Hindi News

indianarrative

Sher Bahadur Deuba नेपाल के पीएम नियुक्त, केपी ओली बर्खास्त, नेपाल में फिर भारी सियासी उठा-पटक

Nepal Political Crisis: शेर बहादुर देऊबा बने पीएम

नैपाल की सियासत एक बार फिर बड़ा फेर-बदल हुआ है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर राष्ट्रपति बिद्यादेवी भण्डारी ने केपी ओली को बर्खास्त कर नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा को प्रधानमंत्री नियुक्त कर दिय है।  राष्ट्रपति भण्डारी ने देऊबा को शपथ भी ग्रहण करवा दी है। सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा मंगलवार को पांचवीं बार देश के प्रधानमंत्री बने। राष्ट्रपति विद्या देवी भंडारी ने संविधान के अनुच्छेद 76(5) के तहत उन्हें प्रधानमंत्री नियुक्त किया था। जिसके बाद अब देउबा ने शपथ भी ले ली है। देऊबा को 30 दिन के भीतर सदन में विश्वास मत हासिल करना होगा अगर उसके बाद देऊबा भी विश्वासमत हासिल नहीं कर पाए तो मध्यावधि चुनाव करवाए जांएगे। 

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर नेपाली संविधान विशेषज्ञों में मत भिन्नता है। कुछ संविधान विशेषज्ञों का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट किसी व्यक्तिविशेष को प्रधानमंत्री नियुक्त करने का आदेश नहीं दे सकता। यह संविधानेत्तर कार्यवाही है। अगर सुप्रीम कोर्ट को लगता है कि सदन के भीतर कुछ गलत हुआ है तो फिर से प्रक्रिया दोहराने का आदेश दिया जा सकता था। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से नेपाल में गलत परंपरा पड़ेगी। लोकतंत्र की सभी संस्थाओं को अधिकार हैं लेकिन किसी के अधिकारक्षेत्र में अतिक्रमण का अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने प्रजातांत्रिक प्रक्रिया और संसद के संवैधानिक अधिकारों का हरण किया है।

वहीं, दूसरे पक्ष का कहना है कि नेपाल के राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हरण कर लिया था। विश्वास मत न होने के बावजूद राष्ट्रपति ने केपी शर्मा ओली को दो-दो बार प्रधानमंत्री की शपथ दिला दी।नेपाल में लोकतंत्र की हत्या को रोकने के लिए सुप्रीम कोर्ट को इतना सख्त आदेश देना पड़ा। 

बहस इस बात को लेकर भी चल रही है कि केपी ओली और राष्ट्रपति भण्डारी ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश को चुनौती क्यों नहीं। कम से कम रिव्यू पिटीशन तो डाली ही जा सकती थी। तो फिर केपी शर्मा ने रिव्यू पिटीशन क्यों नहीं डाली। इस बारे में नेपाल  के वरिष्ठ पत्रकार का कहना है कि राष्ट्रपति विद्यादेबी ने एक बयान पहले दिया था कि सुप्रीम कोर्ट तय नहीं करेगा कि प्रधानमंत्री कौन होगा, यह सदन तय करेगा। संभवतः इसी बात को नेपालकी न्यायपालिका ने प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया और जनता के आक्रोश को भांपते हुए केपी शर्मा ओली की नियुक्ति को अवैध ठहराते हुए सीधे शेर बहादुर देऊबा को प्रधानमंत्री नियुक्त करने के आदेश दे दिए।  

यह भी कहा जा रहा है कि केपी शर्मा ओली ने इस समय सुप्रीम कोर्ट के आदेश को चुनौती न देकर देश को एक गंभीर संकट से बचा लिया है। अगर ओली सुप्रीम कोर्ट के आदेश को मानने से इंकार करते या चुनौती देने जाते तो विपक्ष जनता के एक वर्ग को संघर्ष के लिए उकसा सकता था। देश में गृहयुद्ध की स्थिति बन सकती थी। देश को इस संकट से बचाने के लिए ओली ने फिल्हाल शांत रहने का फैसला लिया। 

ये तो सभी जानते है कि इससे पहले विपक्ष के नेता रहते हुए शेर बहादुर देऊबा के पास सरकार बनाने का मौका था, लेकिन लाख कोशिशों के बाबजूद जब उन्हे लगा कि वो पर्याप्त संख्याबल प्रदर्शित नहीं कर पाएँगे तो खुद उन्होंने ही राष्ट्रपति को इस आश्य का पत्र दिया था। शेर बाहदुर देऊबा पत्र मिलने के बाद ही राष्ट्रपति विद्या देवी भण्डारी ने केपी शर्मा ओली को प्रधानमंत्री नियुक्त किया और मध्यावधि चुनाव का ऐलान किया था।

नेपाल की बदली हुई परिस्थितियों में अब देखना होगा कि क्या जिस विपक्ष के पास पर्याप्त संख्या बल नहीं था वो सदन में किस तरह बहुमत साबित करेगा। उस समय सुप्रीम कोर्ट की क्या स्थिति होगी। 

इससे पूर्व देउबा चार बार- पहली बार सितंबर 1995- मार्च 1997, दूसरी बार जुलाई 2001- अक्टूबर 2002, तीसरी बार जून 2004- फरवरी 2005 और चौथी बार जून 2017- फरवरी 2018 तक- प्रधानमंत्री रह चुके हैं। संवैधानिक प्रावधान के तहत प्रधानमंत्री के तौर पर नियुक्ति के बाद देउबा को 30 दिनों के अंदर सदन में विश्वास मत हासिल करना होगा।