत है और कश्मीर के साथ गद्दारी है। कश्मीरियों के खून का सौदा चीन के साथ किया जा रहा है और इसके नतीजे न सिर्फ इमरान खान के लिए, पाकिस्तान के लिए भी खतरनाक होंगे।"

भारत ने पाकिस्तान के इस फैसले का पुरजोर विरोध किया है। भारत के विदेश मंत्रालय का कहना है कि इस्लामाबाद द्वारा क्षेत्र पर ‘‘अवैध’’ कब्जे को छिपाने के लिए ‘‘दिखावे की अवैध कार्रवाई’’ की जा रही है। इनसे केंद्र शासित क्षेत्र जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के हिस्से पर ‘‘अवैध कब्जे’’ को न तो छिपाया जा सकता है न ही पाकिस्तान के अवैध कब्जे वाले कश्मीर में लोगों के ‘‘घोर मानवाधिकार उल्लंघनों और शोषण’’ की बात को ढंका जा सकता है। बेहतर है कि पाकिस्तान इन इलाकों को खाली कर दे।

इस बीच खबर है कि सीपीईसी की योजना पर काम पिछले कई महीनों से रुका पड़ा है। हालांकि आधिकारिक तौर पर वजह करोना महामारी बताई जा रही है लेकिन पाकिस्तानी जानकारों के मुताबिक इमरान खान की सरकार का खजाना खाली पड़ा है। कर्ज में डूबे देश को और कहीं ऋण भी नहीं मिल रहा। चीन ने भी शर्त रखी है कि और कर्ज तभी मिलेगा जब गिलगिट-बाल्टिस्तान पाकिस्तान का राज्य बन जाएगा और चीन को वहां मनमानी करने की छूट मिल जाएगी।

पाकिस्तानी आर्मी चीफ जनरल कमर जावेद बाजवा ने वहां चुनाव कराने की जिम्मेदारी लेकर गिलगिट में डेरा डाल रखा है। लेकिन गिलगिट-बाल्टिस्तान में लोगो का विरोध जारी है। लोगों की मांग है कि चुनाव से पहले बाबा जान को रिहा करो। 2010 से बाबा जान चीन द्वारा बनाए जा रहे काराकोरम हाईवे के निर्माण का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना था गिलगिट-बाल्टिस्तान के मूल निवासियों को बेदखल किया जा रहा है। यही नहीं पर्यावरण के नियमों को अनदेखा किया जा रहा है, जिससे हुंजा घाटी में लगातार भू-स्खलन और भूकंप हो रहे हैं। 2011 में उन्हें आतंकवादी करार दे कर 71 साल की सजा सुनाई गई है। बाबा जान अकेले नहीं हैं, गिलगिट-बाल्टिस्तान के सैकड़ों ऐसे नेता हैं जो जेल में बंद हैं। पाकिस्तान के चुनाव आयोग ने बाबा जान की पार्टी के चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगा दी है। किसी को कोई शक नहीं कि सिर्फ इमरान खान की पार्टी की जीत तय है।.