नेपाल में संसद भंग करने के बाद सर्वोच्च न्यायालय में दर्जनभर याचिकाएं दाखिल करने के बीच चीनी राजदूत होऊ यांकी का नेपाली पीएम ओली से मुलाकात करना और ओली के खिलाफ सड़कों पर राजशाही के समर्थन में प्रदर्शन (Pro Monarchy Protest) एक साथ कई संकेत देता है। ऐसा माना जा रहा है कि चीन इसी लिए नेपाली नेताओं पर पकड़ मजबूत कर रहा है ताकि फिर से राजशाही न लौट आए। <a href="https://en.wikipedia.org/wiki/Kingdom_of_Nepal"><strong><span style="color: #000080;">नेपाल में राजशाही</span> </strong></a>आए या न आए लेकिन चीन नेपाल की सियासी पार्टियों को अपने पक्ष में करने में कामयाब हो जाता है तो भारत के लिए बड़ा संकट खड़ा हो जाएगा। कुछ राजनीतिक नेताओँ को छोड़कर नेपाल का अधिकांश जनमानस अपनी जड़ें भारत के साथ जुड़ी देखता है लेकिन सत्ता और शासन की ताकत के आगे जनता की अपेक्षाएं अक्सर दबी रह जाती हैं।
नेपा में स्पष्ट तौर पर संकेत मिल रहे हैं कि नेपाल की जनता 'लोकशाही' को उपयुक्त नहीं मान रही है। इसलिए राजशाही के समर्थन में प्रदर्शन (Pro Monarchy Protest) शुरू हो गए हैं। नेपाल के एक बड़े वर्ग का कहना है कि जब दो तिहाई बहुमत वाली सरकार नेपाल को स्थाई और मजूबत शासन नहीं दे सकती तो इससे आगे उम्मीद करना बेमानी है। इससे बेहतर तो नेपाल में राजशाही ही थी। इसलिए लोग नेपाल में फिर से राजशाही की वापसी के लिए आंदोलन राजशाही के समर्थन में प्रदर्शन (Pro Monarchy Protest) करने लगे हैं।
राजशाही की वापसी के लिए नेपाल होने वाले आंदोलनों राजशाही के समर्थन में प्रदर्शन (Pro Monarchy Protest) ने चीन की चिंता भी बढ़ा दी हैं। इसीलिए चीन अत्यधिक सक्रिए हो रहा है। चीन का अत्यधिक सक्रिए होना, बार-बार चीनी राजदूत होऊ यांकी का पीएम ओली तथा अन्य लोगों से मिलना राष्ट्रवादी नेताओं और जनता को पसंद नहीं आ रहा है।
बहरहाल, बहुमत वाली ओली सरकार से लोगों की अपेक्षाएं जुड़ी हुई थीं लेकिन आपसी झगड़ों की वजह से संसद भंग हो गयी। ऐसा कहा जा रहा है कि नेपाल मौजूदा स्थिति के लिए सियासी दलों की नीतियों में अनुभव और दूरदर्शिता कमी ज़िम्मेदार है।
तीन साल पहले केपी शर्मा ओली के नेतृत्व में तत्कालीन सीपीएन-यूएमएल और प्रचंड के नेतृत्व वाले सीपीएन (माओवादी सेंटर) ने चुनावी गठबंधन बनाया था। इस गठबंधन को चुनावों में दो-तिहाई बहुमत मिला था। सरकार बनने के कुछ समय बाद ही दोनों दलों का विलय हो गया था।
प्रतिनिधि सभा को भंग करने के फ़ैसले के एक दिन पहले <a href="https://hindi.indianarrative.com/world/china-fails-in-nepal-oli-government-set-to-fall-16581.html"><strong><span style="color: #000080;">प्रधानमंत्री ओली</span></strong></a> पार्टी में मतभेदों के बीच प्रचंड के घर गए थे। अपनी ही पार्टी, प्रधानमंत्री ओली पर उस अध्यादेश को वापस लेने का दबाव डाल रही थी जिसमें उन्हें प्रतिनिधि सभा के अध्यक्ष और विपक्ष के नेता की सहमति के बिना विभिन्न संवैधानिक संस्थाओं के सदस्यों और अध्यक्ष पदों पर नियुक्ति का अधिकार दिया गया था। नेपाल की राजनीति में जिन ताक़तों को पिछले समय में नज़र अंदाज़ किया गया है, उनके सामने आने की संभावना है।
संसद को भंग किए जाने का मामला सर्वोच्च न्यायालय ने संवैधानिक पीठ को स्थांतरित कर दिया है। नेपाल के चीफ जस्टिस की अगुवाई में यह पीठ शुक्रवार को सभी याचिकाओं पर सुनवाई करेगी। सूत्रों से यह जानकारी भी आरही है कि सर्वोच्च न्यायालय सबसे पहले यह देखेगा कि क्या याचिकाओं पर कोई अंतरिम आदेश जारी किया जाना चाहिए या नहीं। फिर भी समझा जा रहा है कि सर्वोच्च न्यायालय का फैसला जो भी होगा वो ऐतिहासिक होगा।.