'चीन, पाकिस्तान के Islamist Terrorism का नया शिकार बन चुका है। चीन के 64 बिलियन डॉलर की रकम डूबती नजर आ रही है। लेकिन अमेरिका ने पाकिस्तान की जिस चालाकी को समझने में दसियों साल लगा दिए उसको चीन महज 7 सालों में समझ चुका है, लेकिन बहुत बड़ी रकम दांव पर लग चुकी है।'
अपर कोहिस्तान यानी दासू पन बिजली परियोजना के चाईनीज इंजीनियरों से भरी बस को आतंकी बस धमाके का शिकार बनाना पाकिस्तान के लिए अब तक की सबसे बड़ी त्रासदी है। पाकिस्तान के पीएम इमरान खान चीन के प्रधानमंत्री ली कियांग के सामने सफाई पेश कर चुके हैं। आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा ने चाईनीज राजदूत नोंग रोंग के सामने जाकर माफी-तलाफी के साथ कौल करार भी कर चुके हैं, लेकिन चीन की नाराजगी कम नहीं हुई है। चीन ने टेक्नीकल एक्सपर्ट के साथ एक स्पेशल इन्वेस्टिगेटिव टीम पाकिस्तान में तैनात कर दी है। चीन ने 65 बिलियन डॉलर के CPEC प्रोजेक्ट पर पूरी तरह काम रोक दिया गया है। दासू हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट सभी पाकिस्तानी कर्मचारियों को 14 दिन की पगार देकर नौकरी से निकाल दिया है।
अपर कोहिस्तान के इस आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान की हालत बेहद नाजुक हो गई है। कई विदेशी मीडिया घरानों में काम कर चुके पाकिस्तानी जर्नलिस्ट कुंवर खुलदून शाहिद का मानना है कि चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग का ड्रीम प्रोजेक्ट (बीआरआई) पाकिस्तानी इस्लामिस्ट मानसिकता का शिकार हो गया है। कुंवर खुलदून शाहिद चूंकि खुद पाकिस्तानी हैं, इसलिए वो इससे ज्यादा नहीं लिख सकते। दूसरे देशों की मीडिया इसको इस तरह से ट्रांसलेट कर रही है कि पाकिस्तान सरकार के पाले हुए आतंकवादी-जिहादी आज उसके लिए सिर दर्द बन गए हैं।
पाकिस्तानी पीएम इमरान खान के लिए इससे ज्यादा शर्म की बात क्या हो सकती है कि शी जिनपिंग ने इस मुद्दे पर इमरान खान से बात करने से इंकार कर दिया। बात हाथ से निकलती देख विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी को बीजिंग जाने का हुक्म दिया। पाकिस्तान के पीएम इमरान खान मानें या न मानें लेकिन यह बात सौ फीसदी सच है कि उइगर मुसलमानों पर चीन की कम्युनिस्ट सरकार के दमन चक्र से पाकिस्तान के मुसलमान चाहे वो रैडिकल हों या नॉन रैडिकल या फिर वो आतंकी-जिहादी गिरोह सब के सब चीन से बदला लेना चाहते हैं।
बलूचिस्तान की आजादी के लिए सशस्त्र आंदोलन कर रहे बलोच लिब्रेशन आर्मी भी चीन के कब्जे के खिलाफ है। लेकिन वो हमला करते हैं तो उस की जिम्मेदारी लेते हैं। पाकिस्तान तालिबान हमला करते हैं तो उसकी जिम्मेदारी लेते हैं। लेकिन इस बार किसी ने अभी तक हमले की जिम्मेदारी नहीं ली है। हालांकि, एक आशंका यह भी है कि पाकिस्तान की सरकार और फौज दोनों ने हमला करने वाले गुट या गिरोह की जानकारी छिपा ली हो। क्योंकि विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी आखिरी दम तक यही कहते रहे थे कि बस हादसा आतंकी वारदात नहीं है। मैकेनिकल फॉल्ट की वजह ब्लास्ट हुआ।
अपर कोहिस्तान में हुए बस ब्लास्ट में एक एंगल निकाला जा रहा है। कुछ विश्लेषकों का कहना है कि जिसतरह से पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में आतंकी भेजे तालिबान को बनाया, अमेरिका के खिलाफ उनका भरपूर इस्तेमाल किया। फिर उन्हीं आतंकियों और तालिबान को कंट्रोल करने के लिए अमेरिका को ब्लैकमेल करता रहा। लगभग उसी तरह से अब आतंकियों के सहारे बीजिंग को डराने और 64 बिलियन डॉलर के कर्ज को हड़पने की मंशा है। लोग कह रहे हैं कि पाकिस्तान सरकार चाहती है कि चीन कंपनियां डर कर बापस भाग जाएं। जिससे पाकिस्तान को चीन का कर्ज वापस न देने का बहाना मिल जाए। चीन ने जो कुछ भी इन्फ्रा स्ट्रक्चर और मशीनों पर पाकिस्तानियों का कब्जा हो जाए।
कहते हैं कि चीन के जासूसों ने शी जिनपिंग को इन आशंकाओँ के बारे में पहले ही आगाह कर दिया था। इसलिए बीजिंग ने कर्ज की वसूली और बीआरआई के विकल्प की संभावनाएं तलाशनी शुरू कर दी हैं। इसी प्लान के तहत बीजिंग ने गिलगिट में डैम प्रोजेक्ट की सिक्योरिटी के बहाने चीनी फौजों की तैनाती बढ़ा दी है।