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चीन और पाकिस्तान की खतरनाक साजिश का शिकार बलोचिस्तान और ईस्ट तुर्किस्तान, पढ़ें यह खास रिपोर्ट

उइगर मुसलमानों पर अत्याचार और पाकिस्तान

"पाकिस्तान के बलोचिस्तान और चीन के ईस्ट तुर्किस्तान (शिनजियांग)  के मूल निवासी मुसलमानों की नस्लकुशी और नर सहांर के मकसद अब एक हैं। 2013 में बीआरआई के ऐलान के साथ ही ईस्ट तुर्किस्तान (शिनजियांग)  और बलोचिस्तान में दमनचक्र बेइंताह तेज कर दिया गया है। बीआरआई ईस्ट तुर्किस्तान से शुरू होता है और उसका पहला मुख्य पड़ाव ग्वादर-बलोचिस्तान है। समझदारों के लिए इतना इशारा ही काफी है।'

उइगरों के देश का नाम ईस्ट तुर्किस्तान है। यहां  उइगरों के साथ ही कजाख, किरगिज, और तुर्किस्तान की कुछ समुदाय के मुसलमान रहते हैं। चीन ने 1949 में ईस्ट तुर्किस्तान पर कब्जा कर लिया। ठीक वैसे ही जैसे पाकिस्तान ने बलोचिस्तान पर कब्जा किया था। समय भी लगभग वही था। जिस तरह पाकिस्तान बलोचिस्तान में बलोचों का नरसंहार करता आ रहा है, ठीक वैसे ही चीन ईस्ट तुर्किस्तान में उइगरों और बाकी देशों से आए मुस्लिम जनजातीय समुदायों के साथ कर रहा है।

पाकिस्तान ने बलोचिस्तान का नाम नहीं बदला। शायद डर था या फिर बलोचों को धोखा में रखने की रणनीति। चीन के उस समय के कम्युनिस्ट शासन के चेयर मैन माओ ने ईस्ट तुर्कमेनिस्ता का नाम ही बदल दिया। माओ ने ईस्ट तुर्किस्तान का नाम रख दिया शिन जियांग। दुनिया के अधिकांश लोग शायद नहीं जानते हैं कि शिनजियांग का मतलब क्या होता है। मांछु भाषा में शिनजियांग का मतलब नया सूबा होता है। माओ ने ईस्ट तुर्किस्तान पर कब्जा करने के लिए इसे शिनजियांग कहा और फिर इसका नाम हमेशा शिनजियांग ही हो गया। ईस्ट तुर्कमेनिस्ता लोग भूल गए। रोचक तथ्य यह भी है कि शिनिजियांग में रहने वाले मुसलमानों को ताशकंत सम्मेलन में उइगर नाम दिया गया था। जिसमें उइगर रिवोल्यूशनरी यूनियन का गठन किया गया था। यह कहानी विषय में भटकाव ला देगी। इसलिए मूल विषय पर आते हैं कि चीन में कम्युनिस्ट शासन आते ही कैसे आस-पड़ोस के देशों पर कब्जा करने, वहा की सांस्कृतिक विरासत को खत्म करने दमन चक्र चला। चीन की इस चाल का शिकार कई देश बन चुके हैं।

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ईस्ट तुर्कमेनिस्ता पर कब्जा करने और उसका नाम बदलने के बाद चीन ने वहां की आबादी में बदलाव की कोशिशें शुरू कर दीं। वहां पर हान जाति के चीनियों को बसाना शुरु कर दिया। उइगरों की लड़कियों की शादियां जबरन या लालच से हान चीनियों से करवाई जाने लगी। यह क्रम अब भी जारी है। चीन के कब्जा करने के साथ ही ईस्ट तुक्रमेनिस्तान फ्रीडम मूवमेंट भी शुरू हो गया। यह मूवमेंट अब भी जारी है लेकिन मजबूत नहीं है। 2014 के बाद से तो बस इसका नाम ही बाकी है। कुछ लोग हैं जो विदेशों में बैठकर सिलसिला आगे बढ़ा रहे हैं।

