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महंगा इलाज, बढ़ते मामले और छीनती सांसें… ब्लैक फंगस के रुप में भारत के सामने नई चुनौती

photo courtesy Google

देश कोरोना की दूसरी लहर से लड़ रहा है। इस बीच म्यूकोरमायकोसिस संक्रमण यानि ब्लैक फंगस का एक और खतरा लोगों पर मंडराने लगा है। यह बीमारी उन कोरोना पीड़ित मरीजों में देखने को मिल रही है जो डायबिटीज से पीड़ित है। दुर्लभ किस्म की यह बीमारी आंखों में होने पर मरीज की रोशनी भी खत्म कर दे रही है। इस बीमारी का इलाज लोगों की जेबें ढीली कर रहा है और मृत्युदर भी लगातार बढ़ती जा रही है। ब्लैक फंगस एक फफूंद म्यूकोर से फैलती है जो गीली सतहों पर पाया जाता है।

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ये सबसे ज्यादा आंखों को प्रभावित करता है, लेकिन इसके साथ ही वो नाक और दिमाग को प्रभावित करता है। ये नाक की हड्डियों तक को गला देता है। दिमाग के प्रभावित होने पर इसका इलाज बेहद मुश्किल हो जाता है। ब्लैक फंगस आमतौर डायबिटीज के मरीजों को ज्यादा होती है। वहीं जो डायबिटीज से पीड़ित नहीं हैं उनमें ये संक्रमण बहुत ही कम पाया जाता है। एक्सपर्ट्स का कहना है कि ब्लैक फंगस उन लोगों को संक्रमित कर रहा है जो पहले से दवाइयां ले रहे है और हवा में मौजूद रोगाणुओं से लड़ने में कम सक्षम है।

ब्लैक फंगस के कारण सिर दर्द, बुखार, आंखों में दर्द, नाक बंद या साइनस के अलावा देखने की क्षमता पर भी असर पड़ता है। अगर किसी व्यक्ति में ये लक्षण दिखे तो उसे तुरंत डॉक्टर की सलाह लेनी चाहिए। कोरोना संक्रमण या उसके डर के कारण कई बार लोग बिना डॉक्टरी सलाह के या जरुरत से ज्यादा स्टेरॉयड ले लेते है। विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसा करने से ब्लैक फंगस का खतरा होता है। मौजूदा वक्त में इस बीमारी से निपटने के लिए अभी सुरक्षित सिस्टम नहीं है। इसलिए सतर्कता ही बचाव का एकमात्र उपाय है।