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गिलगिट बालटिस्तान में तालिबान! खतरे में कौन? भारत के रक्षा प्रतिष्ठान, चीन का शिनजियांग या सीपेक और पाकिस्तान

खतरा! गिलगिट बालटिस्तान में तालिबान

अफगानिस्तान से अमेरिकी फौजों की वापसी के साथ ही तालिबान ने बहुत तेजी से पैर पसारने शुरू कर दिए हैं। तालिबान केवल अफगानिस्तान में ही नहीं बल्कि पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले हिंदुस्तानी इलाकों में भी बैठ गए हैं। पाकिस्तानी कब्जे वाले गिलगिट बालटिस्तान में तालिबान ने बाकायदा कब्जा कर लिया है। तालिबान गिलगिट बालटिस्तान में अदालतें लगाने और जुर्म और सजा मुकर्रर करने लगा है। तालिबान ने मौलाना हबीबुर्रहमान को गिलगिट बालटिस्तान का कमाण्डर बनाया है। तालिबान ने अपना हेडक्वार्टर काराकोरम दर्रे के पास बाबूशर को बनाया है। काराकोरम दर्रे को पाकिस्तान सरकार चीन को लीज पर दे चुका है। काराकोरम में चीन की सेना है। हालांकि, भारत के विरोध के बाद चीन ने कहा था कि ये फौज गिलगिट बालटिस्तान में चल रहे डेवलपमेंट प्रोजेक्ट की सुरक्षा के लिए हैं और पाकिस्तान की सहमति से हैं। यह वही जगह है जहां से चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के ड्रीम प्रोजेक्ट बीआरआई(BRI)का हिस्सा सीपेक (CPEC) शिनजियांग से निकलकर गिलगिट बालिस्तान से मिलता है।

तालिबान के कारकोरम दर्रे तक पहुंचने का मतलब है सीपेक को खतरा है। तालिबान और चीन के बीच कोई सुलह-समझौता नहीं हुआ है तो यह शी जिनपिंग के लिए सबसे बड़ा सिरदर्द बन जाएगा। पाकिस्तान की इमरान सरकार ने गिलगिट बालटिस्तान में कुछ महीने पहले ही चुनाव करवाए हैं। इमरान खान ने गिलिगिट बालटिस्तान को पाकिस्तानी सूबा बनाए जाने का ऐलान भी किया था। गिलगिट में पाकिस्तानी फौज भी भारी तैनात है। गिलगिट में खालिद खुर्शीद चीफ मिनिस्टर है।

गिलगिट में किसकी सरकार

सवाल उठता है कि आखिर इस समय गिलगिट बालटिस्तान पर कब्जा किसका है। कश्मीर रियासत के भारत में विलय होने के दस्तावेजों के अनुसार गिलगिट बालटिस्तान संवैधानिक तौर पर भारत का हिस्सा है। लेकिन विलय के दौरान हुए विश्वासघात के कारण पाकिस्तानी फौज ने कब्जा कर लिया और आजाद इलाका घोषित कर दिया था। पाकिस्तान ने भारत पर दबाव बनाने और चीन का कर्ज चुकाने के लिए काराकोरम दर्रा चीन को दे दिया। इस तरह गिलगिट संवैधानिक तौर पर भारत का हिस्सा है। असंवैधानिक तौर पर पाकिस्तान के कब्जे में हैं और चीनी फौजों की तैनाती है। अब वहां तालिबान ने भी शासन चलाना शुरु कर दिया है। गिलगिट बालटिस्तान के स्थानीय लोगों के सामने समस्या है कि वो अपनी सरकार किसे मानें, खालिद खुर्शीद और पाकिस्तानी फौज को, चीन को या फिर अब तालिबान को। या फिर से 1947 से पहले की तरह रियासत कश्मीर के नाते भारत सरकार को ही अपना सरवराकार मानें।  

कश्मीर में घुसपैठ कर सकता है तालिबान

गिलगिट बालटिस्तान में तालिबान की मौजूदगी पाकिस्तान सरकार, पाक फौज और चीन के लिए चिंता की बात हो या न हो लेकिन भारत के लिए उनसे भी बड़ी चिंता का सबब है। गिलगिट बालटिस्तान के बॉर्डर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दोनों राज्यों से मिलती है। ऐसे में हमेशा यह आशंका रहेगी तालिबान जम्मू-कश्मीर या लद्दाख में घुसपैठ शुरू न कर दें।

