उदयपुर में कन्हैया की धोखे से की गई बर्बर हत्या सामान्य आपराधिक घटना नहीं है। यह उस कट्टरपंथी तालिबानी वायरस का असर है जो अफगानिस्तान-पाकिस्तान की सीमा पार कर भारत में घुस चुका है। कमजोर और विक्षिप्त मानसिकता के मुसलमान इस वायरस का शिकार हो चुके हैं। इस वायरस से संक्रमित हो चुके ‘मौहम्मद गौस और मौहम्मद रियाजों’की पहचान बहुत जरूरी है। पता नहीं कितने ही ‘मौहम्मद गौस यौर मौहम्मद रियाज’ हमारे इर्द-गिर्द घूम रहे हैं। कट्टरपंथी-तालिबानी वायरस, कोरोना वायरस से ज्यादा खतरनाक और बहरुपिया है। इनकी पहचान बहुत कठिन, लेकिन जरूरी है। इसका असर शरीर पर नहीं जहन के अंदर होता है। यह वायरस अदनी-मदनी, ओवैसी-खबीसी, बर्क-खर्क, रहमानी-बेमानी, रजा-वजा, वगैरह-वगैरह टाइप के मुसलमानों की खोपड़ी में हो सकता है।
अदनी-मदनी,ओवैसी-खबीसी, बर्क-खर्क, रहमानी-बेमानी, रजा-वजा टाइप के ‘इस्लामी ठेकेदारों’की ‘जुबान’ से छूटता है वायरस
यह वायरस सांस के रास्ते नहीं बल्कि अदनी-मदनी, ओवैसी-खबीसी, बर्क-खर्क, रहमानी-बेमानी, रजा-वजा टाइप के ‘इस्लाम के ठेकेदारों’की ‘जुबान’ से निकलता है और कमजोर दीमागी हालत वाले मुसलमानों के कान में घुस कर जहन (दिमाग) पर घातक असर करता है। इस वायरस का अभी तक न तो कोई टीका बना है और न ही कोई गोली। कट्टरपंथी तालिबानी वायरस के शिकार जाहिल नहीं, पढ़े लिखे दिखने वाले एलीट किस्म के मुसलमान भी हो सकते हैं। इसलिए इनकी पहचान में सतर्कता उसी स्तर की जरूरी है जितनी शहद और घी को आपस में मिलाते वक्त रखी जाती है। मस्जिद-मदरसों और दरगाहों की भीड़ में इस वायरस से संक्रित लोगों को ढूंढना मुश्किल है। गांव-गली-मुहल्लों और कॉलोनी और अपने ‘पड़ौस’का स्कैन भी करना पड़ सकता है। यह स्कैनिंग बहुत संवेदनशील है। इसलिए सावधानी और सतर्कता के साथ हाल-चाल नहीं हरकतों की स्कैनिंग करनी होगी। ध्यान रहे, इस स्कैनिंग में मेहनत मजदूरी और दीन-ईमान के साथ परिवार पालने वाला गुलाम मोहम्मद स्कैनिंग में न फंसे, लेकिन उदयपुर के सूरजपोल में रहने वाले मोहम्मद गौस और रियाज धानमंडी के भूल महल में सुप्रीम टेलर्स मालिक कन्हैया लाल की तालिबानी आतकंकारी तरीके से हत्या न कर सकें।
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