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अमेरिकी कांग्रेस रिपोर्ट : चीन के खतरनाक मंसूबों से निपटने की जरूरत

अमेरिकी कांग्रेस रिपोर्ट : चीन के खतरनाक मंसूबों से निपटने की जरूरत

एक तरफ दुनिया चीनी वायरस वुहान वायरस/कोविड-19 महामारी से जूझ रही है तो दूसरी तरफ चीन अपने ही खेल में लगा हुआ है। एक अमेरिकी रिपोर्ट में इस बात का खुलासा किया गया है कि किस तरह चीन संयुक्त राष्ट्र और उससे जुड़े तमाम संगठनों को "प्रभावित" करने की कोशिश कर रहा है। बुधवार को जारी <strong>यूएस-चाइना इकोनॉमिक एंड सिक्योरिटी रिव्यू कमीशन</strong> की रिपोर्ट में कहा गया है कि चीन संयुक्त राष्ट्र की संधियों और सिद्धातों का उल्लंघन कर रहा है। चीन सदस्य देशों के वोटों को प्रभावित करने करने के लिए हर तरह के हथकंडे अपना रहा है।

इस रिपोर्ट में अमेरिका और दूसरे देशों को आगाह किया है कि चीन के जो अधिकारी संयुक्त राष्ट्र और उसके संगठनों में काम कर रहे हैं, वो भी कतई निष्पक्ष नहीं हैं। ये सभी संयुक्त राष्ट्र के नियमों का खुलेआम उल्लंघन करते हुए चीन के लिए काम कर रहे हैं। अमेरिकी कांग्रेस को सौंपी गई इस रिपोर्ट में कहा गया है कि संयुक्त राष्ट्र के सुधारों के प्रयास में चीन हर तरह की बाधा जानबूझ कर पैदा कर रहा है।

इस रिपोर्ट ने भारत के आरोपों पर मुहर लगा दी है। इस साल यूएन के महाधिवेशन में भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि अगर यूएन की साख बचानी है, तो उसमें सुधारों की जरूरत है। उन्‍होंने कहा कि "हम पुरानी व्यवस्था के साथ आज की चुनौतियों से मुकाबला नहीं कर सकते। बड़े सुधार नहीं हुए तो यूएन पर भरोसा खत्‍म होने का खतरा है। आज की दुनिया आपस में जुड़ी हुई है। इसलिए हमें ऐसी बहुपक्षीय व्यवस्था चाहिए, जिसमें आज की वास्तविकता झलकती हो, सभी की आवाज सुनी जाती हो, जो वर्तमान चुनौतियों से निपटता हो और मानव कल्याण पर फोकस करता हो।"
<h2>सुरक्षा परिषद में सुधार की भारत की मांग के साथ कई देश</h2>
भारत और दूसरे कई देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में सुधार की मांग पिछले कई सालों से लगातार कर रहे हैं। भारत सुरक्षा परिषद में बतौर सदस्य अपनी दावेदारी भी रख रहा है। भारत इन सुधारों की मांग अलग-अलग मंचों से करता रहा है। दुनिया के कई देश सुरक्षा परिषद में भारत को बतौर सदस्य शामिल करने के पक्षधर भी हैं। लेकिन इस बाबत अभी तक कोई ठोस कदम उठाया नहीं गया है।

पिछले महीने ही भारत ने बहुत कड़े शब्दों में कहा था कि कुछ मुट्ठी भर देश लंबे समय से अटके सुधारों पर अंतर-सरकारी वार्ताओं (आईजीएन) का इस्तेमाल सदस्य देशों को "गुमराह" करने के लिए कर रहे हैं। वे पूरी तरह से अक्षम हो चुकी सुरक्षा परिषद में सुधार की प्रक्रिया को रोक रहे हैं। इसके लिए मुख्य रूप से चीन और उसके मित्र देश जिम्मेदार हैं। संयुक्त राष्ट्र के लिए भारत के स्थायी राजदूत टीएस तिरुमूर्ति ने साफ कहा है कि सयुंक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद एक "खराब और निष्क्रिय अंग" बन चुका है।

भारत को इसी साल जून में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थाई सदस्य चुना गया। महासभा में शामिल 193 देशों में से 184 देशों ने भारत का समर्थन किया था। भारत दो साल के लिए अस्थाई सदस्य चुना गया है। भारत के साथ आयरलैंड, मैक्सिको और नॉर्वे भी अस्थाई सदस्य चुने गए। भारत इससे पहले 1950-51, 1967-68, 1972-73, 1977-78, 1984-85, 1991-92 और 2011-12 में संयुक्त राष्ट्र महासभा का अस्थायी सदस्य चुना गया था। लेकिन आज की बदली हुई परिस्थिति में सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाने की सख्त जरूरत है।

