US Saudi Relations: चीन के चक्कर में जो भी फंसा है वो बरबाद ही हुआ है। जितने भी चीन के दोस्त देश हैं हर कोई उससे परेशान हैं। चीन की मंसा ही रहती है कि, पहले दोस्ती करो और फिर वहां पर अपनी नीतियां थोप कर उनकी चीजों पर अपना कब्जा जमा लो। पिछले कई सालों चीन छोटे देशों में यही कर रहा है। अब एक और दोश चीन की जाल में फंसता नजर आ रहा है। जो दुनिया की अर्थव्यवस्था के लिए बेहद मायने रखता है। ये कोई और नहीं बल्कि सऊदी अरब है जिसके रिश्ते इन दिनों चीन के साथ सातवें आसमान पर हैं। इस बीच सऊदी अरब के चीन के खेमे में शिफ्ट करने को काफी ज्यादा बेचैन है। इस बीच अब बाइडन प्रशासन को डर लग रहा है कि अगर जल्द ही कुछ नहीं किया गया तो पूरा मध्य-पूर्व उसकी हाथ से निकल सकता है। सऊदी अरब को खाड़ी देशों का नेता माना जाता है। दरअसल, खाड़ी के अधिकतर देश सऊदी की विदेश नीति को फॉलो करते हैं। ऐसे में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन (Joe Biden) ने अपने ‘चाणक्य’ जेक सुलिवन को सऊदी अरब भेजा है। जेक सुलिवन अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हैं। उन्होंने जेद्दा में सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के साथ लंबी बातचीत भी की है।
सुलिवन प्रिंस सलमान से क्यों मिले?
व्हाइट हाउस ने बताया कि सुलिवन और प्रिंस सलमान ने गुरुवार को दुनिया से जुड़े अधिक शांतिपूर्ण, सुरक्षित, समृद्ध और स्थिर मध्य पूर्व क्षेत्र के लिए एक साझा दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने की पहल पर चर्चा की। इस मुलाकात पर न्यूयॉर्क टाइम्स के कॉलमिस्ट थॉमस फ्रीडमैन ने पिछले हफ्ते जो बाइडन के इंटरव्यू के आधार पर कहा कि उनका मानना है कि सुलिवन किसी प्रकार अमेरिका-सऊदी अरब-इजरायल-फिलिस्तीन समझौते की संभावना तलाशने के लिए जेद्दा गए थे। चीन भी इस मुद्दे पर तेजी से काम कर रहा है। ऐसे में अमेरिका को डर है कि अगर चीन ने इजरायल फिलिस्तीन विवाद का हल खोज लिया तो यह उसके लिए किसी बुरे सपने से कम नहीं होगा।
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गेमचेंजर बन सकता है इजरायल
यही नहीं उन्होंने कहा सौदा अमेरिका-सऊदी सुरक्षा समझौते और सऊदी-इजरायल राजनयिक संबंधों के सामान्यीकरण से जुड़ी एक बड़ी सौदेबाजी होगी। इसमें अमेरिका के कहने पर कब्जे वाले क्षेत्रों में फिलिस्तीनियों की दुर्दशा में कुछ सुधार, यहूदी बस्ती के निर्माण को रोकना और वेस्ट बैंक पर कभी कब्जा न करने का वादा शामिल हो सकता है। इसके बदले में सऊदी अरब और इजरायल का मान्यता आदान-प्रदान भी करेंगे। वर्तमान में सऊदी अरब और इजरायल एक देश के तौर पर एक दूसरे को मान्यता नहीं देते हैं। हालांकि, दोनों देशों के बीच बैक चैनल डिप्लोमेसी पिछले कई वर्षों से जारी है। सीआईए के लिए मध्य पूर्व विश्लेषक के तौर पर काम कर चुके और व्हाइट हाउस सलाहकार ब्रूस रीडेल ने कहा कि इस तरह के बहुआयामी समझौते का विचार राजनीतिक रूप से दूर की कौड़ी है। उन्होंने कहा कि सऊदी जो बाइडन को दोबारा निर्वाचित होते नहीं देखना चाहता। वह डोनाल्ड ट्रंप के व्हाइट हाउस में वापस आने को दृढ़ता से पसंद करते हैं।
इजरायल के मानने पर भी जताया जा रहा शक
सऊदी अरब के साथ सुरक्षा समझौते को सीनेट से मंजूरी दिलाना भी बेहद मुश्किल होगा। विपक्ष में बैठी रिपब्लिकन पार्टी बाइडन राजनयिक जीत हासिल करने में मदद नहीं करना चाहेगीी। अधिकांश डेमोक्रेट भी खराब मानवाधिकार रिकॉर्ड वाले सऊदी राजशाही के प्रति अमेरिकी प्रतिबद्धताओं का विरोध करेंगे और फिलिस्तीनियों के लिए पर्याप्त लाभ की मांग करेंगे, जिसे बेंजामिन नेतन्याहू की कट्टर-दक्षिणपंथी इजरायली सरकार स्वीकार नहीं करेगी।