Hindi News

indianarrative

चीन की एक और शिकस्त, नेपाल पहुंची इंडिया की रेल, यात्री और माल भाड़े को लेकर अहम समझौता

नेपाल पहुंची इंडिया की रेल

भारत और नेपाल पुराने दोस्त हैं। पड़ोसी देश नेपाल से भारत के संबंध हमेशा ही अच्छे रहे हैं। अब इस दोस्ती को और आगे बढ़ाया गया है। दरअस भारत और नेपाल के बीच रेल सेवा को लेकर नए समझौते किए गए हैं।  शुक्रवार को नए समझौते पर हस्ताक्षर हुए। इस समझौते के तहत दोनों देशों के सभी प्राइवेट कार्गो ट्रेन ऑपरेटर अब एक-दूसरे के रेल नेटवर्क का इस्तेमाल कर सकेंगे। नेपाल में इंडियन रेलवे पहुंचने से चीन की एक और शिकस्त हो गई है। इससे पहले चीन ने ओली सरकार को फांसने की कोशिश की थी। प्रधानमंत्री ओली नहीं फंसे तो चीन ने वहां के विपक्षी नेताओं को अपने भ्रम जाल में फांसने की कोशिश की। लेकिन हर तरफ से चीन को निराशा मिली। चीन कोरोना डिप्लोमैसी में भी भारत से मात खा गया। अब रेल संचालन में भी चीन की बड़ी शिकस्त हुई है।

नेपाल के निर्यातक प्राइवेट ट्रेन के जरिये अपना माल भारतीय बंदरगाहों तक पहुंचा सकेंगे। भारत और नेपाल के बीच रेल संपर्क समझौता 2004 में हुआ था। लेकिन उसके बाद कई मौकों पर इसमें संशोधन होता रहा है। समझौते में हर पांच वर्ष में समीक्षा का प्रविधान है जिससे कि उसमें आवश्यकता के अनुसार बदलाव किए जा सकें। ताजा समझौते से दोनों देशों के रेल नेटवर्क के विकास में मदद मिलेगी और उसमें निजी क्षेत्र की भागीदारी भी होगी। यह समझौता भारत की 'पड़ोसी प्रथम' की नीति के तहत क्षेत्रीय संपर्क को बढ़ाने की कोशिशों के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

नेपाल स्थित भारतीय दूतावास ने अपने आधिकारिक बयान में कहा कि दोनों देशों की सरकारों ने वीडियो कांफ्रेंस के जरिए हुई बैठक में भारत-नेपाल रेल सेवा समझौता के लिए हस्ताक्षर किए हैं। बैठक में भारतीय पक्ष का नेतृत्व रेल मंत्रालय के सदस्य (परिचालन एवं व्यवसाय विकास) संजय कुमार मोहंती ने किया। आधिकारिक बयान में बताया गया है कि‍ इस समझौते के तहत निजी और सरकारी दोनों क्षेत्र के कंटेनर रेल, वाहन ढ़ोने वाली ट्रेनों, विशेष माल गाड़ि‍यों को भारत और नेपाल में रेल के नेटवर्क का इस्तेमाल करने की छूट होगी। यही नहीं नेपाल रेलवे कंपनी के वैगनों को भारतीय बंदरगाहों पर सामान को लाने ले जाने के लिए भारतीय रेल के नेटवर्क की सहूलियत होगी। इस करार को क्षेत्रीय रेल संपर्क बढ़ाने के भारत के प्रयासों में मील का पत्थर बताया जा रहा है।