जहां तक कर्ज़ लेने और देने का सवाल है तो ये कर्ज़ हमेशा हम लोग या फिर कोई देश मुसीबत के समय लेता है या फिर अपनी तरक्की को रफ़्तार देने के लिये लेता है। दुनिया में ऐसे कई विकसित देश हैं जो विकासशील और गैर विकसित देशों को तरक्की की रफ़्तार में मदद के लिये कर्ज़ देते हैं जिससे उस अमुक देश में तरक्की की राह साफ़ हो।
वहीं कुछ देश बाकी देशों को इसलिये भी कर्ज़ देते हैं जिससे वो अपने व्यापारिक रिश्तों को कर्ज़ पाने वाले देश के साथ नया आयाम दे सकें और जिसमें दोनों देशों का लाभ निहित हो। लेकिन वहीं कुछ देश ऐसे भी हैं जो गरीब और ज़रूरतमंद देशों को कर्ज़ सिर्फ़ इसलिये देते हैं जिससे वो उस देश की प्राकृतिक संपदा पर अपना अधिकार जमा सकें। उस देश के पड़ोसी को घेरने के लिये अपना सैन्य अड्डा कर्ज पाने वाले देश में बना सकें। उस देश के रास्ते अपनी औद्योगिक वस्तुओं को दूसरे देशों में भेजने के लिये एक पड़ाव के तौर पर इस्तेमाल कर सकें और अपनी बादशाहत उस देश पर साबित कर सकें।
अब आप सोचेंगे कि ऐसा कौन सा देश है जो सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने फ़ायदे के लिये दुनिया भर के देशों को कर्ज़ देता है- तो वो देश है चीन। चीन ने भारत के पड़ोसियों को ढेर सारा कर्ज़ दिया है। इसके पीछे उसकी मंशा साफ़ है, एक तरफ़ वो अपने प्रतिद्वंद्वी भारत को चारों तरफ़ से घेरना चाहता है। वहीं दूसरी तरफ़ अपने औद्योगिक उत्पादों के लिये इन देशों में एक बड़ा बाज़ार भी देख रहा है। इसके अलावा इन देशों में अपना सैन्य अड्डा बनाने की जुगत में जुटा हुआ है।
कर्ज़ देने के बाद चीन कर्ज़दार देशों के साथ भविष्य की अपनी योजना निर्धारित करता है, जैसे कर्ज़ वसूली के तरीके और उन देशों के आधारभूत निर्माण के इस्तेमाल। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार चीन ने वर्ष 2013–16 तक गरीब देशों को छह अरब बीस करोड़ डॉलर से ग्यारह अरब साठ करोड़ डॉलर तक का कर्ज़ दिया। अमेरिका ने भी कर्ज़दार देशों को कई बार चीन से कर्ज़ लेने पर चेतावनी दी है, अमेरिका ने बताया कि अफ्रीकी देशों ने अब तक चीन से 6 खरब अमेरिकी डॉलर का कर्ज़ लिया है जो इन देशों के भविष्य के लिये खतरनाक संकेत है।
इसी तरह पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह में भी चीन ने ऐसे ही पैसा लगाया हुआ है। 46 बिलियन डॉलर की परियोजना से ग्वादर बंदरगाह और कश्मीर से ग्वादर तक सड़क भी बना रहा है।
चीन कर्ज़ देने के लिये उन देशों को चुनता है जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा-आईएमएफ़, वर्ल्ड बैंक और दूसरे अंतर्राष्ट्रीय बड़े बैंक कर्ज़ नहीं देते हैं। क्योंकि कर्ज़ देने की उनकी कुछ शर्तें होती हैं जिन पर ये देश खरे नहीं उतरते। चीन इस नियम का फ़ायदा उठाते हुए इन देशों को आसान शर्तों पर कर्ज़ मुहैया कराता है। चीन किसी भी देश को कर्ज़ देने से पहले उस देश की आर्थिक हालत का पूरी तरह जायज़ा लेता है। साथ ही वो उस देश से अपने लिये फायदा देखता है, इसके बाद उस अमुक देश को चीन आसान शर्तों पर ढेर सारा पैसा कर्ज़ के रूप में देता है। कर्ज़ देने से पहले चीन ये बात अच्छी तरह से जानता है कि वो देश चीन का कर्ज़ लौटाने की हालत में नहीं होंगे। इसके बाद शुरु होता है चीन का असल खेल।
