नेपाल सरकार ने भारत और चीन के बीच सैन्य तनाव को देखते हुए अपने सुरक्षा बलों और खुफिया एजेंसियों को तिब्बती शरणार्थियों की आवाजाही पर करीब से नजर रखने का निर्देश दिया है।
इससे पहले नेपाली सेना ने एक सुरक्षा समीक्षा की थी, जहां यह स्पष्ट तौर पर कहा गया कि भारत और चीन के बीच 'शत्रुता' की स्थिति में ये तिब्बति शरणार्थी सुरक्षा के लिहाज से खतरा होंगे।
सूत्रों ने कहा कि चीनी सीमा के पीछे गुप्त संचालनों में भारत के विशेष सीमांत बल (एसएफएफ) में कुछ तिब्बती शामिल हैं, जिसके बाद चीन के दबाव में नेपाल ने तिब्बती शरणार्थियों पर नजर रखने का निर्णय लिया है।
इससे पहले एक एसएफएफ सूबेदार नेइमी तेनजीन पूर्वी लद्दाख के चुसूल में 30 अगस्त को एक पहाड़ी की चोटी पर कब्जा जमाने के अभियान में शहीद हो गए थे। जिसके बाद चीन का ध्यान तिब्बती शरणार्थियों पर गया है।
एसएफएफ की स्थापना 1962 भारत-चीन युद्ध के तुरंत बाद भारत की खुफिया ब्यूरो ने की थी। पहले इसका नाम इस्टेबलिस्मेंट 22 था। बाद में इसका नाम एसएसएफ कर दिया गया, यह अब कैबिनेट सचिवालय के दायरे में आता है।
अब चीन नेपाल में तिब्बती शरणार्थियों पर कड़ी नजर रखना चाहता है। चीन के साथ नेपाल 1236 किलोमीटर लंबी सीमा को साझा करता है। नेपाल में करीब 20,000 तिब्बती शरणार्थी हैं। इनमें से कई पूर्व के डिटेंशन कैंपों में रहते हैं, जिसे स्थायी सेटलमेंट में बदल दिया गया है।
नेपाल और चीन के बीच 2008 से कई सुरक्षा और खुफिया जानकारी साझा करने वाले समझौते प्रभावी हैं। चीन के प्रभाव में आकर नेपाल तिब्बती लोक प्रशासनों पर प्रतिबंध लगाने पर सहमत हो गया था। इसके साथ ही वह तिब्बती समुदाय, इसके नेताओं पर कड़ी निगरानी रखता है।
सूत्रों के अनुसार, "नेपाल में अधिकतर तिब्बतियों के पास रेसिडेंट परमिट नहीं है। वे लोग बैंक खाते भी नहीं खोल सकते और अपनी संपत्ति भी नहीं खरीद सकते।".