ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि पीएम ओली ने अपनी कुर्सी बचाने के लिए पुख्ता इंजताम कर लिए हैं। अब चाहे सर्वोच्च न्यायालय सदन को बहाल करे या राष्ट्रपति के फैसले को रद्द करे, प्रधानमंत्री की कुर्सी पर पीएम ओली ही विराजमान रहेंगे। कुछ लोग तो यह भी कह रहे हैं कि ओली ने ये गुणा भाग काफी पहले कर लिया था। इसीलिए शी जिनपिंग के खास दूत को भी उन्होंने घास नहीं डाली। हालांकि गोऊ ये झोऊ की वापसी के बाद भी शी जिनपिंग के खुफिया दूत अभी काठमाण्डू में जमे हुए हैं।
प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली और नेपाली कांग्रेस के अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा नेपाल में नई राजनीतिक समीकरणों को जन्म दे रहे हैं। ये समीकरण सर्वोच्च न्यायालय में लंबित सदन भंग करने के खिलाफ याचिकाओं पर फैसले पर भी निर्भर करेंगे। अगर सर्वोच्च न्यायालय संसद भंग करने के फैसले को पलट देता है तो फिर ओली नेपाली कांग्रेस को समर्थन शेर बहादुर देउबा को प्रधानमंत्री बना सकते हैं या फिर से छह-छह महीने वाला फार्मूला लागू किया जा सकता है। इसके अलावा भारत में पूर्व की यूपीए सरकार की तरह ओली नए गठबंधन के मुख्यमंत्री रहे और यूपीए की तरह ही एक काउंसिल बने जिसके अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा बनाए जाएं। यानी सरकार की कमान ओली के हाथ और ओली की कमान को-ऑर्डिनेशन काउंसिल के चेयरमैन के हाथ में।
नेपाल में यह कयास इसलिए लगाए जा रहे हैं क्यों कि ओली और शेर बहादुर देउबा के संबंध पिछले कुछ दिनों काफी मधुर चल रहे हैं। सदन में जब को-ऑर्डिनेशन काउंसिल एक्ट लाने वाले थे तो पुष्प कमल दहल प्रचण्ड से भी पहले देउबा को पहले पता था। इसके बाद जब प्रचण्ड ने सदन भंग करने के खिलाफ अभियान में नेपाली कांग्रेस को बुलाया तो नेपाली कांग्रेस ने कन्नी काट ली थी, और अब खुलेआम ओली और देउबा की मुलाकात से लगभग काफी कुछ साफ हो चुका है।
नेपाली कांग्रेस के नेता गगन थापा ने सार्वजनिक रूप से यह स्वीकार किया है कि ओली और देउबा के बीच सत्ता की साझेदारी पर बातचीत चल रही है। लेकिन थापा ने कहा कि यह होना तभी संभव है, अगर सदन को बहाल करने का आदेश सुप्रीम कोर्ट देगा। लेकिन देउबा के करीबी नेताओं ने इस बारे में लगाई जा रही अटकलों को बेबुनियाद बताया है। ओली के करीबी नेता और विदेश मंत्री प्रदीप गयवाली ने भी ऐसी चर्चाओं को गैर-जरूरी अटकलबाजी कहा है।
यहां के कुछ विश्लेषक देउबा के ताजा रुख के पीछे भारत का हाथ भी देखते हैं। नेपाली कांग्रेस की नीति हमेशा से भारत के हक में झुकी रही है। अब ओली चीन की मंशा को ठुकराते हुए दिख रहे हैं। ऐसे में देउबा की उनसे करीबी के पीछे इस कोण भी देखा जा रहा है।
उधर माना जा रहा है कि अब चीन का दांव दहल और माधव कुमार नेपाल गुट के ऊपर है। एक ताजा खबर के मुताबिक चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के चार सदस्यीय दल के नेपाल से लौटने के बावजूद चीनी दूत नेपाल में मौजूद हैं। चीनी कम्युनिस्ट पार्टी का दल पार्टी के अंतरराष्ट्रीय विभाग के उप मंत्री गुओ येझाउ के नेतृत्व में आया था।
उसे नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में एकता कराने में सफलता नहीं मिली। तब वह पिछले हफ्ते बुधवार को बीजिंग लौट गया। लेकिन यहां पर्यवेक्षकों का कहना है कि गुओ के नेतृत्व में आया दल चीन का औपचारिक प्रतिनिधिमंडल था। उसके बाद भी चीनी दूत यहां मौजूद हैं। औ
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