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इमरान खान और कुरैशी शर्मसार! 27 मुस्लिम देशों ने अफगानिस्तान पर OIC के इस्लामाबाद समिट का कर दिया बॉयकॉट

इमरान खानः अफगानिस्तान पर बुलाया OIC का समिट टांय-टांय फिस, 27 मुस्लिम देशों ने हिस्सा लिया ही नहीं!

अफगानिस्तान पर ओआईसी की बैठक बुलाना पाकिस्तान को भारी पड़ गया है। इस्लामाबाद में ओआईसी के 57 देशों में से मात्र 24 देशों के प्रतिनिधियों ने ही हिस्सा लिया। इन 24 देशों में से भी अधिकांश ने विदेश मंत्री के स्थान पर अपने एम्बेसडर्स को ही भेजा। पाकिस्तान को सबसे बड़ा झटका यूएई और कतर जैसे देशों ने दिया है। इन देशों के न तो विदेश मंत्री शामिल हुए और न ही एम्बेसडर ही आए। पाकिस्तानी पीएम इमरान खान और विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी के मुंह पर सबसे बड़ा तमाचा तो कजाखिस्तान, किरगिस्तान, तुर्कमेनिस्तान, ताजिकिस्तान और उज्बेकिसतान ने मारा है। इन पांच देशों ने इस्लामाबाद में होने वाली ओआईसी की बैठक को दरकिनार कर भारतीय विदेश मंत्री एस जयशकंर की बैठक में हिस्सा लिया। तीसरेइंडिया-सेंट्रल एशिया डायलॉग में सेंट्रल एशिया के इन देशों में अन्य मसलहों पर चर्चा के साथ ही अफगानिस्तान की स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त की और भारत की ओर से अफगानिस्तान को दी जा रही मानवीय सहायता की सराहना की।

सेंट्रल एशिया के इन देशों की दिल्ली में मौजूदगी और इस्लामाबाद ओआईसी की बैठक का 27 मुस्लिम देशों के अघोषित बहिष्कार से पाकिस्तान को शर्मिंदगी उठानी पड़ रही है। दरअसल, इस्लामाबाद में जो भी देश शामिल हुए वो पाकिस्तानी पीएम इमरान खान या विदेशमंत्री शाहमहमूद कुरैशी की कॉल पर नहीं बल्कि सऊदी अरब के कहने पर आए। इनमें से भी अधिकांश ने अपने विदेशमंत्रियों को नहीं भेजा।

अफगानिस्तान के नाम पर बुलाई गई इस बैठक में पाकिस्तान को उस समय और भी शर्मिंदगी झेलनी पड़ी जब उन्होनें तालिबान के कार्यवाहक विदेशमंत्री अमीर खान मुत्तकी की मौजूदगी पर सवाल उठा दिए। ओआईसी के मेंबर देशों ने पाकिस्तान से सवाल किया कि तालिबान ओईसी का मेम्बर नहीं है। अफगानिस्तान में कोई अधिमान्य सरकार नहीं है तो फिर अमीर खां मुत्तकी किस हैसियत से इस समिट में शामिल हुए हैं। इससे भी बड़ी शर्मिंदगी की बात यह रही कि अमीर खान मुत्तकी से पाकिस्तान के विदेशमंत्री के अलावा किसी ने भी साइड लाइन मीटिंग नहीं की।

पाकिस्तानी मीडिया में भी इन सवालों को पूछा जा रहा है। हालांकि, इस मीटिंग से पहले ही कुछ जर्नलिस्टों से कह दिया था कि यह मीटिंग अफगानिस्ता के नाम पर नहीं बल्कि अल्लाह के नाम पर देने के लिए बुलाई गई है। इस मीटिंग में हुआ भी कुछ ऐसा ही पाकिस्तान की ओर से इस मीटिंग में प्रस्ताव रखा गया कि अफगानिस्तान को मदद दी जाए और चूंकि पाकिस्तान तालिबान की मदद के लिए अपने सारे संसाधन ही नहीं इज्जत भी दांव पर लगा रहा है, इसलिए पाकिस्तान को भी मदद दी जाए। पाकिस्तान की ओर से यह भी प्रस्ताव रखा कि गया कि अफगानिस्तान के नाम इकट्ठे होने वाले फण्ड को पाकिस्तान में रखा जाए और यहीं से फण्ड्स का डिस्ट्रीब्यूशन हो। ऐसा बताया जाता है कि पाकिस्तान के इस प्रस्ताव को किसी ने तवज्जोह नहीं दी है।

ओआईसी के 51 में से 27 देशों के अघोषित बहिष्कार पर पाकिस्तान के विदेशमंत्री ने बड़ी बेशरमाई से कहा कि, चूंकि यह इजलास जल्दबाजी में बुलाया गया था इसलिए बाकी देश शामिल नहीं हो सके। अगर इजलास में देर की जाती तो इतने देश भी शामिल नहीं हो पाते। शाह महमूद कुरैशी जानते हैं कि बाकी दुनिया ही नहीं बल्कि मुस्लिम देश भी अफगानिस्तान पर पाकिस्तानी पहल को मंजूर नहीं करते हैं। इसीलिए सऊदी अरब को पटा-सटा कर ओआईसी का इजलास इस्लामाबाद में तो बुला लिया लेकिन अब घोर बेइज्जति का सामना कर रहे हैं।

पाकिस्तानी मीडिया सवाल पूछ रही है कि इमरान खान और शाह महमूद कुरैशी का एक पैर पाकिस्तान में और दूसरा पैर सेंट्रल एशिया में रहता है उस सेंट्रल एशिया के पांच देशों के विदेश मंत्री दिल्ली कैसे चले गए। ये पांच देश भी खासकर वो हैं जो अफगानिस्तान क्राइसिस से सीधे जुड़े हुए हैं। अफगानिस्तान क्राइसिस पर ओआईसी के इजलास को लात मार कर ये लोग इंडिया-सेंट्रल एशिया डायलॉग करने चले गए।

अमेरिका में पाकिस्तानी मूल के पॉलिटिकल एनालिस्ट साजिद तरार ने तो पहले ही कह दिया था कि ओआईसी का इस्लामाबाद इजलास नाकाम होगा और नौटंकी से ज्यादा इसकी कोई अहमियत नहीं होगी। इमरान खान ओआईसी के सामने अफगानिस्तान को दे दो नहीं बल्कि अल्लाह के नाम पर पाकिस्तान को कुछ दे दो कह कर कटोरा आगे बढ़ा रहे होंगे।  

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