पिछले कुछ वर्षों में चीन ने भारत के पड़ोसी देशों मसलन, बांग्लादेश, पाकिस्तान, श्रीलंका, मालदीव और हाल ही में नेपाल में अपनी अकूत संपत्ति लगाई है। जिससे वो दक्षिण एशिया में भारत को उसके पड़ोसियों से अलग थलग कर सके। चीन से पाकिस्तान की दोस्ती जग-ज़ाहिर है। जहां उसने अपनी महत्वाकांक्षी परियोजना “एक पट्टी एक मार्ग” के तहत भारत के कश्मीर के अवैध रूप से पाकिस्तान द्वारा कब्ज़ाए गए राज्य से बलूचिस्तान और फिर सिंध के कराची के पास ग्वादर बंदरगाह से एक व्यापारिक सड़क बना रहा है। भारत को चीन की इस सड़क पर इस वजह से आपत्ति है क्योंकि ये सड़क भारत के कश्मीर से होकर गुज़रती है।
दुनिया भर में चीन ने अपने कर्ज़ का मकड़जाल फैला रखा है, फिर क्या किर्गिज़स्तान, क्या सूडान, क्या पापुआ न्यू गिनी और क्या अफ्रीकी महाद्वीप और लैटिन अमेरिकी देश। कुछ ऐसे देश हैं जिन पर चीन का कर्ज विशेष रूप से भारी पड़ रहा है-
<strong>श्रीलंका</strong>
उदाहरण के लिये श्रीलंका के हम्बनटोटा बंदरगाह को ही लीजिये। पहले चीन ने हम्बनटोटा बंदरगाह बनाने के लिये बहुत आसान शर्तों पर श्रीलंका को कर्ज़ और तकनीक दोनों दीं, इसके बाद कर्ज़ न लौटा पाने की स्थिति में चीन ने वर्ष 2017 में हम्बनटोटा बंदरगाह को 99 वर्षों के लिये पट्टे पर ले लिया। इसका कार्य भार चाइना मर्चेंट्स पोर्ट होल्डिंगस ने 1.12 अरब डॉलर की एवज़ में लिया है।
<strong>पापुआ न्यू गिनी</strong>
पापुआ न्यू गिनी ऑस्ट्रेलिया के उत्तरी छोर पर बसा एक स्वतंत्र देश है। वहां पर चीन की ह्वावे कंपनी ने पाँच करोड़ तीस लाख डॉलर की लागत से एक डेटा सेंटर खोला। ये पैसे पापुआ न्यू गिनी को चीन ने बतौर कर्ज़ दिया था। लेकिन पापुआ न्यू गिनी की जानकारी चुराने के लिये चीन ने ह्वावे कंपनी के डेटा सेंटर का इस्तेमाल किया। इस पर पापुआ न्यू गिनी के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने चीन का कर्ज़ लौटाने से मना कर दिया।
<strong>किर्गिज़स्तान</strong>
किर्गिज़स्तान मध्य एशिया का 62 लाख की आबादी वाला देश है। एक पट्टी एक मार्ग के नाम पर चीन ने किर्गिज़स्तान को 1.5 अरब डॉलर का कर्ज़ दिया है। जो विदेशों से मिलने वाले कर्ज़ का 40 फ़ीसद हिस्सा है। इसके अलावा किर्गिज़स्तान को मध्य और दक्षिण एशिया का बिजली ऊर्जा केन्द्र बनाने के नाम पर एक अरब डॉलर का कर्ज़ दिया है। ये सारा कर्ज़ एक्सपोर्ट-इंपोर्ट बैंक ऑफ़ चाइना ने दिया है। इस समय किर्गिज़स्तान चीन का कर्ज़ लौटाने की हालत में नहीं है। इसका मतलब ये हुआ कि किर्गिज़स्तान भी बाकी देशों के साथ चीन के कर्ज़ जाल में फंस चुका है।
<strong>वेनेज़ुएला</strong>
मध्य अमेरिकी देश वेनेज़ुएला इस समय आर्थिक बदहाली के दौर से गुज़र रहा है। एक समय पेट्रोलियम के प्रचुर भंडार वाले देश में राजनीतिक अस्थिरता भी फैली हुई है। इसे चीन ने सुनहरे अवसर के तौर पर देखा और वेनेज़ुएला को पाँच अरब डॉलर के कर्ज़ के जाल का फंदा कस दिया है।
<strong>मॉन्टेनेग्रो</strong>
मॉन्टेनेग्रो एक यूरोपीय देश है और यहां पर राष्ट्रीय राजमार्ग बनाने के नाम पर चीन के चाइना एक्सिम बैंक ने एक अरब डॉलर का कर्ज़ दिया है। विश्व बैंक के अनुसार ये मॉन्टेनेग्रो के सकल घरेलू उत्पाद का 83 फीसद है। जो चिंता का विषय है। चीन इसके साथ ही सर्बिया को मॉन्टेनेग्रो से समुद्री बंदरगाह तक रास्ता देना चाहता है। लेकिन इस परियोजना के दूसरे और तीसरे चरण में अनियमितताएं सामने आने लगीं हैं।
