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China की दखलंदाजी से Nepal का सियासी संकट गहराया, Kathmandu पर कब्जे के लिए Beijing रच रहा साजिश

Nepal Political Crisis

'चीन की साजिशों के चलते नेपाल का सियासी संकट गहराता जा रहा है। नेपाली कांग्रेस के नेता शेर बहादुर देउबा और मार्क्सवादी नेता प्रचण्ड जनता समाजवादी के नेता महन्ता ठाकुर को मनाने में विफल रहे हैं। अगर जनता समाजवादी पार्टी के दोनों गुटों का समर्थन नहीं मिला तो देउबा का पीएम बनना मुश्किल होगा और चीन परोक्ष रूप से काठमाण्डू पर राज करेगा!'

नेपाल का सियासी संकट गहराता जा रहा है। नेपाली संसद में विश्वास मत हारने के बाद ओली फिल्हाल कार्यवाहक प्रधानमंत्री हैं। राष्ट्रपति बिद्या देबी भण्डारी ने विपक्षी दलों को स्थाई सरकार बनाने के दावे के साथ आमंत्रण दिया है। इस आमंत्रण का आज तीसरा और आखिरी दिन है, लेकिन अभी तक विपक्षी एकता के दावे हवा होते दिखाई दे रहे हैं। हालांकि, नेपाली कांग्रेस ने कहा है कि वो सरकार बनाने का दावा पेश करेगी। नेपाली कांग्रेस के नेता शेर बहादुर देउबा ने प्रचण्ड गुट के नेताओं के अलावा समाजवादी पार्टी के नेताओं से बात की है। बुधवार को देर रात तक चली बैठकों का क्या नतीजा रहा- यह किसी को पता नहीं है।

ध्यान रहे, बीती 10 मई को सदन में केपी शर्मा ओली के विश्वास मत को पक्ष में महज 93 वोट ही मिले थे। उनकी पार्टी के ही 28 सांसद वोटिंग में शामिल नहीं हुए थे। इसके अलावा जनता समाजवादी पार्टी के 15 सांसदों ने भी व्हिप जारी होने के बावजूद ओली सरकार के खिलाफ वोट किया था। इन 15 वोटों को मिलाकर विश्वास मत के विरोध में 124 सांसदों ने वोट किया था। इस समय सदन के निचले सदन में कुल संख्या 267 है। इसका मतलब यह कि जिसके पास 134 सांसद होंगे वो नेपाल की सत्ता पर काबिज हो सकता है।

नेपाल की बदली हुई सियासी परिस्थितियों में जनता समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष महन्ता ठाकुर ने ओली को सपोर्ट कर सकते हैं। उनके पास 14 सांसद है। जबकि जनता समाजवादी पार्टी के दूसरे नेता उपेंद्र यादव ओली के खिलाफ हैं उनके साथ 15 सांसद हैं। नेपाली कांग्रेस के नेता शेर बहादुर देउबा को एनसीपी-एमसी ने समर्थन का वादा किया है। एनसीपी-एमसी के 48 सांसद हैं। सपकोटा को मिला कर 49 हैं। सपकोटा सदन अध्यक्ष हैं। उनका वोट तभी आवश्यक होगा जब सदन में दोनों पक्षों की संख्या एक बराबर हो जाए।

दरअसल कहा यह जा रहा है कि सत्ता की चाबी खनाल और नेपाल गुट के हाथ में अब भी है। अगर खनाल-नेपाल गुट के सांसदों ने तटस्थ रह कर ओली के पक्ष में वोट कर दिया होता तो आज परिस्थितियां कुछ और ही होतीं। विश्वास मत पहले खनाल-नेपाल गुट ने सामुहिक इस्तीफा देने की घोषणा की थी लेकिन ऐन मौके पर उन्होंने तटस्थ रहने का फैसला किया। ऐसे में समझा जा रहा है कि ओली और खनाल-नेपाल गुट में समझौता हो सकता है। अगर खनाल-नेपाल के गुट के सांसदों ने इस्तीफा नहीं दिया तो शेऱबहादुर देउबा को सदन में 134 सांसदों का समर्थन जुटाना मुश्किल होगा। क्यों कि नेपाली कांग्रेस के सांसदों की संख्या 61 और एनसीपी-एमसी के पास कुल 49 सांसद है। इन दोनों को मिलाकर मात्र 110 सांसदहैं। अगर जनता समाजवादी पार्टी के 15 सासंद भी आ जाएं तो भी 125 संख्या है। इसमें से एक सदन अध्यक्ष सपकोटा हैं। इस तरह सक्रिए सांसद 124 ही हैं। 10 सांसदों का समर्थन बहुत मुश्किल है। यह तभी संभव है जब ओली के तटस्थ 28 सांसदों की स्थिति साफ हो।

इस समीकरण के विपरीत ओली के 94 सांसदों के साथ खनाल-नेपाल के 28 सांसद और 14 सांसद जनता समाजवादी पार्टी आ गए तो एक बार फिर ओली के पक्ष के सांसदों की संख्या 134 हो सकती है और वो फिर से सरकार बनाने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं, लेकिन ये तभी संभव है जब नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा या तो सरकार बनाने का दावा पेश न कर सकें या फिर स्थाई सरकार के सबूत पेश न कर सकें।

नेपाल में दूसरे परिस्थितियां ही साकार होने की संभावना दिखाई दे रही है। खबरें आ रही हैं कि पीएम ओली ने अपनी पार्टी की स्थाई कमेटी की आकस्मिक बैठक बुलाई है। ओली के प्रतिनिधि सुभाष नेवांग ने कहा है कि इस बैठक में खनाल-नेपाल गुट की मांगों पर विचार किया जाएगा। बैठक में समाधान निकाल कर खनाल-नेपाल को फिर से साथ लाने की संभावना है। ऐसा समझा जा रहा है कि पीएम ओली फिलहाल 30 दिन के लिए अपनी कुर्सी पक्की करना चाहते हैं। सबकुछ ठीक रहा और 30 दिन के बाद फिर से विश्वास मत हासिल कर लिया तो ओली अपना कार्यकाल पूरा करेंगे ही, लेकिन 30 दिन बाद फिर से विश्वास मत हासिल नहीं भी कर पाए तो संविधान के अनुच्छेद 76 (3) के तहत देश में आम चुनाव ओली के नेतृत्व में ही होंगे। यह भी संभावना है कि कोविड के कारण नेपाल में आम चुनावों की घोषणा में विलम्ब हो सकता है और ओली को अपनी स्थिति मजबूत करने का पर्याप्त मौका रहेगा।