अफगानिस्तान में तालिबान की वापसी में अगर सबसे ज्यादा किसी ने मदद की थी तो वो है पाकिस्तान और चीन। इन दोनों देशों के ही दम पर तालिबान ने पूरे अफगान पर कब्जा किया। पाकिस्तान तो खुलेआम दुनिया के सामने गुहार लगा रहा है कि वो तालिबान को समर्थन दें। साथ ही चीन ने पहले ही तालिबान की अंतरीम सरकार को मान्यता दे दी थी। लेकिन अब ऐसा लगता है कि तालिबान संग दोस्ती कर चीन बुरा फंस गया है। जिस तरह से तालिबान ने पाकिस्तान को करारा झटका दिया था उसी तरह अब चीन को झटका तो ड्रैगन छटपटा उठा है।
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अल अरबिया की रिपोर्ट की माने तो, बीजिंग अब तालिबान में विश्वास खोता हुए नजर आ रहा है जो लंबे समय से आतंकवाद के समर्थन और महिलाओं के दमन के कारण दुनिया में ऊभरा। रिपोर्ट में बताया गया है कि, अफगानिस्तान में मौजूदा हालात पर चीन ने अपनी बात स्पष्ट की है। हाल ही में एक वरिष्ठ चीनी मंत्री ने जटिल अफगान स्थिति के बारे में अपनी गहरी चिंता व्यक्त की। उन्होंने चिंता जताई कि अफगानिस्तान का इस्तेमाल ISIS और अल-कायदा सहित आतंकवादी समूह क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बढ़ाने के लिए कर रहे हैं। रिपोर्ट में कहा गया, ऐसा लगता है कि चीन को अफगानिस्तान में तालिबान से दोस्ती करने पर अपनी गलती का एहसास हो गया है। चार महीने पहले, चीन अगस्त में युद्धग्रस्त मुल्क में तालिबान के साथ दोस्ती करने वाले पहले कुछ देशों में शामिल था। वहीं, चार महीने बाद बीजिंग तालिबान को लेकर अपना विश्वास खोता जा रहा है।
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बता दें कि, इससे पहले 22 दिसंबर को चीनी सहायक विदेश मंत्री वू जियानघाओ ने कहा था कि जिन आतंकवादी संगठनों के लिए सीमाओं का कोई अर्थ नहीं है, उनसे अकेले एक देश द्वारा नहीं लड़ा जा सकता है। उन्होंने कहा कि, अंतरराष्ट्रीय समुदाय को आतंकवाद से निपटने के लिए हाथ मिलाना चाहिए। 28 अक्टूबर को, चीनी विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी कर कहा कि अफगान स्थिति में बदलाव ने क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी स्थिति को जटिल बना दिया है। इसने कहा कि आतंकवादी ताकतों द्वारा इंटरनेट और उभरती टेक्नोलॉजी का दुरुपयोग एक गंभीर समस्या बन गई है।