यूं तो पाकिस्तान के हालात पहले ही खराब हैं, ऊपर से कोरोना ने कहर ढा दिया है। बेकारी-भुखमरी और बेरोजगारी से जूझ रही पाकिस्तानी अवाम दो जून की रोटी के लिए सड़कों पर घूम रही है। लोगों के पास इतने भी नहीं हैं कि वो अच्छा सा मास्क खरीद सकें या अपने साधारण-सर्दी जुकाम का भी इलाज करवा सकें। सरकारी अस्पतालों में न दवाएं और ट्रेंड डॉक्टर्स ही हैं। प्राईवेट अस्पताल चंद पैसों वालों का इलाज कर रहे हैं। पिछली बार चीन से मास्क आए थे। वो महिलाओं के अंडरगार्मेंट के बने थे। इस बार वो भी नहीं हैं। इन सब के बावजूद पाकिस्तान के पीएम इमरान खान ने कहा है कि कोरोना से पाकिस्तान के हालात भारत जैसे न हो जाएं इसलिए वो सेना को सड़कों पर उतार रहे हैं।
हालांकि सच्चाई इसके बिल्कुल उलट हैं। पाकिस्तान में किसी-किसी परिवार में दो-दो दर्जन बच्चे हैं। कमाने वाले खास नहीं इसलिए बच्चे बड़े होते ही खुद रोजी-रोजगार की तलाश में निकल लेते हैं। ऐसे लोगों को कोरोना समझ में नहीं आता। रोटी समझ में आती है जो इमरान सरकार देने में नाकाम है। इन हालातों में कोरोना ने पाकिस्तान पर चारों ओर से हमला कर दिया है। पाकिस्तान के लोगों का इमरान सरकार से भरोसा उठ गया है। अवाम को संभालने के लिए तैनात पुलिसवालों के घर पर भी रोटी के लाले हैं। पाकिस्तान में कई ऐसी लूट और डकैती की घटनाएं हुई हैं जहां खुद पुलिस वाले उसमें शामिल रहे हैं।
पाकिस्तान के हालात इतने खराब हो चुके हैं कि अपनी ही पुलिस पर इमरान खान को भरोसा नहीं रहा है। इसलिए इस्लामाबाद, कराची, लहौर, मुल्तान, फैसलाबाद जैसे बड़े शहरों के अलावा छोटे शहरों और गांवों में सेना को उतार दिया गया है। जब इमरान खान से पूछा गया कि सड़कों पर सेना को क्यों उतारा जा रहा है तो उनका जवाब था कि सेना पुलिस की मदद के लिए है। पाकिस्तान में यह कहना कि सेना पुलिस की मदद करेगी, मजाक से ज्यादा कुछ नहीं समझा जाता। क्यों कि वहां सब कुछ तो सेना के ही हाथ में है तो वो फौजी सिविल पुलिस के मातहत काम करेंगे-ऐसा सोचना ही वेबकूफी है।
सीधीसी बात यह है कि कोरोना के बाहने सेना से पाकिस्तान का लॉ एण्ड ऑर्डर अब अपने हाथ में ले लिया है। इसका अर्थ यह भी है कि अब हुक्म इमरान खान का नहीं बल्कि पापा जानी यानी आर्मी चीफ जनरल बाजवा का चलेगा। पाकिस्तान में कुछ भी हो सकता है।