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काबुल टेरर अटैक : शांतिदूत इमरान की वापसी के तुरंत बाद बढ़ा खून-खराबा

काबुल टेरर अटैक : शांतिदूत इमरान की वापसी के तुरंत बाद बढ़ा खून-खराबा

पाकिस्तान के पीएम इमरान खान ने 19 नवंबर को काबुल का दौरा किया। इसके 1 दिन के बाद यानी 21 नवंबर को काबुल आतंकियों के राकेट हमलों से थर्रा उठा। <a href="https://hindi.indianarrative.com/world/kabul-rocket-attacks-6-killed-more-than-25-injured-18603.html">काबुल</a> में दो आईडी विस्फोटों के बाद शहर के विभिन्न इलाकों में हुए 14 राकेट हमलों में 6 लोगों की मौत हुई। इन आतंकी हमलों में 25 से अधिक लोग घायल हो गए। इन हमलों की जिम्मेदारी अभी तक किसी समूह ने नहीं ली है। लेकिन इस हमले का शक तालिबान और इस्लामिक स्टेट पर ही जा रहा है। जो कि नाम बदल-बदल कर और आपस में सहयोग करके अफगानिस्तान में लगातार हमलों  से खून-खराबा कर रहे हैं।

काबुल में अफगानिस्तान के राष्ट्रपति अशरफ गनी के साथ अपनी संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में <a href="https://hindi.indianarrative.com/world/imran-khan-kabul-visits-peace-taliban-ashraf-ghani-18346.html">इमरान खान</a> ने वादा किया कि उनका देश युद्ध ग्रस्त अफगानिस्तान में शांति बहाली में अपनी भूमिका निभाएगा। इमरान ने यह भी वादा किया कि उनकी और पाकिस्तान के अवाम की एकमात्र चिंता अफगानिस्तान में शांति स्थापित करना है। क्योंकि हमारा पड़ोसी देश दशकों से हिंसा झेल रहा है। इमरान खान ने यह भी दावा किया कि उनके देश ने तालिबान के साथ कतर की राजधानी दोहा में अंतर-अफगान शांति वार्ता शुरू कराने में अहम योगदान दिया है।

जबकि सभी जानते हैं कि तालिबान, <a href="https://hindi.indianarrative.com/world/pakistan-university-of-jihad-darul-uloom-haqqania-taliban-18238.html">हक्कानी नेटवर्क</a> और अन्य आतंकवादी संगठनों को पाकिस्तान सीधे मदद पहुंचाता है। ये सभी संगठन पाकिस्तान और अफ़गानिस्तान बॉर्डर यानी डूरंड लाइन के दोनों तरफ संचालित होते हैं। अभी हाल ही में अफगानिस्तान में पाकिस्तान के करीब 150 आतंकवादी सरकारी सेनाओं के हाथ मारे गए। पाकिस्तान चाहे जो भी दावे करे, आतंकवाद में उसकी भूमिका का सबको पता है।
<h2>अफगानिस्तान में हिंसा के लिए पाकिस्तान जिम्मेदार</h2>
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एक रिपोर्ट के अनुसार 6500 पाकिस्तानी नागरिक अफगानिस्तान में आतंकवादी कार्यों में लगे हुए हैं। प्रमुख आतंकवादी संगठनों जैश-ए-मोहम्मद, लश्कर-ए-तैयबा के अलावा तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) भी अफगानिस्तान में एक बड़ा पाकिस्तान समर्थक आतंकवादी संगठन है। जब से कतर की राजधानी दोहा में अफगान शांति वार्ता शुरू हुई है। वहां पर आतंकवादी हमले में 50% की वृद्धि देखी गई है।

<img class="wp-image-18691 size-medium" src="https://hindi.indianarrative.com/wp-content/uploads/2020/11/इमरान-खान-और-अशरफ-गनी-1-300×199.jpg" alt="Imran Khan and Ashraf Ghani" width="300" height="199" /> अफगान राष्ट्रपति अशरफ गनी का कहना है कि अफगान लोग शांति के अलावा और कुछ नहीं चाहते हैं।

संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थाई राजदूत टीएस तिरुमूर्ति ने कहा है कि अफगानिस्तान में आज भी कई इलाकों में लड़ाई जारी है। जिसमें महिलाएं, बच्चे और नागरिक मारे जा रहे हैं। तिरुमूर्ति ने कहा कि भारत का साफ मानना है कि शांति वार्ता और जंग दोनों एक साथ नहीं चल सकते। अफगानिस्तान में तत्काल युद्धविराम होना चाहिए। स्थाई शांति के लिए डूरंड रेखा के दोनों ओर आतंकवादियों के सुरक्षित ठिकानों को बंद किया जाना चाहिए। सुरक्षा परिषद की रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि अलकायदा और कई अन्य विदेशी आतंकवादी अफगानिस्तान में आज भी मौजूद हैं।

तिरुमूर्ति ने साफ कहा कि अफगानिस्तान में शांति तभी हो सकती है जब डूरंड रेखा के दोनों और आतंकवाद पर लगाम लगाई जाए। अफगानिस्तान में हिंसा को रोकने के लिए आतंकवादियों की सप्लाई चेन को तोड़ना जरूरी है। विश्व समुदाय भी पिछले दो दशकों में अफगानिस्तान में हासिल की गई सफलता को ऐसे ही जाया नहीं होने दे सकता। इसके लिए बहुत कठिनाइयां सही गई हैं। अगर अफगानिस्तान को उसके हाल पर छोड़ दिया गया तो ये सब बर्बाद हो जाएगा।.