जब से पाकिस्ता की सड़कों पर फ्रांस के राजदूत को निकाले जाने के मुद्दे पर हिंसा की वारदातें हुई हैं तब से इन आशंकाओं को बल मिलने लगा है कि पाकिस्तान सिविल वॉर की ओर बढ़ रहा है। पहली बार जब पाकिस्तान में गृहयुद्ध हुआ था तो बांग्लादेश बना था अब अगर गृहयुद्ध हुआ तो एक नहीं कई देश बन सकते हैं। पाकिस्तान की गतिविधियों पर नजदीक से निगाह रखने वाले इरफान रजा ने कहा है कि नाइंसाफी और गैरबराबरी बढ़ने की वजह से पाकिस्तान फिर से टूटने के कगार पर पहुंच गया है।
पाकिस्तान में नौकरशाही और फौज के हावी होने के कारण दूसरे गृहयुद्ध की आंशका को बलबती बनाती है। भारत की आजादी से एक दिन पहले आकार में आया पाकिस्तान 73 साल से लगातार अपने अस्तित्व को खोज रहा है। बार-बार तानाशाही को झलने वाला पाकिस्तान यही तय नहीं कर पाया है कि वो प्रजातांत्रिक देश है या इस्लामिक देश है या लिबरल देश है। विभिन्न विचारधारा और शासन व्यवस्थाओं के बीच झूल रहा पाकिस्तान कट्टरपंथ की ओर बढ़ गया है।
पाकिस्तान के सियासी नेताओं पर भ्रष्टाचार और विदेशी दलाल, धोखेबाज और पाकिस्तान के साथ गद्दारी के आरोप लगते रहे हैं। पाकिस्तान के सियासी और फौजी रहनुमा अपने पेट भरने और विदेशों में अपने परिवारों को सेटल करनें मे लगे रहते हैं। पाकिस्तानी सरकारों की प्राथमिकता में आज तक कभी शिक्षा और स्वास्थ्य रहा ही नहीं है। कम बुद्धि और शारीरिक व मानसिक तौर पर बीमार पाकिस्तानी जनता आपस में ही एक दूसरे के दुश्मन बनने जा रहे हैं। इतने सालों में पाकिस्तान की राष्ट्रीय पहचान ही नहीं पायी है।
बलोचिस्तान पर कब्जे के बाद से आ तक जितनी भी सरकारें पाकिस्तान में आई हैं वो बलूचों को दुश्मन ही मानती रही हैं। बलूच पाकिस्तान सरकार के खिलाफ आजादी की लड़ाई लड़ रहे हैं। सिंध में सिंधुस्थान की आजादी के लिए रैली-जलसे और नारे पाकिस्तान में आम बात है। पीओके और गिलगिट पर भी पाकिस्तान सिर्फ इसलिए दखल करती हैं क्यों कि भारत सरकार के नक्शे में ये दोनों आज भी हैं भारत में हैं भारत सरकार हर चुनाव में पीओके के लिए सीट खाली रखती है।