चालबाज चीन को रोकने के लिए और दुनिया को छल-फरेब से बचाने के लिए QUADक्वाड की चतुर चौकड़ी तैयार हो चुकी है। इस चौकड़ी की पहली मीटिंग यानी चार देशों का पहला शिखर सम्मेलन आज होने जा रहा है। इस शिखर सम्मेलन में भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन, ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन और जापान के प्रधानमंत्री योशेहुदा सुगा एक साथ रणनीति बनाने जा रहे हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन आज पहली बार किसी अंतरराष्ट्रीय बैठक का हिस्सा बनेंगे, जिसपर पूरी दुनिया की निगाहें हैं। भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के QUAD ग्रुप की आज बैठक है, जिसमें कोरोना, आर्थिक और सामरिक जैसे विषयों पर मंथन होना है।
अमेरिका की कमान संभालने के बाद जो बाइडेन पहली बार भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ किसी साझा मंच पर होंगे। हालांकि, दोनों नेता पहले भी फोन पर बात कर चुके हैं। लेकिन वर्चुअली दोनों नेता पहली बार एक दूसरे से मुखातिब होंगे। इसीलिए पूरी दुनिया की नजर इस मीटिंग पर है। चीन खुद इस मीटिंग को लेकर परेशान है। इसी मीटिंग का चीन पर कितना गहरा असर हो सकता है इसका उदाहरण चाइना स्टॉक मार्केट में रिकॉर्ड गिरावट से मिल चुका है। चीन के सबसे राजनीति समारोह के बीच चीन का स्टॉक मार्केट अचानक ध्वस्त हो गया। इसको खड़ा करने की चीन की सरकार ने तमाम कोशिशें की लेकिन सफलता नहीं मिलीं। चीन के स्टॉक मार्केट ध्वस्त होने की खबर दुनिया में न फैल पाए इसलिए शी जिनपिंग के आदेश पर चीन के सोशल मीडिय पर चीन के स्टॉक मार्केट की खबरें सेंसर कर दी गईं।
कोरोना वायरस से उभरे संकट का जूझ रही दुनिया के सामने अब चुनौती है कि कैसे आर्थिक व्यवस्थाओं को आगे बढ़ाया जाए और चीन के संकट से जूझा जाए। इन्हीं विषयों को लेकर इस मीटिंग में बातचीत होनी है। कोरोना संकट, चीन के बढ़ते जुल्म के अलावा क्लाइमेट चेंज जैसे विषयों पर भी मंथन किया जाएगा।
ध्यान रहे, भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के चीन के साथ सीधे तौर पर अच्छे संबंध नहीं रहे हैं। अमेरिका और चीन की लंबे वक्त से कोल्ड वॉर चल रहा है, तो भारत के साथ चीन का सीमा विवाद अभी भी जारी है। बीते दो वर्षों में ऑस्ट्रेलिया के साथ भी चीन के संबंध बिगड़े हैं।
इस बैठक से पहले चीन की ओर से भी बयान दिया गया था कि भारत को किसी भी तरह का द्विपक्षीय मुद्दा सिर्फ चीन के साथ सीधे बातचीत में उठाना चाहिए। किसी अंतरराष्ट्रीय मंच या किसी तीसरे देश को इसमें शामिल नहीं किया जाना चाहिए। बता दें कि लद्दाख विवाद के दौरान अमेरिका ने खुले तौर पर भारत का समर्थन किया था जिससे चीन चिढ़ा हुआ था।