चीनी आकाओं को खुश करने के लिए बलोचों पर दमनचक्र चलाना पाकिस्तान के लिए भारी पड़ गया है। इमरान खान और आर्मी चीफ जनरल बाजवा ने आईएसआई के हाथों हजारा समुदाय के 11 खनिकों को कत्ल करवाके नई मुसीबत मोल ले ली। हालांकि छह दिन के देश व्यापी प्रदर्शन के बाद इमरान खान को झुकना पड़ा और सभी 11 खनिकों को दफ्न किया जा सका लेकिन इस हरकत से बलोच विद्रोह की आग में घी का काम कर दिया है।
दरअसल, चीनी सरकार पाकिस्तान पर पिछले काफी दिनों से दबाव डाल रही थी कि बलोचों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। उन पर नियंत्रण के लिए अगर उन्हें आतंकवादी घोषित करना पड़े तो वो भी करना चाहिए। लेकिन ईरान-अफगान सहित कुछ अन्य देशों के दबाव के कारण पाकिस्तान की सरकार ऐसा तो नहीं कर सकी लेकिन बलोचों में खौफ कायम करने के लिए 11 खान मजदूरों को जरूर मरवा दिया। यही पाकिस्तान और चीन दोनों के लिए भारी पड़ गया।
हाल के दिनों में पाकिस्तान के अधिकारियों ने चीन को खुश करने के लिए कई ऐसे दमनात्मक कदम उठाए जिससे हिंसा का नया दौर पैदा हो गया। इस हिंसा ने सीपीईसी को लेकर चीन के विश्वास को हिलाकर रख दिया है। पूर्व पुलिस अधिकारी और राष्ट्रीय आतंकवाद निरोधी अथार्टी के समन्वयक तारिक परवेज ने पिछले दिनों कहा था कि बलूच विद्रोहियों के हमले में काफी कमी आई है।
तारिक ने कहा कि सुरक्षाबलों की सख्ती और विद्रोहियों की हत्या से हिंसा की घटनाएं कम जरूर हुई हैं लेकिन इसकी उसे काफी कीमत चुकानी पड़ी है। यह स्थानीय बलोच लोगों के विरोध को दर्शाता है। बलोच विद्रोही अब फिर से एकजुट हो रहे हैं और नई रणनीति अपना रहे हैं। इन विद्रोहियों ने चीनी लोगों को भी निशाना बनाया है। बलूच पहले आत्मघाती हमले नहीं करते थे लेकिन अब वे इसे भी अंजाम दे रहे हैं। यही नहीं बलूच अब लोगों को बंधक भी बना रहे हैं।
पाकिस्तान के दक्षिणी पश्चिमी प्रांत बलूचिस्तान में गत वर्ष दिसंबर महीने में पाकिस्तानी सेना को एक भीषण हमले में अपने 7 जवान गंवाने पड़े थे। पाकिस्तानी सेना के ये जवान बलोचिस्तान में चीन की परियोजनाओं की सुरक्षा में लगे थे। इस हमले के बाद एक बार फिर से चीन का बलूचिस्तान के ग्वादर पोर्ट और फ्री ट्रेड जोन में अरबों डॉलर का निवेश संकट में आ गया।
बलोचिस्तान में हजारा मूल रूप से अफगानिस्तान के निवासी हैं जहां उनका प्रतिशत 19 फीसदी है। करीब दस लाख हजारा शिया मुसलमान ईरान में रहते हैं। पाकिस्तान भी करीब साढ़े छह लाख हजारा लोगों का घर है। इनमें से ज्यादातर क्वेटा में रहते हैं। अब हजारा समूदाय आतंकी संगठन लश्कर-ए-जांघवी और सिपाह-ए-सिहाबा जैसे आतंकी संगठन सक्रिय हैं जिनका मुख्य मकसद ही शिया समूदाय का पाकिस्तान से खात्मा करना है चाहे वो हजारा ही क्यों नह हो।
खनिज संपदा से भरा मगर गृह युद्ध जैसी स्थिति वाले बलोचिस्तान पर चीन की लंबे समय से निगाहें हैं। मगर वहां जारी हिंसा से चीन को दिक्कत पेश आ रही है। चीन पाकिस्तान पर बार-बार दबाव डालता है कि बलोचिस्तान में उसकी परियोजनाओं का विरोध कर हमले करने वाले संगठनों को वो अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आतंकी संगठन घोषित करने की पहल करे।
चीन गिलगिट, बाल्टिस्तान और बलूचिस्तान के बीच से अपना चाइना पाकिस्तान इकोनोमिक कोरिडोर बना कर दुनिया को ये दिखाना चाहता है कि उस इलाके पर उसका और पाकिस्तान का कब्जा है। बुनियादी ढांचा तैयार करने से चीन को लगता है कि उसे और पाकिस्तान को इससे दुनिया में एक स्वीकारोक्ति मिल जाएगी। मगर जिस तरह से चीन बलूचिस्तान के स्थानीय लोगों की जमीन हड़प रहा है वहां उसके खिलाफ काफी गुस्सा है। अब विरोध से चीन को अपने बेल्ट रोड इनिशिएटिव में दिक्कत आ रही है। अगर ये काम अधूरा रह गया तो उसके मंसूबे पूरे नहीं होंगे। तभी वो पाकिस्तान पर बलूचिस्तान में या तो शांति स्थापित करने या ताकत से लोगों को कुचल कर मनमानी करने की सोच रहा है।
चीन ने पाकिस्तान को इतना कर्ज दिया हुआ है कि उसकी वापसी असंभव है। ऐसे में चीन पाकिस्तान से बलूचिस्तान की जमीन का पट्टा मांग सकता है। इस कारण लोग चीन को आधुनिक ईस्ट इंडिया कंपनी भी बता रहे हैं जो घुसा तो पाकिस्तान में केवल एक सड़क निर्माण करने के लिए मगर अब वहां पर पूरे लाव लश्कर के साथ मौजूद है। जिसका विरोध पाकिस्तान चाह कर भी नहीं कर सकता। इसका ताजा उदाहरण ग्वादर की बाड़ाबंदी है। चीन ने 25 किलोमीटर रेडियस में ग्वादर की बाड़ाबंदी कर दी है। बलोच ही नहीं किसी भी पाकिस्तानी को इस एरिया में बिना परमीशन घुसने की इजाजत नहीं है।
.