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Pakistan का इतिहास- फेवरेट Army Chief बनाने वालों को होती है जेल-फांसी

Pakistan New Army Chief

Pakistan New Army Chief: ये तो दुनिया जानती है कि, पाकिस्तान के सत्ता का रास्ता आर्मी से होकर जाता है। देश की असली ताकत प्रधानमंत्री नहीं बल्कि, आर्मी चीफ के पास होती है। शुरू से ही पाकिस्तान के सत्ता में आर्मी चीफ (Pakistan New Army Chief) की चली है और अब भी चल रही है। किसकों सत्ता में लाना है किसको और कब बेदखल करना है ये सब आर्मी के हाथों में होता है। इस वक्त पाकिस्तान में सेना प्रमुख की नियुक्ति को लेकर घमासान मचा हुआ है। जनरल कमर जावेद बाजवा के बाद नियुक्ति किसकी होगी ये तो नहीं पता लेकिन, इमरान खान का कहना है कि उनके कार्यकाल को बढ़ा देना चाहिए। 2016 में आर्मी चीफ बने बाजवा का कार्यकाल 2019 में तीन साल के लिए बढ़ाया गया था और यही बाजवा, इमरान खान को सत्ता से बेदखल कर शाहबाज शरीफ के हाथों देश की कमान सौंप दी। इमरान खान का कहना है कि, शरीफ अपनी पसंद के व्यक्ति को सेना प्रमुख बनाना चाहते हैं। वो इसके लिए अपने भाई और पूर्व पीएम नवाज से भी बात किर रहे हैं। इन सबके के बीच यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि, शाहबाज शरीफ को अपने मनमुताबिक आर्मी चीफ (Pakistan New Army Chief) बनाना आगे चलकर किसी बड़ी मुसीबत से कम नहीं होगा। क्योंकि, जिन्होंने भी अपने पसंद के आर्मी चीफ बनाए वो या तो जेल गए या फिर फांसी पर चढ़ गए। ऐसे पाकिस्तान के दो नेता हैं, जिनमें से एक को फांसी पर लटका दिया गया तो एक को सत्ता से बाहर। पाकिस्तान विशेषज्ञों का कहना है कि, अपनी पसंद का आर्मी चीफ चुनना प्रधानमंत्री के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।

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जुल्फिकार अली भुट्टो का भरोसा ही दे गया धोखा
बात वर्ष 1976 की है जब पाकिस्तान के नौंवे प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो (Zulfikar Ali Bhutto) ने नए आर्मी चीफ को चुना। 1 मार्च 1976 को उन्होंने जनरल जिया-उल-हक को सेना प्रमुख के तौरा पर चुना। जनरल जिया एक थ्री स्टार जनरल थे। उनके नाम का ऐलान होते ही वो फोर स्टार रैंक पर आ गए। जुल्फिकार के इस फैसले पर कई लोगों ने नारागगी भी जताई। यही आर्मी चीफ प्रधानमंत्री को फांटी पर लटकाने का कारण भी बने। दरअसल, उस वक्त जनरल जिया के अलावा जनरल माजिद मलिक भी भुट्टो के फेवरेट थे लेकिन, एक इंटरनेशनल होट स्कैंडल में उनका नाम आ जाने के चलते उन्होंने जनरल जिया के नाम का चयन किया। उन्हें एक ऐसे जनरल की तलाश थी जिसका राजनीति से कोई लेना देना न हो और इसमें जिया-उल-हक एकदम फिट बैठ रहे थे। उनके बर्ताव को देखकर भुट्टो को लगता था कि, वो राजनीति से दूर रहेंगे। जनरल जिया का कार्यकाल कार्यकाल शुरू होने से पहले ही इस बारे में सभी दोस्‍तों को बता दिया गया था।

