तालिबान का अफगानिस्तान में लौट आना भारत के लिए बुरे संकेत हैं। भले ही भारत तालिबान पर कुछ बोल नहीं रहा हो पर सुरक्षा एजेंसियों को ये पता है कि आने वाले दिन मुश्किल से भरे हो सकते हैं। गुरुवार को हुए काबुल एयरपोर्ट ब्लास्ट की जानकारी भारतीय एंजेंसियों को थी और पहले भारत ने ही बताया था इसके पीछे IS का हाथ है। कई आतंकी संगठन ऐसे हैं जिनके पाकिस्तान की एजेंसी आईएसआई से सांठगांठ है। ऐसे में भारत में हमला करने को कोई भी मौका पाकिस्तान नहीं छोड़ेगा।
जानकारों का मानना है कि जिस तरह की तस्वीर उभर रही है, यह आने वाले दिनों में कश्मीर के लिए भी खतरनाक संकेत है। तालिबानी आतंकी और आईएसआईएस के गठजोड़ इस पूरे इलाके में बड़ी चुनौती बन सकता है। सामरिक जानकार पीके मिश्र का कहना है कि काबुल का हमला चेतावनी है। यह अमेरिका, नाटो और अन्य प्रभावी देशों को समझना होगा कि तालिबान कितना भी इससे पल्ला झाड़े लेकिन हकीकत यही है कि तालिबान आतंकी, आईएस और अलकायदा ने हाथ मिला लिया है। उन्होंने कहा कि इनकी जड़ हमारे पड़ोस पाकिस्तान में है। इसलिए ये हमारे लिए बहुत चिंता की बात है। तालिबान में आतंकी संगठनों की मजबूती का फायदा पाकिस्तान में बैठे आतंकी गुट उठाएंगे और नया लश्कर, जैश के साथ इनका नया गठजोड़ कश्मीर में अस्थिरता के लिए आईएसआई का हथियार हो सकता है।
जानकारों का कहना है कि आईएस केपी की अफगानिस्तान में मौजूदगी कई मायनों में खतरा है। पिछले कुछ समय से केरल सहित देश के अलग-अलग हिस्सों में आईएस प्रेरित आतंकी पकड़ मे आए हैं। जिनमें से कुछ का संबंध आईएस के से भी रहा है। ऐसे में सुरक्षा एजेंसियों को खास सतर्क रहकर दुनिया भर की एजेंसियों से इनपुट साझा करना चाहिए। ये साफ हैं कि आईएस-केपी को पाकिस्तान का सपोर्ट है। 2014 में तहरीक-ए-तालिबान से अलग होकर कुछ तालिबान लड़ाकों ने आईएस-केपी गुट बनाया। ये बागी लड़ाके मुल्ला फजलुल्लाह की खिलाफत कर अलग हुए थे।
बगदादी के मरने के बाद ऐसा लगा जैसा ISIS खत्म हो गया। लेकिन उसके लड़के हर जगर एक्टिव रहे। खालिद खुरासानी ने सभी को फिर से जोड़ा और इस मॉड्यूल ने लश्कर-ए-जांघवी, लश्कर-ए-इस्लाम को मिलाकर नए फौज तैयार की। इस आतंकी सगंठन कई बड़े आतंकी हमले को आंजान दिए हैं।