इमरान खान की सरकार पर एक बार फिर खतरा मंडराया है। इस बार विपक्ष ने हल्ला नहीं बोला बल्कि सुप्रीम कोर्ट ने हमला बोला है। अगर इमरान खान की आंख में जरा भी शर्म होती तो पाकिस्तान के पीएम इमरान खान इस्तीफा देकर घर चले जाते। जनता और विपक्ष के बाद अब पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने भी इमरान खान को नाहिल, नाकारा और नालायक सरकार करार दे दिया लेकिन इमरान खान और उनके मंत्रियों पर कोई फर्क नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि इमरान खान देश चलाने या फैसले लेने में अक्षम है। पाकिस्तानी मीडिया में छपी रिपोर्ट के अनुसार, स्थानीय निकायों के मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस सरदार तारिक के साथ ही न्यायमूर्ति काजी फैज ईसा की बैंच पंजाब सरकार के रवैये से नाराज थी। बैंच ने नाराजगी व्यक्त करते हुए मामले को चीफ जस्टिस के पास भेज दिया।
रिपोर्ट में कहा गया है किशीर्ष अदालत को बताया गया कि जनगणना के संबंध में काउंसिल ऑफ कॉमन इंटरेस्ट्स (सीसीआई) ने फैसला नहीं लिया है। जज ईसा ने अपना गुस्सा व्यक्त करते हुए कहा, ‘कॉमन इंटरेस्ट काउंसिल की बैठक दो महीने में क्यों नहीं हुई? क्या जनगणना के परिणाम जारी करना सरकार की प्राथमिकता नहीं है?’ जज ने कहा कि सरकार और उसके सहयोगियों ने तीन प्रांतों में शासन किया और अभी तक सीसीआई ने एक भी निर्णय नहीं लिया गया है। उन्होंने कहा, ‘सरकार देश चलाने या निर्णय लेने में असमर्थ है।’
उन्होंने कोर्ट के आदेश के बावजूद सीसीआईकी बैठक को स्थगित करने को लेकर अपनी नाराजगी जताई और इसे संवैधानिक संस्था का अपमान करार दिया। कोर्ट ने कहा कि ऐसे कोई जंग के हालात नहीं थे, जिससे सीसीआई को अपनी बैठक करने से रोक सकती थी। जस्टिस ईसा ने कहा कि 2017 में जनगणना हुए चार साल बीत चुके हैं। सरकार ने क्या किया है अब तक इस पर अतिरिक्त अटॉर्नी जनरल आमिर रहमान ने बताया कि कि सीसीआईकी बैठक 24 मार्च को होगी। उन्होंने दलील दी कि यह एक संवेदनशील मामला है, इसलिए सरकार सर्वसम्मति से निर्णय लेना चाहती है।
इस पर जस्टिस ईसा ने पूछा कि सीसीआईकी रिपोर्ट को गुप्त क्यों रखा गया है। उन्होंने कहा कि अगर अच्छे कामों को गुप्त रखा जाता है, तो इससे लोगों के मन में संदेह पैदा होता है। जस्टिस ईसा ने आगे कहा कि लोगों को पता होना चाहिए कि प्रांत क्या कर रहे हैं और केंद्र क्या कर रहा है। जज ने पंजाब के राज्यपाल द्वारा नए सिरे से परिसीमन के अध्यादेश की घोषणा पर नाराजगी व्यक्त की। चुनाव आयोग के अनुसार, अध्यादेश ने जटिलताएं पैदा की हैं। इसके अलावा उन्होंने कहा कि पंजाब सरकार नहीं चाहती कि स्थानीय चुनाव हों।