पाकिस्तान के बारे में पीएम मोदी ने जो बातें तीन साल पहले चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग को बताई थीं वो सच साबित हो रही हैं। पाकिस्तान कंगाल हो गया है। रही-सही कसर करप्शन ने पूरी कर दी है। चीन का 75 के बिलियन डॉलर से ज्यादा की रकम डूब चुकी है। इसी बात से घबराए चीन ने इमरान की कटोरे में टुकड़े डालने से इंकार कर दिया है। मतलब यह कि चीन ने पाकिस्तान को आगे कर्ज देने से साफ मना कर दिया है। सीपेक और ग्वादर पोर्ट में लगे पैसे को वसूलने के लिए ग्वादर पोर्ट के चारों और कटीली बाड़ लगा कर चीन ने कब्जा कर लिया है। ग्वादर के इस सील्ड इलाके में कोई पाकिस्तानी पैर नहीं रख सकता। चीन ने पाकिस्तान के कई इलाकों पर कब्जा कर लिया है। चीन के कब्जाए हुए इन इलाकों पर पाकिस्तान सरकार के कानून काम नहीं करते। वहां चीन के कानूनों के मुताबिक काम होता है।
ग्वादर के रास्ते भारत को घेरने का ख्वाब पाल रहे चीन को पाकिस्तान की कंगाली की चिंता सताने लगी है। राष्ट्रपति शी जिनपिंग के सपनों के बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के अंतर्गत बनने वाले चीन पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) का निर्माण कार्य कई महीनों से फंड की कमी के कारण रुका हुआ है। पहले से ही इस प्रोजक्ट में अरबों डॉलर लगा चुके ड्रैगन की चिंताएं इसकी सुरक्षा और बढ़ती लागत ने और बढ़ा दी है। कोरोना वायरस के कारण इस परियोजना का बचा-खुचा काम भी बंद पड़ा हुआ है।
अमेरिका की बोस्टन यूनिवर्सिटी की एक रिसर्चर्स के मुताबिक चीन ने इन दिनों पाकिस्तान को फंडिंग काफी कम कर दी है। 2016 में चीन की सरकारी चाइना डेवलपमेंट बैंक और एक्सपोर्ट इंपोर्ट बैंक ऑफ चाइना ने पाकिस्तान को 75 बिलियन डॉलर का कर्ज दिया था। 2019 में यह रकम घटकर 4 बिलियन डॉलर पर आ गई थी। बड़ी बात यह है कि इस साल यानी 2020 में चीन ने पाकिस्तान को केवल 3 बिलियन डॉलर का ही कर्ज दिया है।
चीन ने अपनी फंडिंग को काफी सोच समझकर बंद करने का फैसला किया है। चीन ने सीपीईसी में पाकिस्तान की तरफ से कई स्ट्रक्चरल कमजोरियां पाई हैं। इसके अलावा पाकिस्तान में मौजूद अपारदर्शिता और भ्रष्टाचार ने चीन की चिंता को और बढ़ा दिया है। हाल में ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने जी-20 के देशों से कर्ज में रियायत की अपील की थी। इस कारण चीन को अपनी रकम डूबने का डर सताने लगा है।
जी-20 देशों से कर्ज राहत के तहत, पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक के प्रारूप के मुताबिक पूर्व की मंजूरी के अलावा, ऊंची दरों पर वाणिज्यिक कर्ज नहीं ले सकता। इस नियम से चीन भी बंधा हुआ है। यही कारण है कि चीन चाहकर भी पाकिस्तान को बड़ी मात्रा में वाणिज्यिक कर्ज नहीं दे सकता। अगर चीन रियायती कर देता है तो उसे इस राशि पर ब्याज बहुत कम या नहीं ही मिलेगा। ऐसे में ड्रैगन ऐसा कोई रिस्क लेना नहीं चाहता है।
सात सात पहले 2013 में घोषित हुई चीन पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर की 122 परियोजनाओं में से अभी तक केवल 32 को ही पूरा किया जा सका है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि चीन के वैश्विक ऋण देने की रणनीति में बदलाव और पाकिस्तान में विशाल बुनियादी ढांचे को बनाने की पहल से पीछे हटने का प्रमुख कारण अमेरिका के साथ जारी व्यापार युद्ध भी है।
सीपीईसी में जारी भ्रष्टाचार पाकिस्तान और चीन दोनों के लिए मुसीबत बना हुआ है। पाकिस्तान की एक खोजी वेबसाइट फैक्ट फोकस ने रिपोर्ट जारी करते हुए बताया था कि 60 अरब डॉलर के सीपीईसी प्रोजक्ट के चेयरमैन पाक सेना के पूर्व लेफ्टिनेंट जनरल असीम सलीम बाजवा ने भ्रष्टाचार से 40 मिलियन डॉलर से ज्यादा की संपत्ति बना ली है। वहीं, सीपीईसी के जरिए चीन की कई बिजली कंपनियों ने पाकिस्तान को जमकर चूना लगाया है। कंपनियों ने गुपचुप तरीके से बिजली के दाम बढ़ा दिए और पूरी कमाई को अपने पास रख लिया।
.