अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा हो गया है, रविवार को राजधानी काबुल स्थित राष्ट्रपति भवन को भी तालिबान ने अपने कब्जे में ले लिया है। अफगानिस्तान में तालिबान का कब्जा होते ही पाकिस्तान और चाइना का असली चेहरा सामने आने लगा है। दोनों देशों ने तालिबान सरकार को औपचारिक रूप से मान्यता देने के लिए तैयार होते नजर आ रहे हैं। इन दोनों देशों के साथ ही रूस और तुर्की भी तालिबान सरकार को मान्यता देंगे।
तालिबान का अब देश पर पूरी तरह से नियंत्रण हो गया है और अब माना जा रहा है कि जल्द ही संगठन 'इस्लामी अमीरात ऑफ अफगानिस्तान' की घोषणा कर सकता है। इधर खबर है कि देश के राष्ट्रपति अशरफ गनी ने अपने पद से इस्तीफा देने के बाद सरकारी अधिकारियों के साथ तजाकिस्तान भाग गए हैं। वहीं, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने चेतावनी देते हुए कहा है कि, अफगानिस्तान को 'आतंकवाद का प्रजनन स्थल' नहीं बनने दिया जा सकता है। लेकिन चीन और पाकिस्तान नई सरकार का स्वागत करने के लिए तैयार है। चीन की सरकारी मीडिया अपने लोगों को इस संभावित हालात को स्वीकार करने के लिए तैयर कर रही है कि सत्तारूढ़ कम्युनिस्ट पार्टी को इस्लामी समूह को मान्यता देनी पड़ सकती है।
चीन में पिछले महीने सरकारी मीडिया द्वारा विदेश मंत्री वांग यी की तस्वीरें जारी की गई थीं, जिसमें उन्हें पारंपरिक कपड़े पहने हुए तालिबान अधिकारियों के साथ कंधे से कंधे मिलाकर खड़े नजर आए थे। इसलिए यह तय है कि चीन के साथ साथ पाकिस्तान भी नई सरकार के स्वागत में पहले से ही साथ खड़े हैं, लेकिन रूस का समर्थन वाकई में चैका देने वाला है। रूस ने कहा कि इसकी अभी काबुल स्थित दूतावास को खाली करने की कोई योजना नहीं है। रूसी सरकारी मीडिया का कहना है कि तालिबान ने अफगानिस्तान में राजनयिक स्टाफ की सुरक्षा की गारंटी का वादा किया है। तालिबान प्रवक्ता सुहैल शाहीन ने कहा है कि संगठन के रूस के साथ अच्छे रिश्ते हैं और रूस और अन्य दूतावासों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए नीति बनाई गई है।
ईरान ने भी अपने राजनयिकों और कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कदम बढ़ाया है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने हाल के समय में तालिबान द्वारा किए गए अत्याचारों की निंदा करने से इनकार किया है। यानी अब कुल मिलाकर देखा जाए तो अफगानिस्तान में नई 'तालिबान सरकार' को चीन, पाकिस्तान, रुस, तुर्की और ईरान का भी साथ मिल गया है।