कई देशों के साथ विवादों में उलझा चीन ऐसा लग रहा है कि कोई नई रणनीति तैयार कर रहा है। एशिया के छोटे देशों को अपने कर्जजाल में फंसाने के बाद वहां के बंदरगाहों और एयरपोर्टों पर कब्जा कर रहा है। चाहे पाकिस्तान तो या फिर क्यों न बांग्लादेश यहां की अर्थव्यवस्था को बेड़ा गर्ग करने वाला ड्रैगन ही है। श्रीलंका में जो आर्थिक आग लगाई गई है वो चीन की देन है। श्रीलंका में जब आर्थिक भूचाल आया तो चीन चूपाचाप बैठकर तमाशा देख रहा था। ऐसे समय में पड़ोसी देश भारत एक बड़े मददगार के रूप में श्रीलंका के सामने आया। भारत के लिए श्रीलंका बेहद ही अहम है और चीन का यहां पर दखल देना नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। श्रीलंका में जब भारत बड़ा मददगार बनकर उभरा और दुनिया इसकी सराहना करना शुरू की तो चीन को ये बात चुभने लगी और धीरे-धीरे वो अपनी समुद्री रणनीति बनाना शुरू कर दिया। समुद्र के लिहास से भारत के लिए श्रीलंका बेहद ही जरूरी है और यहां पर चीन का आना भारत के लिए बड़ा खतरा है। तमाम कोशिशों के बाद भी श्रीलंका चीनी जासूसी जहाज को हंबनटोटा बंदरगाह पर आने से नहीं रोक सका। भारत ने जब इसपर विरोध जताया तो पहले श्रीलंका ने तो चीन को मना कर दिया लेकिन,बाद में चीनी जासूसी जहाज को आने की अनुमति दे दी। ऐसा मालूम पड़ता है कि चीन ने जरूर कोई दबाव बनाया होगा जिसके चलते श्रीलंका को अपना फैसला बदलना पड़ा।
पहले चीन की ओर से कहा गया कि उसका जासूसी जहाज युआन वांग श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर तेल भरवाने के लिए रुकेगा फिर वापस लौट जाएगा। लेकिन, ये बात हजम नहीं हो रही क्योंकि, ये जासूसी जहाज यहां एक हफ्ते के लिए रुक रहा है। ऐसे में कौन से जहाज में तेल भरने में एक हफ्ता लगता है। हंबनटोटा बंदरगाह पर चीनी जासूसी युआन वांग के पहुंचने से इसकी जद में दक्षिण भारत के आंध्र प्रदेश तक के सभी बंदरगाह और परमाणु शोध केंद्र तक आ गए हैं। रक्षा मामले और विदेशी मामलों के जानकारों का स्पष्ट कहना है कि, श्रीलंका की लचर विदेश नीतियों के चलते भारत की सुरक्षा पर खतरा मंडरा रहा है। क्योंकि, यह चीनी सेना के नियंत्रण वाला जहाज एक सप्ताह तक श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह पर रहेगा। ऐसे में भारतीय सुरक्षा एजेंसियां भी न सिर्फ अलर्ट हैं बल्कि हंबनटोटा बंदरगाह की एक-एक कार्यप्रणाली पर बारीकी से नजर भी रखना जरूरी है।
श्रीलंका के हंबनटोटा बंदरगाह को चीन ने एक करार के तहत 99 साल की लीज पर ले लिया है। करार के मुताबकि यहां पर व्यावसायिक गतिविधियों को ही सिर्फ ऑपरेट करना है। लेकिन, जानकारों का कहना है कि चीन की मंशा इस बंदरगाह से होने वाले ऑपरेशन को लेकर स्पष्ट नहीं नर आ रही है। बंदरगाह को लेने के बाद में चीन ने सबसे पहले अपना मिसाइल ट्रैकिंग और सैटेलाइट प्रणाली से लैस जासूसी करने वाले जहाज युआन वांग को हंबनटोटा बंदरगाह पर न सिर्फ रवाना किया बल्कि एक सप्ताह के लिए भारत की सीमा से सटे श्रीलंका के इस बंदरगाह पर रोक भी दिया। ऐसे में ये स्पाइ शिप न सिर्फ भारत की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है बल्कि तमाम जानकारियां इकट्ठा कर सकता है।
अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA इस बात को लेकर चिंता जता चुका है कि, श्रीलंका के इस बंदरगाह पर चीन बड़ा सैन्य अड्डा बना सकता है। अब उसका ये जासूसी जहाज साबित करता है कि ड्रैगन की नीति कुछ ऐसी ही है। चीन के इस स्पाइ जहाज का हवाई रेंज साढ़े सात सौ किलोमीटर से ज्यादा है। यानी की हंबनटोटा से दक्षिण भारत के ज्यादातर बड़े शहर और बंदरगाह इस चीनी सेना के नियंत्रण वाले जासूसी जहाज की जद में हैं। जहाज के अंदर जिस प्रकार की प्रणालियां है वो न सिर्फ अपने सर्विलांस सिस्टम से खुफिया जानकारियों को इकट्ठा कर सकती हैं बल्कि सेटेलाइट बैलिस्टिक मिसाइल तकनीकी से हमारे बड़े बंदरगाहों और शहरों को भी निशाने पर रख सकता है।
जब चीन ने हंबनटोटा में निवेश कर इसके लिया था उस दौरान भी अमेरिका समेत दुनिया की तमामत देशों की सुरक्षा एसेंजियों ने सवाल उठाया था। उस दौरान आशंका जताई गई थी कि इस बंदरगाह को चीन सैन्य बंदरगाह के तौर पर ड़ेवलप कर सकता है। फ्लूट डलवाने के नाम पर हंबनटोटा मे रूका एक सप्ताह के लिए यह जासूसी जहा भारत की पूरी जासूस करने में सक्षम है। ये जहाज समुद्र में चलते चलते ही अपने कई किलोमीटर के दायरे की पूरी जानकारी एकत्रित कतरा हुआ चलता है। यही वजह है कि भारत ने कड़ा रुख अख्तियार किया था।