पाकिस्तान के फैसलाबाद में इस बार कट्टरपंथी मुसलमानों का कहर एक ईसाई लड़की पर टूटा है। इस लड़की को घर वालों के सामने ही पिछले साल 25जून को जबरन उठाया गया था। बच्ची को उठाकर लेजाने वाले हथियारबंद थे और काफी संख्या में थे। ईसाई बच्ची के पिता और परिवार के अन्य सदस्यों के सामने उसका अपहरण कर लिया गया था लेकिन वो लोग कुछ नहीं कर सके। अपहरण करने वालों ने चेतावनी दी थी कि उन्होंने फातिमा को फिर से पाने की कोशिश की तो उन्हें पछताना पड़ेगा। फातिमा को जबरन इस्लाम कबूल कराया गया है और उसकी शादी भी अपहरण करने वाले से ही जबरन कर दी गई है।
फातिमा के पिता नजदीक के पुलिस स्टेशन गए ताकि बच्ची के अपहरण की एफआईआर दर्ज कराई जा सके। पीड़ित ईसाई परिवार ने अपहरण करने वाले का नाम भी पुलिस को बताया लेकिन पुलिस ने उनकी मदद इसलिए नहीं की क्यों कि वो गैर-मुस्लिम थे। पुलिसकर्मियों ने ईसाई बच्ची के पिता को न केवल सहयोग देने से मना किया बल्कि उन्हें धक्के मार कर पुलिस स्टेशन से भगा दिया।
काफी दबाव बनने के बाद पुलिस ने केस तो दर्ज कर लिया लेकिन कार्रवाई कोई नहीं की। ईसाई बच्ची को उसके घर से 110किमी दूर ले जाकर बलात्कार किया। अपहरण करने वालों ने उसके साथ गुलामों जैसा व्यवहार किया। बच्ची ने बताया कि ज्यादातर समय उसे जंजीरों से बांधकर रखा जाता था और उसे अपहरण करने वाले के घर की साफ-सफाई और अन्य काम करवाए जाते थे।
ध्यान रहे, पाकिस्तान की कुल आबादी में मात्र एक प्रतिशत ईसाई हैं। जिनकी तादाद करीब 20लाख है। मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि हर साल हजारों ईसाई और हिंदू-सिख लड़कियों का अपहरण किया जाता है। इन लड़कियों में से ज्यादातर को इस्लाम अपनाने के लिए मजबूर किया जाता है। पाकिस्तान में गैर मुसलिमों को काफिर माना जाता है और उनके अनुसार शरिया कहता है कि काफिरों के माल-असबाब और औरतों पर मुसलमानों का हक है।