रूस और यूक्रेन के बीच जंग का आज 19वां दिन है। इस बीच रुस ने दावा किया था कि यूक्रेन में अमेरिका केमिकल और बॉयोलॉजिकल वेपन बना रहा है। जिसके चलते दुनिया भर के देशों में दहशत फैल गई है। ऑर्गेनाइजेशन फॉर द प्रोहिबिशन ऑफ केमिकल वेपंस (ओपीसीडब्ल्यू ) के मुताबिक, केमिकल वेपन का इस्तेमाल जानबूझकर लोगों को मारने या बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचाने के लिए किया जाता है। इसका एक वार हजारों लोगों को मौत की नींद सुला सकता है। कई बार लोग केमिकल वेपन और बायोलॉजिकल वेपन को एक जैसा समझने की गलती करते है।
लेकिन आपको बता दें कि दोनों में काफी फर्क होता है। बायोलॉजिकल हथियार में बैक्टीरिया और वायरस के जरिए लोगों को सीधे मारा या बीमार कर मरने पर मजबूर किया जाता है। वही केमिकल हथियार को खतरनाक पदार्थ केमिकल वेपन एजेंट्स से बनाया जाता है। साल 1984 में भोपाल में फॉस्जीन और आइसोसाइनेट जैसे केमिकल से बने मिथाइल आइसोसाइनेट नामक जहरीली गैस लीक होने से हजारों लोगों की जान चली गई थी। इतिहास पर गौर दिया जाएग तो सबसे पहले ईसा पूर्व 429 में केमिकल हथियारों का इस्तेमाल किया गया था।
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आपको बता दें कि युद्ध में रसायनिक हथियारों का इस्तेमाल होता आया है। पहले विश्व युद्ध के बाद से इराक-ईरान युद्धों समेत दो खाड़ी युद्धों को मिलाकर कम से कम 12 लड़ाइयों में केमिकल हथियारों का इस्तेमाल हो चुका है। इराकी सेना ने 1980 के दशक में पहले खाड़ी युद्ध के दौरान ईरान के खिलाफ केमिकल हथियार का इस्तेमाल किया था। इससे कम से कम 50 हजार ईरानी मारे गए थे। इसके बाद तानाशाह सद्दाम हुसैन के निर्देश पर 1988 में इराकी सेना ने अपने ही देश के कुर्दों के खिलाफ घातक मस्टर्ड और नर्व एजेंट केमिकल गैसों का इस्तेमाल किया था। इसमें करीब एक लाख कुर्दों को बेहरमी से मौत के घाट उतार दिया गया था।