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पाक फौज की सरपरस्ती में है अफगान तालिबान, उन्हें चाहिए शरिया और सत्ता, सीज फायर नहीं

पाक फौज की सरपरस्ती में है अफगान तालिबान, उन्हें चाहिए शरिया और सत्ता, सीज फायर नहीं

अफगानिस्तान में शांति बहाल करने की कोशिश में अफगान सरकार और तालिबान के बीच दूसरे दौर की बातचीत कतर की राजधानी दोहा में हो रही है। अमेरिका की तरफ से इस शांति वार्ता के लिए तैनात प्रतिनिधि जल्माय खलीलजाद की कोशिश है कि मौजूदा राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पद पर रहते इस बातचीत में कोई फैसला जरुर हो। ट्रंप का कार्यकाल 20 जनवरी को खत्म हो रहा है। लेकिन खलीलजाद को भी पता है कि यह काम इतना आसान नहीं। खुद उन्हें भी भरोसा नहीं है कि अगले दो हफ्ते में कोई परिणाम निकल सकता है।
<h4>खलीलजाद के बयान पर किसी को भरोसा नहीं</h4>
सोमवार को उन्होंने दोनों पक्षों से अपील करते हुए कहा है कि पिछले 42 सालों में अफगानिस्तान के लोग हिंसा के शिकार हैं और अब इस मौके को हाथ से नहीं जाने दिया जाना चाहिए । लेकिन खलीलजाद के इस बयान पर न तो अफगान सरकार और ना ही अफगानिस्तान के लोगों का कोई भरोसा है। दोनों पक्षों की बातचीत का पहला दौर पिछले साल 12 सितंबर को शुरु हुआ था और पिछले चार महीनों में तालिबान के हमलों में काफी तेजी आयी है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक सिर्फ दिसंबर महीने में ही, राजधानी काबुल में 200 बेगुनाह लोगों की जानें गईं हैं। (टार्गेट किलिंग ) के तहत काबुल विश्वविद्यालय पर आत्मघाती हमला किया गया, अफगानिस्तान के First Vice Presedent पर कई बार जानलेवा हमला किया गया। काबुल के डिप्टी गवर्नर की कार पर स्टिकी बम (Magnetic bomb) लगाकर उन्हें मारा गया। पांच पत्रकारों और कई बुद्धिजीवियों को चुन चुन कर मारे जाने का सिलसिला जारी है।
<h4>बेनामी हमला करते हैं तालिबान</h4>
हांलाकि तालिबान ने इन आतंकी वारदातों में अपना हाथ होने से इंकार करता रहा है लेकिन अफगानिस्तानी इंटेलिजेंस के मुताबिक यह तालिबान की नई चाल है। पहले की तरह अब वो इन हमलों की जिम्मेदारी नहीं ले रहा। देश के 30 फीसदी हिस्सों में अफगानी सेना और तालिबान के बीच जंग जारी है। अफगानिस्तान के राष्ट्रपति ने शांति के बातचीत के बीच सीजफायर की अपील कई बार की लेकिन तालिबान नहीं माना। अमेरिका और तालिबान के बीच हुए समझौते के तहत अफगानिस्तान सरकार को 5000 तालिबानी कैदियों को रिहा करना पड़ा था और रिहा होते ही यह सारे कैदी तालिबान के साथ मिल कर लड़ाई लड़ रहे हैं।
<h4>तालिबान ने खड़ी कर ली बड़ी फौज</h4>
अफगानिस्तान के इंटेरियर मिनिस्टर मसूद अंद्राबी के मुताबिक, अमेरिकी समझौते के बाद, तालिबान ने एक बड़ी फौज खड़ी कर ली है और एक बड़ी लड़ाई की तैयारी कर रहा है। जेल से छूटते ही कई तालिबानी लड़ाके पहले पाकिस्तान में रह रहे अपने परिवारवालों से मिलने गए और उसके बाद तालिबान के नेताओं ने सबको वापस मोर्चे पर बुला लिया। वो हमारी फौज से लड़ रह रहे हैं। तालिबान शांति को लेकर कतई गंभीर नहीं है । वो तो इंतजार कर रहा है अमेरिकी सेना के वापस लौटने का। अफगानिस्तान के गृहमंत्री अंद्राबी का कहना है (पिछले दिनों कुछ हत्यारे पकड़े गए हैं जिन्होंने तालिबान के कहने पर टार्गेट किलिंग यानि लोगों को चुन चुन कर मारा था। तालिबान सिर्फ वॉर एंड पीस (war and peace) का खेल, खेल रहा है और पाकिस्तान के साथ मिल कर दुनिया की आंखों में धूल झोंक रहा है।
<h4>तालिवान को सीज फायर नहीं शरिया चाहिए</h4>
अफगान सरकार के डेलिगेशन के नेता मासूम स्तानिकजई ने कुछ दिनों पहले एक टेलिविजन इंटरव्यू में कहा था कि हमारी सबसे पहली प्राथमिकता है सीज फायर लेकिन तालिबान इस मुद्दे पर बात ही नहीं करता। उसकी प्राथमिकता है पहले इस्लामिक कानून । अब दूसरे दौर की बातचीत के लिए एक रुपरेखा पर हम दोनों में एक broader राय बनी है लेकिन किसी भी मुद्दे पर विस्तार से बातचीत तो हुई नहीं है।
<h4>पाकिस्तानी आर्मी के संरक्षण में तालिबान के बड़े नेता</h4>
पहले दौर की बातचीत 2 दिसंबर को खत्म हुई थी और उसके बाद तालिबान के सभी नेता, पाकिस्तान पहुंच गए थे। तालिबान के बड़े नेताओं का परिवार पिछले दो दशकों से पाकिस्तान में आर्मी की देखरेख में रह रहा है। उनमें से कई हैं जिन पर कुछ नॉटो देशों ने ईनाम घोषित कर रखा है। जानकारों का कहना है कि तालिबान पर पूरी तरह से पाकिस्तानी आर्मी कब्जा है। पाकिस्तानी पत्रकार रहीमुल्लाह युसूफजई के मुताबिक (पाकिस्तानी आर्मी पूरी तरह से अफगान पॉलिसी पर हावी है, इसमें इमरान खान का कोई दखल नहीं और यह बात अमेरिका और दूसरे देशों को पता है। पाकिस्तान और अफगानिस्तान मामलों के जानकार अफ्रासियाब खट्टक के मुताबिक  अमेरिका और तालिबान समझौता किसने कराया था, आर्मी ने। अमेरिकी दूत जल्माय खलीलजाद समेत सभी बड़े नेता पहले सीधे आर्मी हेडक्वार्टर जाते हैं उसके बाद पाकिस्तानी नेताओं से मिलते हैं। यही वजह है कि अफगान, तालिबान पर भरोसा नहीं करते।

