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वैदिक नगरी के रूप में विकसित होगा Naimisharanya, 88,000 ऋषियों की पावन तपस्थली है

Naimisharanya developed as Vedic city

Naimisharanya developed as Vedic city: उत्तर प्रदेश सरकार का पर्यटन विभाग सीतापुर के नैमिषारण्य और मिश्रिख-नीमसार (Naimisharanya developed as Vedic city) का कायाकल्प करने जा रहा है। एक सरकारी बयान में इस बारे में बताया गया है। बयान में कहा गया है कि, नैमिषारण्य को वैदिक, आध्यात्मिक, धार्मिक और इको टूरिज्म (Naimisharanya developed as Vedic city) के वैश्विक केंद्र के रूप में विकसित किया जाएगा। बयान में कहा गया है कि मुख्य सचिव दुर्गा शंकर मिश्र ने पर्यटन विभाग के आला अधिकारियों को इस संबंध में दिशा-निर्देश दिए हैं। हाल ही में मंत्रिपरिषद की बैठक में नैमिषारण्य को पौराणिक महत्व के अनुरूप आध्यात्मिक पर्यटन केंद्र (Naimisharanya developed as Vedic city) के तौर पर विकसित करने का निर्णय लिया गया था। साथ ही यहां नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद के गठन का भी फैसला किया गया था।

वैदिक, आध्यात्मिक और धार्मिक केंद्र के रूप में विकसित होगा नैमिषारण्य
मुख्य सचिव के समक्ष पर्यटन विभाग की ओर से डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम टेक्निकल यूनिवर्सिटी, लखनऊ की आर्किटेक्चर एंड प्लानिंग फैकल्टी ने प्रस्तुतिकरण दिया। इसमें नैमिषारण्य के विकास का पूरा मास्टर प्लान समझाया गया। इसके तहत नैमिषारण्य को इसके प्राकृतिक और मानव निर्मित विविध स्रोतों के कारण चार पर्यटन क्षेत्रों में बांटा जाएगा। बैठक के दौरान पर्यटन विभाग के प्रमुख सचिव मुकेश मेश्राम ने बताया कि यहां बने मां ललिता देवी मंदिर में कई द्वार हैं और सामने कई दुकानों की वजह से जाम की स्थिति रहती है, जिस पर काम किया जाएगा। मेश्राम ने कहा कि यहां का कुंड इस्तेमाल में नहीं है, जिसे पुन: शुरू किए जाने की आवश्यक्ता है। उन्होंने बताया कि नैमिषारण्य में आम नागरिकों के लिए जरूरी सुविधाओं और उनके रखरखाव पर भी ध्यान दिया जाएगा। इसी तरह, चक्र तीर्थ में प्रवेश द्वार से लेकर शौचालय ब्लॉक, चक्रतीर्थ कुंड की सफाई और गौकुंड, सत्संग भवन, सभा स्थल और प्रतीक्षा क्षेत्र के अलावा गोदावरी कुंड और ब्रह्म कुंड को ठीक किया जाएगा

84 कोसी परिक्रमा क्षेत्र में मिलेंगी सुविधाएं
मेश्राम के मुताबिक, “धार्मिक स्थलों के साथ-साथ शहर पर भी काम किए जाएंगे। शहर के प्रवेश द्वारों के साथ-साथ ट्रांजिट नोड विकसित किए जाएंगे। इसके अलावा, वहां डेडिकेटेड पार्किंग की व्यवस्था उपलब्ध कराई जाएगी।” इसके आगे उन्होंने बताया कि, इलेक्ट्रिक वाहनों के चार्जिंग प्वॉइंट के अलावा पर्यटक सुविधा केंद्र, धर्मशाला, फूड कोर्ट जैसी आम नागरिक सुविधाएं मुहैया कराई जाएंगी। इसके साथ ही नैमिषारण्य में तीर्थयात्रियों के लिए डेडिकेटेड फुटपाथ भी बनेंगे। यही नहीं, 84 कोसी परिक्रमा क्षेत्र में भी आम नागरिक सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएंगी, जिनमें प्रतीक्षालय, कैफेटेरिया, चेंजिंग रूम और शौचालन शामिल हैं। घाटों का चौड़ीकरण एवं अन्य जरूरी चीजों का विकास भी किया जाएगा।

88,000 ऋषियों की पावन तपस्थली है नैमिषारण्य
मेश्राम ने बताया कि सीतापुर शहर प्रमुख रूप से भूजल संसाधनों पर निर्भर है, इसलिए भूजल की कमी से बचने के लिए एक विकल्प की आवश्यकता है। इस प्रकार विकास क्षेत्र में वर्षा जल संचयन किया जा सकता है। “वर्षा जल संचयन प्रणाली को अपनाने के लिए अधिकारियों को लोगों को प्रोत्साहित करना चाहिए। सभी सार्वजनिक भवनों में नयी इमारतों में वर्षा जल संचयन प्रणाली उपलब्ध कराई जानी चाहिए। इसके अलावा, पांच हजार वर्ग मीटर से अधिक के परिसर के विकास के लिए एक वर्षा जल प्रणाली प्रदान की जानी आवश्यक है।” इससे पहले, 25 नवंबर को मंत्रिपरिषद की बैठक में बताया गया था कि पौराणिक महत्व के अनुरूप नैमिष धाम संवरेगा और वहां का समन्वित विकास होगा। सीतापुर और हरदोई जिले के 36 गांवों को मिलाकर ‘नैमिषारण्य तीर्थ विकास परिषद’ का गठन किया जाएगा। तीर्थ विकास परिषद का मुख्यालय सीतापुर में होगा।” विशेषज्ञों के मुताबकि, 88,000 ऋषियों की पावन तपस्थली नैमिषारण्य की पौराणिक महत्ता है। गठित होने जा रहे तीर्थ विकास परिषद का विस्तार सीतापुर/हरदोई के भीतर स्थित नैमिषारण्य क्षेत्र में होगा। नैमिषारण्य क्षेत्र के विरासत के संरक्षण का ज्ञान, अनुभव, अभिदर्शन वाले ऐसे पांच प्रख्यात व्यक्ति राज्य सरकार के परामर्श से अध्यक्ष द्वारा नामित किए जाएंगे।

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