<strong>ताजिकिस्तान</strong>
ताजिकिस्तान एशिया का एक बहुत गरीब देश है वर्ल्ड बैंक और आईएमएफ़ के अनुसार ये देश भी आधारभूत ढांचे और बिजली घर बनाने के नाम पर चीन के कर्ज़ तले दब चुका है, ताजिकिस्तान के कुल कर्ज़ का अस्सी फीसदी है, जिसे चुकाने के लिये ताजिकिस्तान अब अन्य संस्थानों से कर्ज़ लेकर चीन का कर्ज़ चुकाने की राह देख रहा है।
<strong>अंगोला</strong>
अफ्रीकी महाद्वीप के दूसरे सबसे बड़े तेल उत्पादक अंगोला में चीन ने 60 अरब डॉलर का निवेश किया है। जिसमें से अब तक अंगोला ने 25 अरब डॉलर मूल्य का तेल चीन को निर्यात किया है। अंगोला अपना 99 फीसदी तेल चीन को निर्यात करता है। चीन ने अपने कर्ज़ की एवज़ में अंगोला से मिट्टी के भाव तेल खरीदना शुरु किया है। जो अंगोला की अर्थव्यवस्था को दिनों दिन खोखला बनाता जा रहा है।
<strong>जिबूती</strong>
अफ्रीकी महाद्वीप में अदन की खाड़ी में बसा जिबूती एक महत्वपूर्ण बंदरगाह का मालिक भी है। जहां से हर वर्ष 2 लाख पानी के जहाज़ गुज़रते हैं। चीन ने जिबूती में साढ़े तीन अरब डॉलर का कर्ज़ मुक्त व्यापार क्षेत्र बनाने के लिये दिया है। जिबूती के कुल सकल घरेलू उत्पाद का 80 फीसद हिस्सा चाइना एक्सिम बैंक के कर्ज़ में डूबा हुआ है। अपने कर्ज़ को उतारने के बदले जिबूती ने दो करोड़ अमेरिकी डॉलर सालाना की कीमत पर अपना सैन्य अड्डा भी कम्युनिस्ट चीन को दे दिया है। इसके अलावा चाड, बुरुंडी, मोज़ाम्बीक और ज़ाम्बिया भी चीन के कर्ज़ जाल में फंस चुके हैं।
<strong>लाओस</strong>
दक्षिण-पूर्वी एशिया में बसे देश लाओस ने एक्सिम चाइना बैंक से छह अरब सत्तर करोड़ डॉलर का ऋण चीन से लिया है। लाओस उन 10 देशों में शामिल है, जो चीन के कर्ज़ के मकड़जाल में बुरी तरह से फंसे हुए हैं। ये कर्ज़ लाओस के आधे सकल घरेलू उत्पाद जितना बड़ा है। चीन यहां पर सड़क और हाई स्पीड रेल नेटवर्क बना रहा है। जो दक्षिणी चीन के युन्नान प्रांत के कुनमिंग से वियतनाम होते हुए लाओस तक जाएगा। जिसका विस्तार 2021 तक सिंगापुर और मलेशिया तक किया जाएगा।
<strong>मंगोलिया</strong>
चीन के एक्जिम बैंक ऑफ चाइना ने अपने पड़ोसी देश मंगोलिया को भी 1 अरब डॉलर का ऋण आधाभूत ढांचा बनाने के नाम पर आसान शर्तों पर कर्ज़ दिया है। इसके साथ ही अलगे दस वर्षों तक चीन मंगोलिया को तीस अरब डॉलर का कर्ज़ और देगा। अगर मंगोलिया ये कर्ज़ नहीं चुका पाता है तो निश्चित तौर पर चीन मंगोलिया की प्राकृतिक संपदा और खनिज पदार्थों का दोहन अपने तरीके से करेगा। क्योंकि मंगोलिया भी उन दस देशों में शामिल है जो चीन के कर्ज़ तले दबे हुए हैं।
अगर समय रहते वैश्विक शक्तियों ने चीन की चालबाज़ियों पर लगाम न लगाई तो आने वाले दिनों में कई देश बदहाली की कगार पर पहुंच जाएंगे और चीन निर्ममता से उनके आर्थिक संस्थानों पर अपना कब्ज़ा जमा लेगा। साथ ही उनके प्राकृतिक संसाधनों का दोहन अपने लाभ के लिये करेगा। इसका परिणाम ये होगा कि इससे दिनों-दिन चीन की अर्थव्यवस्था को लाभ पहुंचेगा। लेकिन इसकी कीमत चीन के कर्ज़दार देशों को चुकानी होगी और ये मत्स्य न्याय व्यवस्था की एक नई परिभाषा लिखेगा।.