इसके विपरीत उइगरों को खत्म करने का चीनी दमन चक्र लगातार जारी है। 2014 के बाद के हालात तो बदतरीन हो चुके हैं। रोजा-नमाज-जकात तो दूर की बात शिनजियांग- ईस्ट तुर्किस्तान के मुसलमान दाढी नहीं रख सकते। औरतें पर्दा-हिजाब या नकाब नहीं पहन सकतीं। मस्जिदों को तोड़कर शौचालय बना दिए गए हैं। उइगरों के स्कूल बंद कर दिए गए हैं। उइगर स्कॉलर्स को पकड-पकड़ कर गोली मार दी गई। कुछ अभी तक जेलो में जिंदा हैं, मगर कहां हैं किसी को नहीं मालूम। उइगर मुसलमानों की एथनिक क्लीनजिंग करने के लिए डिटेंशन सेंटर्स बनाए गए हैं। लाखों-लाख लोग इन्हीं डीटेंशन सेंटरों में रहते हैं और चीनी कम्युनिज्म को सीखते हैं। उन्हीं में से कुछ को उन वोकेशनल ट्रेनिंग सेंटर्स में भर्ती किया जाता है जहां 20-20 घण्टे काम कराया जाता है। बदले में दो टाइम का खाना मिलता है। जानकर हैरानी होगी कि दुनिया के जितने भी नामी गिरामी ब्रांड के जूते-चप्पल, बैग्स और एसेसरीज बनती हैं वो सब इन्हीं उगगर कैदियों की बनाई हुई होती हैं। चीन की कम्युनिस्ट सरकार ह्युमन रिसोर्सेज के नाम पर बेहद मामूली खर्च करती है। इसलिए दुनिया भर को सस्ता सामान मिलता है। लेकिन इसके पीछे उइगर मुसलमानों की पीड़ा शायद कोई महसूस नहीं करता।

यहां देखें बलोचिस्तान पर पाकिस्तानी कब्जे की असल कहानी

दिल को दुखी करने वाली एक बात और एक यह कि दुनिया के सबसे अमीर माने-जाने वाले मुस्लिम देशों के लोग चीन से ह्युमन ऑरगन खरीदते हैं। वो भी नम्बर दो के रास्ते से। ये सारे ह्युमन ऑरगन भी इन्हीं उइगर मुसलमानों को मारकर निकाले जाते हैं। लीवर और किडनी तो जिंदा उइगरों की भी निकाली जा रही हैं। मुस्लिम देश चीन से मिलने वाले ह्युमन ऑरगन को हलाल मानते हैं। ह्युमन ऑरगन की तस्करी का धंधा चीन से दुनिया के और भी अमीर देशों के साथ चल रहा है। विदेशी आक्रमण और आक्रांताओं की वेदना स्त्रियों को सबसे ज्यादा झेलनी पड़ती है। मर्दो की हत्या कर दी जाती है या गुलाम बना लिया जाता है। वैसा ईस्ट तुर्किस्तान यानी शिजियांग में भी हो रहा है। बालिग-नाबालिग लड़कियों औरतों के साथ बलात्कार, गर्भपात और न जाने कैसे-कैसे अत्याचार किए जाते हैं। उनकी देह ही नहीं बल्कि दिल और दिमागी तक्लीफें दी जाती हैं। ईस्ट तुर्किस्तान में भी उइगर मुसलमानों की औरतो-बच्चियों के साथ ऐसा हो रहा है। गर्भधारण करने की उम्र होते ही उइगर बच्चियों-औरतों के गर्भाशय निकाले जा रहे हैं। उन्हें बांझ बनाया जा रहा है। ताकि उइगर नस्ल के बच्चे ही पैदा न हों।

वर्ल्ड उइगर कांग्रेस के इंसपेक्टर जनरल अब्दुल हकीम इदरीस ने चाणक्या फोरम डॉट काम में लिखे अपने लेख में कहा है कि ईस्ट तुर्किस्तान में केवल उइगरों का ही नहीं बल्कि कजाख, किरगिज और तुर्की की पुरानी जनजातीय समुदाय का नर संहार हो रहा है। लगभग 10 उइगर अनाथ बच्चों को शी जिनपिंग की सरकार ने दूसरे चीनी परिवारों में भेज दिया है या फिर उन्हें डीटेंशन सेंटर्स में कैद कर रखा है।

