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भारत के पड़ोस में चीन की बड़ी चाल! ड्रैगन ईरान-पाकिस्‍तान को लाया साथ, क्‍या है प्‍लान

China CPEC Balochistan Iran Pakistan

चीन (China), ईरान और पाकिस्तान ने पहली बार मिलकर बुधवार को त्रिपक्षीय आतंकवादरोधी और क्षेत्रीय सुरक्षा विचार विमर्श आयोजित किया है। इस बैठक के बाद पाकिस्‍तान ने एक बयान जारी करके कहा कि तीनों देशों के प्रतिनिधिमंडल ने क्षेत्रीय सुरक्षा हालात खासतौर पर इलाके में आतंकवाद के खतरे पर व्‍यापक चर्चा हुई। पाकिस्‍तान और चीन के विदेश मंत्रालयों ने बताया कि तीनों देशों ने इसे एक संगठन का रुप देने और नियमित तौर पर बैठक करने का फैसला किया है। वहीं विश्‍लेषक इसे चीन के बीआरआई परियोजना के तहत बन रहे सीपीईसी परियोजना से जोड़कर देख रहे हैं।

चीन बीआरआई प्रॉजेक्‍ट को अफगानिस्‍तान और ईरान के रास्‍ते पूरे पश्चिम एशिया तक फैलाना चाहता है। इस बैठक में तीनों ही देशों के विदेश मंत्रालय के अधिकारियों ने मुलाकात की। विश्‍लेषकों का कहना है कि पाकिस्‍तान का दक्षिणी-पश्चिमी बलूचिस्‍तान प्रांत इस बैठक का एक प्रमुख अजेंडा हो सकता है। यह बलूचिस्‍तान प्रांत प्राकृतिक संसाधनों से लैस है लेकिन काफी प‍िछड़ा हुआ है। बलूचिस्‍तान प्रांत चीन के अरबों डॉलर के चाइना पाकिस्‍तान आर्थिक कॉरिडोर का मुख्‍य केंद्र है।

बलूच व‍िद्रोही चीन के सीपीईसी का कर रहे कड़ा व‍िरोध

अमेरिका के विल्‍सन सेंटर में पाकिस्‍तान के राजनीतिक विश्‍लेषक बाकिर सज्‍जाद कहते हैं, ‘चीन, ईरान और पाकिस्‍तान के बीच त्रिपक्षीय सुरक्षा तंत्र की स्‍थापना बलूचिस्‍तान को लेकर साझा सुरक्षा चिंताओं को दर्शाता है।’ सज्‍जाद ने कहा कि सीपीईसी प्रॉजेक्‍ट (Cpec) के सफलतापूर्वक क्रियान्‍वयन करने के लिए बलूचिस्‍तान में स्थिरता जरूरी है।

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पाकिस्‍तान का बलूचिस्‍तान प्रांत ईरान से सटा हुआ है और लंबे समय से बलूच विद्रोही यहां पर सीपीईसी परियोजना का कड़ा विरोध कर रहे हैं। इन बलूच विद्रोहियों ने कई बार चीनी नागरिकों को निशाना बनाया है और चेतावनी दी है कि वह यहां से हट जाए। इस प्रांत में बड़ी संख्‍या में चीनी नागरिक काम करते हैं और पाकिस्‍तान के हजारों सुरक्षाकर्मी उनकी सिक्‍योरिटी में तैनात हैं।

ईरान में हमले कर रहे पाकिस्‍तानी सुन्‍नी विद्रोही

ईरान ने अपनी जमीन पर बलूच विद्रोहियों की उपस्थिति का खंडन किया है। बलूच विद्रोहियों का कहना है कि चीन बलूचिस्‍तान की प्राकृतिक संपदा को लूटना चाहता है। चीन यहां ग्‍वादर बंदरगाह को विकसित कर रहा है जो भविष्‍य उसका नौसेनिक ठिकाना बनने जा रहा है। इससे चीन की सीधे हिंद महासागर तक पहुंच हो जाएगी और उसे मलक्‍का स्‍ट्रेट पर निर्भर नहीं रहना होगा जहां पर भारत और अमेरिका का दबदबा है।