तालिबान का नुमाइंदा रह चुके हैं इमरान खान

पाकिस्तानी मीडिया के मुताबिक अफगानिस्तान तालीबान के कई गुट हैं। इनमें से अधिकांश पाकिस्तान के खिलाफ हैं। तालिबान के कई गुटों ने पाकिस्तान के ट्राईबल इलाकों, कराची और लाहौर में तालिबान ने समानांतर अदालतें शुरू कर दीं थीं। अब भी कुछ इलाके तो ऐसे हैं जहां तालिबान का शासन ही चलता है। पाकिस्तान सरकार तो औपचारिकता के लिए है। पाकिस्तानी मीडिया के दिग्गजों का कहना है कि पीएम इमरान खान खुद तालिबान हैं। क्यों कि पेशावर में आर्मी पब्लिक स्कूल पर आतंकी हमले के बाद तत्कालीन नवाज शरीफ सरकार के दौरान आर्मी जनरल रहील शरीफ ने ने अमनचैन कायम करने के लिए तालिबान को आमंत्रित किया तो तालिबान ने अपने जिन दो नुमाइंदों के नाम दिए थे उनमें पहला नाम इमरान खान का और दूसरा प्रोफेसर इस्माइल का था।

पीटीआई नहीं तालिबान ही चला रहे पाकिस्तान

पाकिस्तान के तमाम बड़े जर्नलिस्ट का कहना है कि पाकिस्तान में तालिबान ही पीटीआई की शक्ल में सरकार चला रहे हैं। इसलिए तालिबान कहीं पैरलल सरकार चला रहे हैं तो कोई ताज्जुब की बात नहीं है। एक खास बात और, अफगानिस्तान में चल रहे सरकारी सुरक्षाबलों और तालिबान के संघर्ष में मारे गए तालिबानियों के शव पाकिस्तान लाए जा रहे हैं। उनके शवो को बॉर्डर से जुलूस की शक्ल में लाकर सुपुर्दे खाक किया जा रहा है। पाकिस्तानी फौज ने भी स्वीकार किया है कि अफगानिस्तान में मारे जा रहे तालिबानियों के शव पाकिस्तान आ रहे हैं। इससे भी यह साफ हो जाता है कि पाकिस्तान ही वो ऐसा देश है तो अफगानिस्तान सरकार के खिलाफ तालिबान को खड़ा करता है।

चीन और सीपेक के लिए बड़ा खतरा बन सकते हैं तालिबान

पाकिस्तान और तालिबान का तो चोली-दामन का साथ है। वहां की आवाम और सरकार पर क्या असर हुआ या हो रहा है ये अलग बात है। तालिबान, चीन के लिए चिंता का सबब हो सकता है। तालिबान शिनजियांग में घुसकर ईस्ट तुर्कमेनिस्तान फ्रीडम मूवमेंट की मदद कर सकते हैं। शिनजियांग में चीन के सरकारी प्रतिष्ठानों को निशाना बना सकते हैं। शिनजियांग की आजादी के संघर्ष को तेज कर सकते हैं। ये चीन की अपनी समस्या है। भारत के लिए चिंता की बात यह है कि आज तालिबान गिलगिट बालटिस्तान में है। कल गुलाम कश्मीर भी पहुंच सकता है। अभी तक कश्मीर में लश्कर-ए-तैयबा, जैश-ए-मुहम्मद, हरकत-उल-मुजाहिदीन और हरकत-उल-जिहाद-ए-इस्लाम जैसे गिरोह ही गड़बड़ी फैलाते रहे हैं। इन सबके हैंडलर पाकिस्तान में हैं। इनके साथ अगर तालिबान मिल जाता है इंडियन डिफेंस फोर्सेस के लिए दिक्कत बढ़ सकती है।

आईएस को खत्म कर दिया तो तालिबान क्या हैं

इन सब के विपरीत एक अच्छी बात यह है कि इंडियन सिक्योरिटी फोर्सेस, आईएसाआईएस (केपी) के कश्मीर मोड्यूल को नेस्तनाबूद कर चुके हैं। भारत के डिफेंस एक्सपर्ट का कहना है कि तालिबान कश्मीर में घुसपैठ की गलती नहीं करेंगे। जहां तक सवाल गिलगिट बालटिस्तान में तालिबान की मौजूदगी का है तो निश्चित तौर पर पाकिस्तान की इमरान सरकार की शह के बिना तालिबान वहां पैर नहीं जमा सकते। यह इमरान सरकार का ‘दोस्त’चीन के खिलाफएक साजिश हो सकती है। सीपेक के मुहाने पर तालिबान को पहुंचाकर इमरान चीन को आर्थिक और राजनीतिक तौर पर ब्लैक मेल आसानी से कर सकता है।