भुट्टो के पसंदीदा अर्मी चीफ जनरल जिया-उल-हक ने उन्हें लटका दिया फांसी पर
मेजर आगा अमीन ने अपने ब्‍लॉक में लिखा है कि पाकिस्‍तान का लोकतंत्र नया था और ऐसे में एक ऐसा जनरल चाहिए था जिसकी राजनीतिक महत्‍वकांक्षाएं न हो। कुछ और नाम थे लेकिन किसी पर भरोसा नहीं किया जा सकता था तो किसी के पास कमांड का अनुभव नहीं था और कोई अपनी ही डिविजन में अच्‍छा परफॉर्म नहीं कर पाया था। ऐसे में जनरल जिया ही एक आखिरी विकल्‍प बचे थे। लेकिन, इसके ठीक एक साल बाक पांच जुलाई 1977 को देश में तख्तापलट हो गया। जिसपर भुट्टों ने दाव लगाया था आखिर उसी ने उनके साथ धोखा दे दिया। मतलब भुट्टो के पसंदीदा अर्मी चीफ जनरल जिया-उल-हक ने उन्हें सत्ते से बेदखल कर दिया। उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। इसके बाद 18 दिसंबर 1978 को भुट्टो को हत्‍या का दोषी करार दिया गया। चार अप्रैल 1979 को भुट्टो को रावलपिंडी की सेंट्रल जेल में फांसी दे दी गई। आज भी पाकिस्‍तान के राजनीतिक कहते हैं कि भुट्टो ने अपनी एक गलती की सजा भुगती थी।

दुनियाभर की अपील को ठुकरा दिया
भुट्टो को दी गई फांसी सियासी साजिश बताई जाती है, उनके पसंदीदा अर्मी चीफ जनरल जिया-उल-हक ने ही रचा था। ये भी कहा जाता है कि, गिरफ्तारी के समय पाकिस्तान के इस पूर्व प्रधानमंत्री की पिटाई भी की गई। जब उन्हें फांसी लगनी थी, उस रात वो रोते रहे। उन्हें फांसीघर तक स्टेचर पर लाद कर जबरन ले जाया गया। जुल्फिकार अली भुट्टों की फांसी की सजा माफ करने के लिए दुनियाभर से अपील की गई थी। इंदिरा गांधी उस समय शासन में नहीं थीं लेकिन उन्होंने भी उन्हें सजा नहीं देने की अपील की थी लेकिन तत्कालीन सैन्य तानाशाह जिया उल हक ने सारी अपीलें ठुकरा दी थीं।

नवाज शरीफ को भी उनके पसंदीदा आर्मी चीफ भेजा जेल
अब बात दूसरे प्रधानमंत्री की करते हैं ज नवाज शरीफ हैं। पाकिस्तान में तीन बार प्रधानमंत्री चुके नवाज के कार्यकाल में चार आर्मी चीफ की नियुक्ति हुई। लेकिन, एक नियुक्ति उनके लिए बेहद खरनाक साबित हो गई जिसके चलते वो जेल पहुंच गए। ये कोई और नहीं बल्कि, सन 1999 में तत्कालीन आर्मी चीफ जनरल परवेज मुशर्रफ हैं जिन्होंने उनकी सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया। देश में मिलिट्री शासन आ गया और शरीफ को जेल भेज दिया गया। जनरल मुशर्रफ मानते थे कि शरीफ की नीतियों की वजह से भारत के खिलाफ कारगिल की जंग में हार मिली थी। वहीं शरीफ, मुशर्रफ को इस जंग का दोषी बताते थे।

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इमरान खान की बेदखली
जनरल बाजवा की नियुक्ति नवाज शरीफ ने की थी और नवाज सत्ता से हटाए जाने का दोषी भी बाजवा को ही बताते हैं। बाजवा का कार्यकाल 2019 में खत्म हो रहा था, तब इरमान खान ने तीन साल के लिए बढ़ा दिया। अब इमरान खान भी बाजवा पर ही अपनी बेदखली का इल्जाम लगाते आए हैं। एक समय इमरान खान जनरल बाजवा को एक लोकतांत्रिक व्यक्ति करार कह चुके हैं। पाकिस्तान में इमरान खान को सत्ता से बेदखली के पीछे जनरल बाजवा को जिम्मेदार ठहराया जाता है। कुल मिलाकर देखें तो शाहबाज शरीफ के लिए आर्मी चीफ की नियुक्ति अपने मन मुताबिक करना खतरनाक साबित हो सकता है।