इस बीच तालिबान ने अपने लड़ाकों से कहा है कि वो अफगानिस्तानी सेना के खिलाफ जंग जारी ऱखें। मीडिया में लीक हुई एक खबर के मुताबिक, पिछले दिनों मुल्ला फजल मजलूम, जो दोहा में मौजूद तालिबानी डेलिगेशन का सदस्य है, पाकिस्तान के सीमावर्ती क्षेत्र में तालिबान के कमांडरों की बैठक में कहा है कि अमेरिकी फौज के हटने के बाद, अफगानिस्तान पर तालिबान का ही राज होगा और पूरे देश में शरिया कानून लागू होगा। मुल्ला फजल तालिबानी शासक मुल्ला उमर का करीबी और उसके शासन में उप रक्षामंत्री था।

केवल तालिबान के नेता ही इस तरह के संकेत नहीं दे रहे हैं, बल्कि अमेरिका के पास भी यह खुफिया जानकारी मौजूद है कि संगठन का इरादा अमेरिका-तालिबान समझौते की शर्तों का पालन करने का नहीं है। अंतरराष्ट्रीय समाचार नेटवर्क NBC News के मुताबिक, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भी तालिबान से हुए समझौते के बाद यह आशंका जताई थी कि अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद, तालिबान संभवतः अफगान सरकार को हटाकर अपनी सत्ता स्थापित कर सकता है।

अफगान जानकार अतीकउल्लाह अमारखेल का कहना है तालिबान दो ट्रैक पर काम कर रहा है बातचीत और हिंसा। उसका उद्देश्य किसी भी तरह सत्ता हासिल करना है चाहे वो सत्ता बातचीत से हासिल करे या फिर लड़कर। मौजूदा सरकार को वो नहीं मानता। कुछ जानकारों का यह भी मानना है कि अफगानिस्तानी राष्ट्रपति अशरफ गनी की उम्मीदें अमेरिका के नव निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन पर टिकी हैं। उम्मीद की जा रही है कि वह सेना को अभी वापस नहीं बुलाएंगे। उनका मानना है कि अफगानिस्तान से सैनिकों की वापसी तब होनी चाहिए, जब यह सुनिश्चित हो जाए कि अफगानिस्तान में अफगान लोगों के लिए, अफगान द्वारा एक स्थिर सरकार हो। पाकिस्तान की यही चिंता है इसीलिए उसने तालिबानी नेताओं से कहा है कि बातचीत में अपना रुख अड़ियल नहीं रखें और जरुरत पडने पर सीज फायर की बात कुछ शर्तों के साथ मान लें।

अफगानिस्तान में एक भी दिन ऐसा नहीं जब आतंकी हमले न हो रहे हों। तालिबान नई तकनीकी के मैग्नेटिक बमों का इस्तेमाल करके अफगान सुरक्षाबलों, सरकारी नेताओं और अधिकारियों , सामाजिक कार्यकर्ताओं और पत्रकारों की हत्याएं कर रहे हैं।.