ईस्ट तुर्किस्तान को कैसे दिया शिनजियांग

चीन उइगर मुसलमानों पर ठीक वैसे ही जुल्म कर रहा है जैसा पाकिस्तान बलोचों के साथ कर रहा है। बलोचों के नर संहार के लिए पाकिस्तान की सरकार ने तोप-टैंक ही नहीं बल्कि लड़ाकू जहाजों से बॉंबिंग भी की है। खैर, बलोचों पर अत्याचार की बातें किसी और दिन। उइगरों के साथ चीन के बर्ताव में थोड़ा सा बदलाव 1979 के बाद आया और 1989 में थियेनमान चौक के दिल दहलाने वाले दमनचक्र के साथ खत्म हो गया। हालांकि, उइगरो का 1989 के थियेनमान चौक आंदोलन से कोई संबंध नहीं था। वो आंदोलन और उइगरों का आंदोलन दोनों अलग-अलग है। 1980 में रूस, अफगानिस्तान में घुस चुका था। चीनी सरकार पर शायद इस घटना का दबाव हो सकता है। चीन सरकार ने उइगरों की आजादी बढ़ाने के ऐलान किए। लेकिन सारे ऐलान दिवास्वप्न बन कर रह गए। उइगरों पर अत्याचार बढने लगे।

अमेरिका पर 9/11  के आतंकी हमले और अमेरिकी का आह्वान वॉर ऑन टेरर को चीन ने उइगरों पर लागू कर दिया। उइगरों की नस्लकुशी में तेजी आ गई। उइगरों के घरों को ही जेल बना दिया गया। इन सबको अनदेखा कर चीन में 2008 में ओलंपिक खेलों का आयोजन हुआ। चीन ने उइगरों के जनसंहार का आखिरी प्लान तो 2013 से शुरू किया है। ये वो समय था जब शी जिनपिगं ने बेल्ट एंड रोड प्रोजेक्ट शुरु किया। इस प्रोजेक्ट की शुरुआत ही ईस्ट तुर्किस्तान जिसे चीन शिनजियांग कहता है- से होती है। बीआरआई का विरोध चीन-ब्रिटेन और फ्रांस जैसे देशों ने शुरू किया तो उइगरों पर अत्याचारों की वारदातों पर रोशनी पड़ने लगी है, लेकिन इस विरोध में मुस्लिम देश शामिल नहीं है। यूएई और सऊदी अरब चीन के साथ तिजारती रिश्ते मजबूत कर रहे हैं तो ईरान ने 44 हजार करोड़ का डालर का लॉंग टर्म एग्रीमेंट किया है। ये 29 साल तक चलेगा। एर्दोगान ने अपने पहले कार्यकाल में चीन के खिलाफ तेवर दिखाए लेकिन दूसरे कार्यकाल में वो भी शातं हो गए हैं और शी जिनपिगं के साथ कदम-ताल कर रहे हैं। पाकिस्तान के बारे में तो कुछ कहना ही बेकार है। पाकिस्तान की हैसियत चीन के सामने पालतू जैसी है। पाकिस्तान की इमरान सरकार उइगरों के खिलाफ मुंह खोलना तो दूर आंख उठा कर देख भी नहीं सकता। क्यों कि अगर चीन ने पाकिस्तान की ऑक्सीजन सप्लाई बंद कर दी तो इमरान खान का सांस लेना मुश्किल हो जाएगा।

हाल ही में हमास और इसराइल में युद्ध के हालातों पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी से विदेशी मीडिया ने सवाल पूछे तो दोनों ने खुद ही साफ कह दिया कि वो चीन से उइगरों पर अत्याचार के खिलाफ मुंह नहीं खोल सकते क्यों कि उनका दाना-पानी चीन से ही चलता है।