सनातन धर्म में प्रदोष व्रत का काफी महत्व है। कल 8मई को शनिवार पड़ रहा है। ये वैशाख कृष्ण की त्रयोदशी तिथि है। प्रदोष का व्रत त्रयोदशी की तिथि में ही रखा जाता है। शनिवार के दिन त्रयोदशी की तिथि होने के कारण इस बार के प्रदोष व्रत का महत्व और भी बढ़ जाता है। चूंकि शनिवार के दिन त्रयोदशी तिथि पड़ रही है। इसलिए इसे शनि प्रदोष भी कहा गया है। शनि प्रदोष में भगवान शिव के साथ साथ शनि देव की भी पूजा की जाती है। चलिए आपको बताते है शनि प्रदोष का शुभ मुहूर्त, पूजा विधि और कथा-
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शनि प्रदोष का पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 07बजकर 01मिनट से रात 09बजकर 07मिनट के बीच है। प्रदोष व्रत वाले दिन सुबह उठकर स्नान करे और उसे बाद पूजा शुरु करे। भगवान शिव की विधि पूर्वक पूजा करें। जल चढ़ाए। फल और मिठाई से भोग लगाएं। प्रदोष व्रत में शाम के समय प्रदोष मुहूर्त में भगवान शिव की पूजा करें। पूजा में बेलपत्र, भांग, धतूरा, आक, दूध, गंगा जल, शहद, फूल आदि चढ़ाना न भूले। इस दौरान शिव मंत्र का जाप भी करते रहे।
शनि प्रदोष व्रत कथा- बहुत समय पहले एक नगर में एक सेठ अपने परिवार के साथ रहता था। विवाह के कई वर्ष गुजरने के बाद भी उन दोनों को संतान सुख प्राप्त नहीं हुआ। जिस कारण पति और पत्नी दुखी और उदास रहते थे। एक दिन दोनों ने तीर्थ यात्रा का कार्यक्रम बनाया। यात्रा के दौरान मार्ग में एक महात्मा मिले, जिनसे दोनों ने आशीर्वाद प्राप्त किया। महात्मा ने दोनों के मन की बात को जान लिया और शनि प्रदोष व्रत विधि पूर्वक करने की सलाह दी। तीर्थ यात्रा से वापिस आने के बाद शनिवार की त्रयोदशी की तिथि में शनि प्रदोष व्रत रखा। कुछ समय बाद शनि प्रदोष व्रत के कारण दोनों को संतान की प्राप्ति हुई।