<img class="wp-image-20024" src="https://hindi.indianarrative.com/wp-content/uploads/2020/12/GalwanValley-1024×680.jpg" alt="Galwan Valley" width="444" height="295" /> अमेरिकी कांग्रेस की रिपोर्ट में कहा गया कि 'गलवान वैली झड़प' की योजना चीनी सरकार ने बनाई

वर्तमान में इस परिषद में चीन समेत अमेरिका, ब्रिटेन, रूस और फ्रांस पांच सदस्य हैं, जिन्हें P5 कहा जाता है। यह सिलसिला 1945 से चला आ रहा है। 1993 से इसमें सुधार की मांग की जा रही है, लेकिन चीन अपने वीटो के सहारे इस पर रोड़े अटका रहा है। भारत, ब्राजील, जापान, दक्षिण अफ्रीका और जर्मनी सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के लिए दावेदार हैं। सुरक्षा परिषद के 5 में से 4 सदस्य इसके लिए तैयार हैं, लेकिन चीन की वजह से मामला लटका हुआ है।

ताजा अमेरिकी रिपोर्ट में इस बात का जिक्र किया गया है कि चीन किस तरह यूएन में अपना प्रभाव बढ़ाने की पूरी कोशिश कर रहा है। वर्तमान में संयुक्त राष्ट्र की 15 में से 4 एजेंसियों-खाद्य और कृषि संगठन, अंतर्राष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन, अंतर्राष्ट्रीय दूरसंचार संघ और संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन के डायरेक्टर जनरल के पद पर चीनी अधिकारी तैनात हैं। ये सभी चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के इशारे पर चीन की विदेश नीतियों को बढ़ाने का काम कर रहे हैं, जो संयुक्त राष्ट्र के नियमों का उल्लंघन है।
<h2>चीन के मंसूबों पर रोक के लिए ठोस कदम जरूरी</h2>
दक्षिण चीन सागर से ताइवान, लद्दाख से  शिनजियांग और हांगकांग तक के घटनाक्रमों पर चीन की विस्तारवादी नीतियों के खिलाफ सिर्फ चिंताएं व्यक्त करने के अलावा कुछ भी नहीं किया गया। चीन ने जिस तरह वुहान वायरस की महामारी को लेकर असलियत छिपाई। उससे विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) पर भी सवाल उठ खड़े हुए हैं। यही नहीं यूएन के मिशन में तैनात चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी का उद्देश्य चीन की आर्थिक और विदेश नीति की हितों की रक्षा करना है।

चीन दरअसल यूएन का इस्तेमाल अपनी हितों के लिए कर रहा है न कि दुनिया के लिए। रिपोर्ट में कहा गया है कि ऐसे पुख्ता सबूत मिले हैं, जिनसे यह स्पष्ट हो गया है कि चीन ने भारत-चीन की सीमा (LAC) पर गलवान घाटी में हिंसा एक सोची-समझी साजिश के तहत की थी। उसकी इस पूर्व नियोजित साजिश में हिंसक झड़प के दौरान मारे जाने वाले सैनिकों को लेकर भी अच्छे से सोचा-विचारा गया था । घटना से कुछ हफ्ते पहले चीनी रक्षा मंत्री ने मिलिट्री फोर्स के इस्तेमाल की बात की थी। जिसके बाद हिंसक झड़प भारत-चीन सीमा पर हुई। जिसमें 1975 के बाद पहली बार जान का नुकसान हुआ।

इसके अलावा गलवान की हिंसा से पहले की सैटेलाइट तस्वीरों में गलवान घाटी में चीन की तरफ से व्यापक इंफ्रास्ट्रक्चर का निर्माण और करीब 1000 चीनी सैनिकों की मौजूदगी भी देखी गई। गलवान घाटी भारत की तरफ लद्दाख से लेकर चीन के दक्षिणी शिनजियांग तक फैली है। यह क्षेत्र भारत के लिए सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है। क्योंकि यह पाकिस्तान और चीन के शिनजियांग दोनों के साथ लगा हुआ है। लेकिन चीन अपने मंसूबों में नाकाम रहा। चीन की इस पूर्व नियोजित साजिश को भारत के कूटनीतिक और सैन्य जवाब से गहरा झटका लगा। रिपोर्ट के मुताबिक अगर चीन का मकसद भारत को अपनी सीमा के अंदर इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण से रोकना या भारत के अमेरिका की तरफ झुकाव पर चेतावनी देना था, तो चीन को मुंह की खानी पड़ी।.