इन दिनों चीन अपने पड़ोसियों के लिये खासी आक्रामकता दिखा रहा है। पिछले कुछ महीनों से चीन का सीमाई विवाद अपने हर पड़ोसी के साथ तेज हुआ है। फिर चाहे वो रूस, जापान, भारत हों या फिर चीन से दूर-दराज बसे देश वियतनाम, इंडोनेशिया, ब्रुनेई या फिलीपींस हों।
भारत से तो चीन ने जून के महीने में हिंसक झड़प भी की, जबकि पिछले ही वर्ष भारत के मामल्लपुरम् में दोनों देशों के नेताओं ने अनौपचारिक वार्ता भी की थी। उससे पिछले वर्ष प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चीन के वुहान भी गए थे। शी जिनपिंग ने इस अनौपचारिक वार्ता के लिये वुहान में प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की, क्योंकि वह भारत को ये दिखाना चाहते थे कि भारत उनका सबसे करीबी और अच्छा पड़ोसी देश है।अन्यथा शी सभी विदेशी मेहमानों से बीजिंग में ही मुलाकात करते हैं।
इन मुलाकातों के बाद लगने लगा था कि डोकलाम में जो एक गलतफहमी पैदा हुई थी वो गाड़ी अब पटरी पर आ जाएगी। लेकिन हुआ उसके ठीक उलट, भारत ने गलवान देखा और उसके बाद से भारत के अथक प्रयासों के बावजूद दोनों देशों के रिश्ते सिर्फ़ और सिर्फ़ खराब होते गए।
अब सवाल ये उठता है कि अचानक चीन में इतनी आक्रामकता कहां से आई और इससे भी बड़ा सवाल ये है कि ये आक्रामकता आई क्यों, इसकी परिणति क्या होगी? हालांकि चीन का इतिहास देखा जाए तो ये बात साफ़ हो जाती है कि सीमा को लेकर चीन के रिश्ते कभी भी अपने पड़ोसियों से मधुर नहीं रहे।
एक तरफ चीन का सीमा विवाद रूस के साथ सखालिन द्वीपों को लेकर चला, वहीं हाल ही में चीन ने रूस के पूर्वी तटीय शहर व्लादिवोस्तोख पर भी अपना दावा ठोंक दिया। जापान के साथ चीन का विवाद शेंनकाकू द्वीप श्रृंखला को लेकर चल रहा है, जिसे चीन त्याओ यू द्वीप बोलता है। वहीं चीन ने अपने मित्रवत पड़ोसी देश नेपाल की तिब्बत से लगने वाली ज़मीन पर भी अपना कब्ज़ा जमा लिया है और वहां पर अपनी चेकपोस्ट बनाने के साथ साथ स्थानीय नेपालियों को उनके इलाकों से भगा दिया।
अपनी जमीन पर चीन द्वारा जबरन कब्ज़ा करने से नेपाल में अंदरुनी तौर पर गुस्सा तो है लेकिन नेपाली साम्यवादी ओली सरकार इस मुद्दे को नजरअंदाज करने में जुटी हुई है। इसके अलावा दक्षिणी चीन सागर में भी चीन की गलत दावेदारी है। दरअसल दक्षिणी चीन सागर के तट वियतनाम, इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, ब्रुनेई, थाईलैंड से भी मिलते हैं। समय समय पर चीन की गीदड़ भभकियां इन देशों को झेलनी पड़ती हैं।
पूरे दक्षिणी चीन सागर पर अपना प्रभुत्व कायम करने के लिये चीन हमेशा कोई न कोई चाल चलता रहता है। वहीं अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के उत्तरी छोर ( जो पहले म्यांमार के पास था) को म्यांमार से चीन ने प्रलोभन देकर ले लिया और यहां पर अपना नौ-सेना बेस बना रहा है। साथ ही एक हवाई पट्टी और सैन्य छावनी का निर्माण भी कर लिया है। चीन की इन सब हरकतों की वजह से उसके विवाद आसियान देशों के साथ होते रहते हैं। दरअसल, दक्षिणी चीन सागर के किसी दूसरे देश के द्वीप पर चीन यह कहकर कब्ज़ा जमा लेता है कि ये द्वीप छिंग, मिंग, हान, तांग और युवान साम्राज्य के दौरान ये द्वीप चीन का हिस्सा था।
चीन की साज़िश को देखते हुए ही हाल ही में भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका ने साझा सैन्य अभ्यास दक्षिणी चीन सागर में किया था। जिसके बदले में चीन मालदीव, श्रीलंका समेत बांग्लादेश और नेपाल पर पैसे का जोर डालकर उन्हें अपने प्रभुत्व में लेने लगा। नेपाल में चीनी राजदूत ने जिस तरह से राजनीतिक हस्तक्षेप किया, उसे लेकर वहां की जनता में चीन के खिलाफ रोष देखा जा सकता है। नेपाल में चीन की राजदूत होउ यांगछी ने हाल ही में प्रधानमंत्री ओली के साथ मिलकर नेपाल के विदेश संबंधों और आंतरिक मामलों में दखल देना शुरु किया है। जिसकी नेपाली विपक्षी दलों ने पुरजोर आलोचना की।
दुनिया अब चीन की साज़िशों को समझ चुकी है और वो अपने खर्च पर चीन को फायदा पहुंचाने के मूड में नहीं है। दुनिया की लगभग सारी बड़ी ताकतें अब चीन से कोई भी व्यापारिक समझौता करने से पहले फूंक-फूंक कर कदम रखना चाहती हैं। जर्मनी, फ्रांस, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया, जापान, स्पेन, पुर्तगाल, इटली, अमेरिका के साथ साथ कई अफ्रीकी और लैटिन अमेरिकी देश चीन की साज़िश को समझ चुके हैं। जी-8 देश भविष्य के लिये ऐसी नीतियां बनाना चाहते हैं, जिससे कि विनिर्माण क्षेत्र के लिये किसी एक देश पर निर्भरता को खत्म किया जाए, जिससे कोई भी देश नाजायज़ फायदा न उठा सके।
आने वाले दिन चीन के लिये मुश्किल भरे होने वाले हैं क्योंकि कई देश चीन से अपना व्यापार धीरे-धीरे कम करते हुए खत्म करना चाहते हैं। चीन ने दुनिया की नज़रों में जो इज्ज़त 1980 से सन् 2000 तक बनाई थी उसे चीनी राष्ट्राध्यक्ष शी जिनपिंग ने एक झटके में खत्म कर दिया और रही सही कसर कोरोना के फैलाव ने पूरी कर दी।.