पाकिस्तान और तालिबान के बीच रिश्ते ठीक नहीं हैं। इसका खुलासा पाकिस्तान के एक जाने माने पत्रकार हामिद मीर ने किया है।पाकिस्तानी सुरक्षा अधिकारियों ने दोहा में अफगान तालिबान के नेतृत्व से संपर्क करके कहा कि उनका इस्तांबुल सम्मेलन में भाग लेने से इन्कार करना असल में अफगान शांति प्रक्रिया के लिए बड़ा झटका है। अगर उन्होंने अब भी लचीला रुख नहीं अपनाया तो उन्हें भारी परेशानी उठानी होगी। यह संदेश पिछले हफ्ते तालिबानी नेतृत्व और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ घानी को दिया गया है। पाक आर्मी चीफ जनरल बाजवा और ताालिबान के बीच खटपट से हालात बिगड़ने की आशंका है। यह पाकिस्तान के भीतर ही खूनी संघर्ष को जन्म दे सकता है।
पाकिस्तानी सुरक्षा एजेंसियों को अफगान तालिबान और तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) से जुड़े गुटों के आपस में संबंध हैं। वह एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। भारत को लेकर बाजवा तब चौकन्ना हुआ जब पिछले साल अफगानिस्तान के लिए अमेरिका के विशेष प्रतिनिधि ने कहा कि जालमे खलीलजाद ने कहा कि भारत को आतंकवाद पर अपनी चिंताओं को लेकर सीधे तालिबान से बात करनी चाहिए। खलीलजाद ने भारतीय मीडिया से कहा कि इस मामले में भारत को अपनी भूमिका खुद तय करनी है।
पाकिस्तानी सूत्रों के अनुसार पाकिस्तानी सेना के प्रमुख कमर जावेद बाजवा ने रावलपिंडी स्थित सेना मुख्यालय में अपनी एक इफ्तार पार्टी में उनके विश्वासपात्र मीडिया कर्मियों को बुलाया और उन्हें बहुत सारी जानकारियां दीं लेकिन कहा कि सेना के सूत्रों को इसकी भनक न लगे। रिपोर्ट में बताया गया कि तालिबान का मानना है कि भारत की पाकिस्तान के साथ हाल ही में दिलचस्पी दिखाने की वजह यह है कि भारत नहीं चाहता कि अफगानिस्तान में उसकी नई भूमिका में पाकिस्तान कोई अड़चन खड़ी करे। यह जानकारी बाजवा ने ऐसे समय में लीक की है जब अफगानिस्तान में तेजी से परिदृश्य बदल रहे हैं। इन घटनाक्रमों का पाकिस्तानी सुरक्षा पर भारी भार होता और दूरगामी परिणाम देखने पड़ते।