सनातन धर्म में प्रदोष व्रत का काफी महत्व है। ये वैशाख कृष्ण की त्रयोदशी तिथि है। शनिवार के दिन त्रयोदशी की तिथि होने के कारण इस बार के प्रदोष व्रत का महत्व और भी बढ़ जाता है। चूंकि शनिवार के दिन त्रयोदशी तिथि पड़ रही है। इसलिए इसे शनि प्रदोष भी कहा गया है। शनि प्रदोष में भगवान शिव के साथ साथ शनि देव की भी पूजा की जाती है। चंद्रमा इस दिन मीन राशि में जबकि सूर्य इस दिन मेष राशि में संचार करेगा।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, प्रीति योग में मेल-मिलाप बढ़ाने, प्रेम विवाह करने और अपने रूठे मित्रों और सगे-संबंधियों को मनाने से सफलता मिलती है। इसके अलावा झगड़े निपटाने या समझौता करने के लिए भी यह योग शुभ माना जाता है। इस योग में किए गए कार्य से मान सम्मान की प्राप्ति होती है। व्रत रखने से जीवन का कल्याण होता है। चलिए आपको बताते है कि पूजा का शुभ मुहूर्त–
अभिजित मुहूर्त- सुबह 11:39 से 12:32 तक।
विजय मुहूर्त- दोपहर 2:18 से 03:11 तक।
गोधूलि मुहूर्त- शाम 6:31 से 6:55 तक।
निशिता मुहूर्त- रात 11:44 से 12:26 तक।
इन मुहूर्त में ना करें पूजा-
राहुकाल- सुबह 10:26 से 12:05 तक।
यमगण्ड- दोपहर 3:25 से 5:04 तक।
वर्ज्य- रात 10:59 से 12:44 तक।
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शनि प्रदोष व्रत कथा- बहुत समय पहले एक नगर में एक सेठ अपने परिवार के साथ रहता था। विवाह के कई वर्ष गुजरने के बाद भी उन दोनों को संतान सुख प्राप्त नहीं हुआ। जिस कारण पति और पत्नी दुखी और उदास रहते थे। एक दिन दोनों ने तीर्थ यात्रा का कार्यक्रम बनाया। यात्रा के दौरान मार्ग में एक महात्मा मिले, जिनसे दोनों ने आशीर्वाद प्राप्त किया। महात्मा ने दोनों के मन की बात को जान लिया और शनि प्रदोष व्रत विधि पूर्वक करने की सलाह दी। तीर्थ यात्रा से वापिस आने के बाद शनिवार की त्रयोदशी की तिथि में शनि प्रदोष व्रत रखा। कुछ समय बाद शनि प्रदोष व्रत के कारण दोनों को संतान की प्राप्ति हुई।