चीन इस वक्त दुनिया के कई बड़े देशों से दुश्मनी मोल ले बैठा है। ड्रैगन की अक्ल ठीकाने लगाने के लिए अमेरिका, भारत संग कई बड़े देश एक साथ मिल गए हैं। ड्रैगन की खासकर लड़ाई अमेरिका से और इसके लिए वो अपनी सैन्य ताकत में लगातार वृद्धि कर रहा है। और इन दिनों तो पाकिस्तान की भी बोली निकलने लगी है। अब पाकिस्तान भी अमेरिका तक को धमकी देते नजर आ चुका है। जब तालिबान ने अफगानिस्तान में कब्जा किया था तब पाकिस्तान के पैर जमीन पर नहीं थे और इसी दौरान उसने सुपर पावर तक से पंगा ले लिया था। खैर अब अमेरिका ने चीन पर नकेल कसने के लिए ऐसे प्लान बनाया है कि ड्रैगन की सारी अकड़ डिली पड़ जाएगी और इस झटके से वो बौखला उठेगा साथ ही उसके सदाबहार दोस्त पाकिस्तान के लिए भी ये किसी बड़े झटके से कम नहीं है।
दरअसल, अमेरिका ने हिंद-प्राशांत (Indo-Pecific) में चीन से निपटने के लिए ये नई चाल चली है जिससे ड्रैगन के दिल की धड़कने और तेज हो जाएंगी। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन के प्रशासन ने गुरुवार को इंडोनेशिया को लगभग 14 अरब डॉलर के हथियारों की बिक्री की मंजूरी दे दी। हिंद-प्रशांत में चीन के बढ़ते वर्चस्व को रोकने के लिए अमेरिका लगातार कदम उठा रहा है और यह भी उसी का हिस्सा है। विदेश मंत्रालय ने अडवांस्ड लड़ाकू विमानों की 13.9 अरब डॉलर की बिक्री की घोषणा की।
इधर ऑस्ट्रेलिया में हो रहे चौथे क्वाड मीटिंग में भी ड्रैगन पर नकेल कसने के लिए भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका के विदेश मंत्रियों की मीटिंग चल रही है। इस मीटिंग में अमेरिका के विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन का मकसद रूस और यूक्रने के बीच के घटनाक्रमों के बावजूद चीन को प्रशांत क्षेत्र में मुक्त नियंत्रण की अनुमति नहीं देने के अमेरिका के दृढ़ संकल्प को रेखांकित करना है। क्वाड बैठक में एंटनी ब्लिंकन ने कहा, क्वाड उन देशों का एक समूह है, जो किसी के खिलाफ होने के लिए साथ नहीं आया है, बल्कि जैसे हम हैं, उसे लेकर हम साथ आए हैं। यह सरल रूप में स्वतंत्र और खुला हिंद-प्रशांत है।
वहीं, इंडिनेशिया के जरिए अब अमेरिका चीन पर लगाम लगाएगा। अमेरिकी मंत्रालय के अनुसार, इंडोनेशिया को 36 F-15 फाइटर जेट, इंजन और संबंधित उपकरणों की बिक्री की मंजूरी दी गई है, जिसमें युद्ध सामग्री और संचार प्रणाली शामिल है। दिसंबर के मध्य में ब्लिंकन की जकार्ता की यात्रा के बाद यह समझौता हुआ था। ब्लिंकन ने उस समय मानवाधिकारों संबंधी चिंताओं के बावजूद अमेरिका-इंडोनेशिया के करीबी संबंधों की सराहना की थी। इस दौरे का मकसद इंडोनेशिया के जरिए चीन को घेरना था।